द्वारकाधीश मंदिर, द्वारका, गुजरात ❤️
चार धाम में से एक...
यह मंदिर🚩 भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। यह मंदिर गोमती नदी 🚣🏻 के तट पर तथा इस स्थान पर गोमती नदी अरब सागर से मिलती है
यह स्थान द्वापर में 🕉️ भगवान श्री कृष्ण‼️ की राजधानी थी और आज कलयुग में भक्तों 👏 के लिए महा तप तीर्थ है।
💁🏻♂️ द्वारकाधीश मंदिर 5 मंजिला इमारत का तथा 72 स्तंभों 🗿द्वारा समर्थित, को जगत मंदिर या त्रिलोक सुन्दर (तीनों लोको 🙌 में सबसे सुन्दर) मंदिर के रूप में जाना जाता है, 📑 पुरातात्विक द्वारा बताया गया हैं कि यह मंदिर🚩 2,200-2000 वर्ष पुराना है
🖐️ 15वीं-16वीं सदी में मंदिर का विस्तार हुआ था 8वीं शताब्दी के 🕉️ हिन्दू धर्मशास्त्रज्ञ और दार्शनिक आदि शंकराचार्य 🧘🏻♂️ के बाद, मंदिर भारत में हिंदुओं द्वारा पवित्र माना गया ‘चार धाम’ तीर्थ 🛕 का हिस्सा बन गया। अन्य तीनों में रामेश्वरम, बद्रीनाथ और पुरी ✌️ शामिल हैं।
मंदिर🚩 के आसपास की अन्य कलात्मक संरचनाओं का निर्माणा 16 वीं शताब्दी 👊 में करवाया गया था।🙏
मंदिर 🛕 के गर्भगृह में चांदी के सिंहासन पर भगवान कृष्ण 🦚 की श्यामवर्णी चतुर्भुजी प्रतिमा विराजमान है
😯 यहां पर उन्हें रणछोड़ 🛐 जी के नाम से भी जाना जाता है यहां से 56 सीढियां 📏 चढ़कर स्वर्ग द्वार से मंदिर में प्रवेश किया जाता है।
🚩!! जय श्री कृष्णा !!🚩
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तिरूपति भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति की कुछ अनोखी बातें ।।
तिरूमाला वेंकटेश्वर मंदिर, आंध्र प्रदेश के हिल शहर तिरूमाला में स्थित भगवान वेंकटेश्वर का प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। इस मंदिर को भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। जानिये भगवान तिरुपति बालाजी की अनोखी कहानी ।
यह मंदिर, वेंकटाद्री पहाड़ी पर बना हुआ है जो तिरूमाला की सात पहाडियों में से एक पहाड़ी है। कई लोग इस मंदिर को सात पहाडियों का मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर में भगवान श्रीनिवास या बालाजी या वेंकटाचालपैथी की आराधना की जाती है जो हिंदूओं के प्रमुख देवता थे। इस मंदिर के बारे में कई कहानियां व दंत कथाएं कही जाती हैं, साथ ही कई रहस्य भी हैं।
आइए जानते हैं वेंकटेश्वर मंदिर से जुड़ी कुछ रहस्यमयी बातें :
1. मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर, दाईं ओर एक एक छड़ी रहती है जिसका इस्तेमाल वहां उपस्थिति वेंकटेश्वर स्वामी को हिट करने के लिए अनंतालवर के द्वारा किया जाता था। जब इस छड़ का इस्तेमान नन्हे बालक के रूप में वेंकटेश्वर को मारने के लिए किया गया था, तो उनकी ठोड़ी पर चोट लग गई थी। तब से वेंकटेश्वर को चंदन का लेप ठोडी पर लगाये जाने की शुरूआत की गई।
2. इस मंदिर में वेंकटेश्वर स्वामी की मूर्ति पर लगे हुए बाल उनके असली बाल हैं। ऐसा कहा जाता है कि ये बाल कभी उलझते नहीं है और हमेशा इतने ही मुलायम रहते हैं।
3. इस मंदिर से 23 किमी. दूर एक गांव स्थित है। इस गांव में सिर्फ वही लोग आ जा सकते हैं जो इस गांव के निवासी हो। इस गांव के लोग, सख्त नियमों के साथ अपना जीवन बिताते हैं। इसी गांव से भगवान वेंकटेश्वर के लिए, फूल, दूध, घी, मक्खन आदि सामग्री जाती है।
4. वेंकटेश्वर स्वामी की स्थापना, गर्भ गुदी के मध्य में की गई है, ऐसा प्रतीत होता है। लेकिन वास्तव में, जब आप इसे बाहर से खड़े होकर देखें, तो पाएंगे कि यह मंदिर के दाईं ओर स्थित है।
5. मूर्ति पर चढ़ाये जाने वाले सभी फूलों और तुलसी पत्रों को भक्तों में न बांटकर, परिसर के पीछे बने पुराने कुएं में फेंक दिया जाता है।
6. स्वामी का पिछला हिस्सा सदैव नम रहता है। अगर आप ध्यान से कान लगाकर सुनें तो आपको सागर की आवाज सुनाई देती है।
7. गुरूवार के दिन, मंदिर में निज रूप दर्शनम् का आयोजन किया जाता है, जिसमें सफेद चंदन के पेस्ट से स्वामी को रंग दिया जाता है। जब इस लेप को हटाया जाता है तो माता लक्ष्मी के चिन्ह् बने रह जाते हैं। इन चिन्हों को मंदिर के अधिकारियों द्वारा बेच दिया जाता है।
8. जिस प्रकार जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो पीछे मुड़कर नहीं देखा जाता है और न ही रोशनी की जाती है। उसी प्रकार, इस मंदिर के पुजारी, पूरे दिन मूर्ति के पुष्पों को पीछे फेंकते रहते हैं और उन्हें नहीं देखते हैं। मंदिर में चढाये जाने वाले फूलों को दूर स्थित एक विशेष गांव से लाया जाता है।
9. इस मंदिर में एक दीया कई सालों से जल रहा है किसी को नहीं ज्ञात है कि इसे कब जलाया गया था।
10. 1800 में, इस मंदिर को कुल 12 वर्षों के लिए बंद कर दिया गया था। उस दौरान, एक राजा ने 12 लोगों को दंडस्वरूप मौत की सजा दी और मंदिर की दीवार पर लटका दिया। कहा जाता है कि उस समय विमान वेंकटेश्वर स्वामी प्रकट हुए थे।
11. बालाजी की मूर्ति पर पचाई कर्पूरम चढ़ाया जाता है जो कपूर से मिलकर बना होता है। अगर इसे किसी साधारण पत्थर पर चढाया जाये, तो वह कुछ ही समय में चटक जाये, लेकिन मूर्ति पर इसका प्रभाव नगण्य रहता है।
12. मूर्ति का तापमान 110 फारेनहाईट रहता है, जबकि इसे प्रतिदिन सुबह 4:30 बजे ही जल, दूध से स्नान करा दिया जाता है। स्नान कराने के बाद मूर्ति से पसीना आता है जिसे पोंछा जाता है।
```हरे कृष्ण
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श्री गणेश की दाईं सूंड या बाईं सूंड (पुनः प्रेषित)
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अक्सर श्री गणेश की प्रतिमा लाने से पूर्व या घर में स्थापना से पूर्व यह सवाल सामने आता है कि श्री गणेश की कौन सी सूंड होनी... चाइये ?
क्या कभी आपने ध्यान दिया है कि भगवान गणेश की तस्वीरों और मूर्तियों में उनकी सूंड दाई या कुछ में बाई ओर होती है। सीधी सूंड वाले गणेश भगवान दुर्लभ हैं। इनकी एकतरफ मुड़ी हुई सूंड के कारण ही गणेश जी को वक्रतुण्ड कहा जाता है।
भगवान गणेश के वक्रतुंड स्वरूप के भी कई भेद हैं। कुछ मुर्तियों में गणेशजी की सूंड को बाई को घुमा हुआ दर्शाया जाता है तो कुछ में दाई ओर। गणेश जी की सभी मूर्तियां सीधी या उत्तर की आेर सूंड वाली होती हैं। मान्यता है कि गणेश जी की मूर्त जब भी दक्षिण की आेर मुड़ी हुई बनाई जाती है तो वह टूट जाती है। कहा जाता है कि यदि संयोगवश आपको दक्षिणावर्ती मूर्त मिल जाए और उसकी विधिवत उपासना की जाए तो अभिष्ट फल मिलते हैं। गणपति जी की बाईं सूंड में चंद्रमा का और दाईं में सूर्य का प्रभाव माना गया है।
प्राय: गणेश जी की सीधी सूंड तीन दिशाआें से दिखती है। जब सूंड दाईं आेर घूमी होती है तो इसे पिंगला स्वर और सूर्य से प्रभावित माना गया है। एेसी प्रतिमा का पूजन विघ्न-विनाश, शत्रु पराजय, विजय प्राप्ति, उग्र तथा शक्ति प्रदर्शन जैसे कार्यों के लिए फलदायी माना जाता है।
वहीं बाईं आेर मुड़ी सूंड वाली मूर्त को इड़ा नाड़ी व चंद्र प्रभावित माना गया है। एेसी मूर्त की पूजा स्थायी कार्यों के लिए की जाती है। जैसे शिक्षा, धन प्राप्ति, व्यवसाय, उन्नति, संतान सुख, विवाह, सृजन कार्य और पारिवारिक खुशहाली।
सीधी सूंड वाली मूर्त का सुषुम्रा स्वर माना जाता है और इनकी आराधना रिद्धि-सिद्धि, कुण्डलिनी जागरण, मोक्ष, समाधि आदि के लिए सर्वोत्तम मानी गई है। संत समाज एेसी मूर्त की ही आराधना करता है। सिद्धि विनायक मंदिर में दाईं आेर सूंड वाली मूर्त है इसीलिए इस मंदिर की आस्था और आय आज शिखर पर है।
कुछ विद्वानों का मानना है कि दाई ओर घुमी सूंड के गणेशजी शुभ होते हैं तो कुछ का मानना है कि बाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी शुभ फल प्रदान करते हैं। हालांकि कुछ विद्वान दोनों ही प्रकार की सूंड वाले गणेशजी का अलग-अलग महत्व बताते हैं।
यदि गणेशजी की स्थापना घर में करनी हो तो दाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी शुभ होते हैं। दाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी सिद्धिविनायक कहलाते हैं। ऎसी मान्यता है कि इनके दर्शन से हर कार्य सिद्ध हो जाता है। किसी भी विशेष कार्य के लिए कहीं जाते समय यदि इनके दर्शन करें तो वह कार्य सफल होता है व शुभ फल प्रदान करता है।इससे घर में पॉजीटिव एनर्जी रहती है व वास्तु दोषों का नाश होता है।
घर के मुख्य द्वार पर भी गणेशजी की मूर्ति या तस्वीर लगाना शुभ होता है। यहां बाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी की स्थापना करना चाहिए। बाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी विघ्नविनाशक कहलाते हैं। इन्हें घर में मुख्य द्वार पर लगाने के पीछे तर्क है कि जब हम कहीं बाहर जाते हैं तो कई प्रकार की बलाएं, विपदाएं या नेगेटिव एनर्जी हमारे साथ आ जाती है। घर में प्रवेश करने से पहले जब हम विघ्वविनाशक गणेशजी के दर्शन करते हैं तो इसके प्रभाव से यह सभी नेगेटिव एनर्जी वहीं रूक जाती है व हमारे साथ घर में प्रवेश नहीं कर पाती।
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चंद्रकेश्वर महादेव🚩🚩🚩
च्यवन ऋषि की तपोभूमि पर चंद्रकेश्वर महादेव,स्वयं माता नर्मदा यहां प्रकट हुई थीं। बारह महीने जलमग्न रहता है शिवलिंग!
भारत में भगवान शिव के अनेक ऐसे मंदिर हैं, जिनके बारे में जानकर श्रद्धालु हैरान रह जाते हैं। लेकिन अगर कोई आपसे कहे कि भोलेनाथ एक मंदिर में पूरे 12 महीने जलमग्न रहते हैं तो शायद आप यकीन न करें। लेकिन यह सच है। मध्य प्रदेश के देवास के चापड़ा में एक ऐसा अनूठा मंदिर है, जिसमें भगवान शिव 12 महीने जलमग्न रहते हैं। भोले के भक्त पानी के अंदर से ही उनकी आराधना करते हैं। आइए जानते हैं, इस अनोखे मंदिर की कहानी और सावन में इसके दर्शन का महत्व।
टीले पर बना शिवजी का मंदिर, अजब है मूर्ति का स्वरूप और पूरी होती है यह मनोकामना
इस मंदिर का नाम चंद्रकेश्वर मंदिर है और यह इंदौर से 65 किलोमीटर दूर इंदौर-बैतूल राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। मंदिर सतपुड़ा की पहाड़ियों और घने जंगल से चारों ओर से घिरा हुआ है। प्राकृतिक सुंदरता से सराबोर इस मंदिर में हमेशा भक्तों की भीड़ रहती है। धार्मिक मान्यता है कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग करीब 3 हजार साल पुराना है। यहां पर मुख्य मंदिर के साथ राम दरबार और हनुमानजी का मंदिर भी है। हालांकि मंदिर की स्थापना से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, औषधि रूपी च्यवनप्राश को विकसित करने वाले च्यवन ऋषि ने इस चंद्रकेश्वर मंदिर की स्थापना की थी। स्वयं माता नर्मदा यहां प्रकट हुई थीं। इस तीर्थस्थली का उल्लेख भागवत पुराण में भी मिलता है।
मंदिर के समीप ही चंद्रकेश्वर नदी बहती है। मंदिर के पास ही एक झरना है। इसमें स्नानकर लोग भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं। यहां चार गुफाएं भी हैं। इनके बारे में बताया जाता है यह करीब 500 साल पुरानी हैं। मुख्य मंदिर से लगा घना वटवृक्ष है और पास से ही चंद्रकेश्वर नदी गुजरती है, जो आगे जाकर चंद्रकेश्वर डैम (बांध) में मिलती है।
मान्यता है कि च्यवन ऋषि के आह्वान पर ही मां नर्मदा गुप्त रूप से प्रकट हुई थीं और शिवलिंग का प्रथम अभिषेक किया था। तभी से यहां एक वटवृक्ष से जलधारा निकलती है, जिससे शिवलिंग जलमग्न रहता है। ऐसा कहा जाता है कि च्यवन ऋषि ने इस भूमि पर तप किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर स्वयं मां नर्मदा ने प्रकट होकर दर्शन दिए थे और कहा था कि ‘आपकी तपस्या से प्रसन्न होकर मैं इस मंदिर में प्रकट हो रही हूं।’
कहा जाता है कि दुनिया में ऐसे तीन ही मंदिर थे, जिनमें से अब एक ही जीवंत स्थिति में है।मंदिर के पुजारी के अनुसार इस मंदिर का इतिहास च्यवन ऋषि से जुड़ा है। कहते हैं कि उन्होंने यहां तपस्या की थी। उन्होंने ही इस मंदिर की स्थापना की थी। वे रोज स्नान के लिए 60 किमी दूर नर्मदा तट पर जाते थे। ऐसी मान्यता है कि उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर स्वयं मां नर्मदा ने उन्हें दर्शन दिए थे और कहा था कि मैं स्वयं आपके मंदिर में प्रकट हो रही हूं। इस पर ऋषि ने कहा कि मैं ये कैसे समझ पाऊंगा की आप स्वयं मेरे मंदिर में प्रकट हुई हैं। इसके बाद उन्होंने अपना गमछा नर्मदा तट पर छोड़ दिया। कथा के अनुसार अगले दिन मंदिर में जलधारा फूट पड़ी और उनका गमछा भगवान शिव पर लिपटा हुआ मिला।
सप्त ऋषियों ने भी किया है तप
च्यवन ऋषि के बाद सप्त ऋ षियों ने भी यहां तप किया था। यहां उनके नाम का एक कुंड भी बना हुआ है। कहते हैं इस कुंड में स्नान से पापों से मुक्ति मिल जाती है। यहां सावन मास में रुद्राभिषेक किया जाता है। वैसे तो यहां लोगों का दर्शनार्थ आना-जाना रहता है, लेकिन श्रावण में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ जाती है।
दर्शनीय और ऐतिहासिक स्थल है
मंदिर में शिवमंदिर के अलावा भी कई दर्शनीय और ऐतिहासिक स्थल हैं। यहां परमार और प्रतिहार काल की कई अद्भुत प्रस्तरशिल्प पाए जाते हैं। मंदिर के पास ही एक ही पत्थर पर उकेरी गई प्रतिहार कालीन दुर्लभ प्रतिमा है। कहते हैं ये प्रतिम सैकड़ों वर्ष पुरानी है यहां कुछ गुफा और सदियों पुराने किले के अवशेष के अलावा श्रीविष्णु गोशाला श्रीराम मंदिर, अंबे माता मंदिर, हनुमान मंदिर मौजूद हैं।
हर हर महादेव.
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एक मंदिर ऐसा, जहां लेटे हुए हनुमान जी होती है पूजा
एक अनोखा शिवलिंग जिसकी पूजा हिन्दू मुस्लिम दोनों करते है।