अष्ट चिरंजीवी लोग जिनका स्मरण करने से शरीर होता है निरोग और प्राप्त होती है सौ वर्ष की आयु ।
शरीर नश्वर है, लेकिन शास्त्रों में आठ ऐसे लोग भी बताए गए हैं, जिन्होंने जन्म लिया है और वे हजारों सालों से देह धारण किए हुए हैं यानी वे अभी भी सशरीर जीवित हैं। वैसे तो हिन्दू पौराणिक कथाओ में बहुत से रोचक और रहस्यमई कहानियाँ है मगर सबसे दिलचस्प वो मान्यता है जिसके मुताबिक महाभारत और रामायण काल के कई पात्र आज भी जीवित है। योग में जिन अष्ट सिद्धियों की बात कही गई है, वे सारी सिद्धिया इनमे विद्धमान है। ये सब किसी न किसी वचन, नियम या श्राप से बंधे हुए है और ये सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न है। हिंदू धर्म अनुसार इन्हें आठ जीवित महामानव कहा जाता है। रामचरितमानस में लिखे गये एक श्लोक के अनुसार भगवान परशुराम, अश्वत्थामा, भगवान हनुमान, ऋषि व्यास, राजा बलि, विभिषण, कृपाचार्य और ऋषि मार्कंडेय ये आठ महामानव चिरंजीवी है। प्राचीन मान्यताओं के आधार पर यदि कोई व्यक्ति हर रोज इन आठ अमर लोगों के नाम भी लेता है तो शरीर के सारे रोग समाप्त हो जाते है और उसकी उम्र लंबी होती है।
भगवान परशुराम
पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान विष्णु के छटे अवतार है परशुराम। परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थी। इनका जन्म हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। इसलिए वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है। परशुराम का जन्म समय सतयुग और त्रेता के संधिकाल में माना जाता है। परशुराम का प्रारंभिक नाम राम था। राम ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। इन्हें भी अमर होने का वरदान मिला है। राम ने शिवजी को प्रशन्न करने के लिए कठोर तप किया था। शिवजी तपस्या से प्रसन्न हुए और राम को अपना फरसा दिया। इसी वजह से राम परशुराम कहलाने लगे। परशुराम भगवान राम के पूर्व हुए थे लेकिन चिरंजीवी होने के कारण राम के काल में भी थे। आपको बता दे की भगवन परशुराम ने पृथ्वी से 11 बार निरंकुश और अधर्मी क्षत्रियों का अंत किया था। कहा जाता है कि परशुराम को भी अमर होने का वरदान प्राप्त है।
अश्वत्थामा
ग्रंथों में भगवान शंकर के अनेक अवतारों का वर्णन भी मिलता है। उनमें से एक अवतार ऐसा भी है, जो आज भी पृथ्वी पर अपनी मुक्ति के लिए भटक रहा है। ये अवतार हैं गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का।अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र है। ग्रंथो में भगवन शंकर के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है। द्वापर युग में जब कौरव और पांडवो में युद्ध हुआ था तब अश्वथामा ने कौरवो का साथ दिया था। महाभारत के अनुसार अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के सम्मिलित अंशावतार थे। अश्वत्थामा अत्यंत शूरवीर, प्रचंड क्रोधी स्वभाव के योद्धा थे। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने ही अश्वत्थामा को चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था। अश्वत्थामा परम तेजस्वी थे जो अपनी दिव्य शक्तियों का उपयोग करने में माहिर थे। शास्त्रों के अनुसार अश्वस्थामा आज भी जीवित हैं।
भगवान हनुमान
कलियुग में हनुमानजी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता माने गए हैं। भगवान रुद्र के 11वें अवतार और मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के परम भक्त हनुमान जी की महिमा से हर कोई वाकिफ है। अंजनी पुत्र हनुमान जी को भी अमर रहने का वरदान मिला हुआ है। महावीर हनुमान रामायण काल में भगवान श्रीराम के परम भक्त रहे थे। हज़ारो वर्षो बाद वे महाभारत काल में भी नज़र आते है। महाभारत में उनके कई प्रसंग भी मिलते है। माता सीता ने हनुमान को लंका की अशोक वाटिका में राम का सन्देश सुनने के बाद आशीर्वाद दिया था की वे अज़र अमर रहेंगे और जब भगवान श्री राम इस धरती से अपने धाम वैंकुंठ को लोट रहे थे तब भगवान श्रीराम ने भी महावीर हनुमान को पृथ्वी के अंत तक पृथ्वी पर ही रहने की आज्ञा दी थी। उन्हें वरदान मिला है कि उन्हें ना कभी मौत आएगी और ना ही कभी बुढ़ापा। इसलिए माना जाता है की महावीर हनुमान आज भी जिन्दा है। हनुमान जी को अमर होने का वरदान मिला है जिसके कारण वो आज भी चिरंजीवी हैं।
ऋषि व्यास
ऋषि व्यास को वेद व्यास के नाम से भी जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, भगवान वेद व्यास जी चार वेदों ऋगवेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद और 18 पुराणों, महाभारत और श्रीमदभागवद गीता की रचना के रचनाकार भी माने जाते हैं। वेद व्यास ऋषि पराशर और सत्यवती के पुत्र थे। इनका जन्म यमुना नदी के एक द्वीप पर हुआ था और इनका रंग सांवला था। कहा जाता है वेद व्यास जी भी उन दिव्य महापुरुषों में शामिल हैं, जिन्हें अमर होने का वरदान प्राप्त है।
राजा बलि
राजा बलि दान के चर्चे दूर दूर तक थे। देवताओ को परास्त कर राजा बलि ने इंद्र लोक पर अपना अधिकार कर लिया था तब राजा बलि के अभिमान को चूर करने के लिए भगवान विष्णु ब्राह्मण का वेश धारण कर राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी थी। शास्त्रों के अनुसार राजा बलि भक्त प्रह्लाद के वंशज है। बलि ने भगवान विष्णु के वामन अवतार को अपना सब कुछ दान कर दिया था।राजा बलि की भक्ति से भगवान विष्णु अति प्रसन्न थे। इसी वजह से भगवान श्री हरी विष्णु जी ने उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान दिया था। राजा बलि की दानशीलता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उनका द्वारपाल बनना भी स्वीकार किया था। शास्त्रों की मान्यताओं के अनुसार, राजा बलि आज भी जीवित हैं। नियम से बंधे होने की वजह से राजा बलि को अमरता प्राप्त है।
विभिषण
राक्षस राज रावण के छोटे भाई हैं विभीषण। विभिषण श्री प्रभु राम के अनन्य भक्त थे। जब रावण ने माता सीता का हरण किया था तब विभिषण ने रावण को प्रभु राम से शत्रुता नहीं करने के लिए बहुत समझाया था। इस बात पर रावण ने विभिषण को लंका से निकाल दिया था। विभिषण प्रभु राम की सेवा में चले गए। उन्होंने रावण की अधर्मी नितियों का न सिर्फ विरोध किया, बल्कि रामायण काल में युद्ध के दौरान मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का साथ भी दिया। कहा जाता है कि विभिषण भी चिरंजीवी महापुरुषों में से एक हैं। इन्होने अधर्म को मिटाने में धर्म का साथ दिया। तब श्रीराम ने उन्हे अमरत्व का वरदान दिया था।
कृपाचार्य
कृपाचार्य अश्वथामा के मामा और कौरवों के कुलगुरु थे। कृपाचार्य गौतम ऋषि पुत्र हैं और इनकी बहन का नाम है कृपी। कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ था। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की और से सक्रिय थे। महाभारत काल के तपस्वी ऋषि कृपाचार्य कौरवों और पांडवों के गुरु थे। परम तपस्वी होने के साथ-साथ कृपाचार्य युद्ध नीति में भी पारंगत थे। हिंदू धर्म के शास्त्रों में कृपाचार्य को अमर बताया गया है, जो आज भी जीवित हैं ।
भगवान शिव के परम भक्त हैं ऋषि मार्कण्डेय। इन्होंने शिवजी को तप कर प्रसन्न किया और महामृत्युंजय मंत्र सिद्धि के कारण चिरंजीवी बन गए। महामृत्युंजय मंत्र का जाप मौत को दूर भगाने के लिए किया जाता है। चूँकि ऋषि मार्कंडेय ने इसी मंत्र को सिद्ध किया था इसलिए इन सातो के साथ साथ ऋषि मार्कंडेय को भी नित्य समरण के लिए कहा जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रामायण और महाभारत काल के ये सभी दिव्य पुरुष हजारों सालों से जीवित हैं. इनकी संख्या आठ है इसलिए इन्हें अष्ट चिरंजीवी भी कहा जाता है.








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