गंगा को पवित्र नदी क्यों कहा जाता है तथा क्यों पवित्र है गंगा जल ?
ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वी पर गंगा का अवतरण राजा भागीरथ के कठिन तप से हुआ था। राजा भागीरथ के 5500 सालों की घोर तपस्या से खुश होकर देवी गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुईं। गंगा नदी भारत की सबसे लंबी नदी है और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी नदी है। गंगा प्राचीन काल से ही भारतीय लोगो में अत्यंत पूजनीय रही है। इसका धार्मिक महत्व जितना है , विश्व में शायद ही किसी नदी का होगा। यह विश्व की एकमात्र नदी है, जिसे श्रद्धा से माता कहकर पुकारा जाता है। गंगा नदी को भारत में सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता है। सनातन धर्म के सबसे पवित्र और पुरातन ग्रंथ 'ऋगवेद' में भी गंगा नदी का जिक्र है। इस ग्रंथ में गंगा को जाह्नवी कहा गया है। गंगा नदी अपने विशेष जल और इसके विशेष गुण के कारण मूल्यवान मानी जाती है। यह भी माना जाता है कि गंगा का जन्म भगवान् विष्णु के पैरों से हुआ था। साथ ही यह भी माना जाता है की माँ गंगा शिव जी की जटाओं में निवास करती हैं। गंगा स्नान , पूजन और दर्शन करने से पापों का नाश होता है, व्याधियों से मुक्ति होती है। जो तीर्थ गंगा किनारे बसे हुए हैं, वे अन्य की तुलना में ज्यादा पवित्र माने जाते हैं। गंगा नदी के किनारे बहुत सारे तीर्थ स्थल हैं, जिनमें इलाहाबाद, वाराणसी, कानपुर, पटना और हरिद्वार मुख्य हैं। घर हो या मंदिर हर कहीं शुभ कार्यों के लिए गंगा जल का प्रयोग किया जाता है। हिंदू धर्म में किसी के भी जन्म या मृत्यु के बाद गंगा जल से घर को शुद्ध करने की परंपरा है। साथ ही, यदि कोई मरने की स्थिति में हो तो उसे गंगा जल पिलाने और दाह संस्कार के बाद उसकी राख को गंगा के पवित्र जल में प्रवाहित करने की भी पंरपरा रही है, क्योंकि धार्मिक मान्यताओं में गंगा पापों का नाश कर मोक्ष देने वाली देव नदी मानी गई है। एक अध्ययन में यह भी पाया गया है कि गंगा के पानी ने मच्छर प्रजनन नहीं करते जबकि दूसरे पानी में मलेरिया के मच्छर प्रजनन करते हैं। इस प्रकार के गुण अन्य किसी नदी के जल में नहीं पाए गए हैं। इस तरह गंगा जल धर्म भाव के कारण मन पर और विज्ञान की नजर से तन पर सकारात्मक प्रभाव देने वाला है। शायद इसीलिए हमारे ऋषियों ने गंगा को पवित्र नदी माना होगा। इसीलिए इस नदी का जल कभी सड़ता नहीं है। यह केवल धार्मिक नजरिए से ही पवित्र नहीं है, बल्कि विज्ञान ने भी गंगा के जल को पवित्र माना है।
गंगा जल पर किये शोध कार्यो से स्पष्ट है की वह वर्षो तक रखने पर भी ख़राब नहीं होता है। स्वास्थवर्धक तत्वों की अधिकता होने के कारण गंगा का जल अमृत के तुल्य, सर्व रोगनाशक, पाचक, मीठा, उत्तम, ह्रदय के लिए हितकर, आयु बढ़ाने वाला तथा त्रिदोष नाशक होता है। कई इतिहासकार भी बताते हैं कि सम्राट अकबर स्वयं तो गंगा जल का सेवन करते ही थे, मेहमानों को भी गंगा जल पिलाते थे। वे लिखते हैं कि अंग्रेज़ जब कलकत्ता से वापस इंग्लैंड जाते थे, तो पीने के लिए जहाज में गंगा का पानी ले जाते थे, क्योंकि वह सड़ता नहीं था। इसके विपरीत अंग्रेज़ जो पानी अपने देश से लाते थे वह रास्ते में ही सड़ जाता था। गंगा जल में पर्याप्त तत्व जैसे कैल्शियम, पोटेशियम, सोडियम आदि पाए जाते है और 45 प्रतिशत क्लोरीन होता है जो जल में कीटाणुओं को पनपने से रोकता है। इसी की उपस्थिति के कारण पानी सड़ता नहीं और न ही उसमे कीटाणु पैदा होते है। गंगा जल की वैज्ञानिक खोजों ने साफ कर दिया है कि गंगा गोमुख से निकलकर मैदानों में आने तक अनेक प्राकृतिक स्थानों, वनस्पतियों से होकर प्रवाहित होती है। इसलिए गंगा जल में औषधीय गुण पाए जाते हैं जो व्यक्ति को शक्ति प्रदान करते हैं। यह जल सभी तरह के रोग काटने की दवा भी है। वैज्ञानिक कहते हैं कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफ़ाज वायरस होते हैं। ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को मारने के बाद फिर छिप जाते हैं। ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को मारने के बाद फिर छिप जाते हैं। जिससे गंगा का जल लंबे समय तक प्रदूषित नहीं होता है। गंगा के पानी में प्रचूर मात्रा में गंधक भी होता है, इसलिए यह लंबे समय तक खराब नहीं होता और इसमें कीड़े नहीं पैदा होते। हालांकि इन गुणों के पीछे का कारण अभी बहुत हद तक अज्ञात है, कुछ लोग इसे चमत्कार कहते हैं और कुछ लोग इसे जड़ी-बूटियों और आयुर्वेद से जोड़ते हैं। विज्ञान भी इसके दैवीय गुणों को स्वीकार करता है। अध्यात्मिक जगत में इसको सकारात्मक उर्जा का चमत्कार कह सकते हैं।
गंगा स्नान की महिमा
कहा जाता है जैसे अग्नि ईंधन को जला देती है, उसी प्रकार सैकड़ो निषिद्ध कर्म करके भी यदि गंगा स्नान किया जाये तो उसका जल उनके सब पापो को भस्म कर देता है। कुरुक्षेत्र में स्नान करके मनुष्य पुण्य प्राप्त कर सकता है, पर कनखल और प्रयाग में स्नान अपेक्षाकृत अधिक विशेष है। प्रयाग के स्नान को अधिक पवित्र माना गया है। गंगा में स्नान करने या इसका जल पीने का पुण्य पूर्वजों की सातवीं पीढ़ी तक पहुंचता है। जिन-जिन स्थानों से होकर गंगा बहती हैं, उन स्थानों को पवित्र माना गया है।गंगा स्नान से पुण्य प्राप्ति के लिए श्रद्धा आवश्यक है। कहा गया है कि शुक्ल प्रतिपदा को गंगा स्नान नित्य स्नान से सौ गुना लाभदायक होता है। गंगा दशहरा पर गंगा स्नान व दान की भारी महिमा है। गंगा दशमी को व्रत करने से भगवान विष्णु जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। संक्रांति के दिन का स्नान नित्य स्नान से हजार गुना और चंद्र-सूर्य ग्रहण का स्नान लाख गुना लाभदायक है। चंद्रग्रहण सोमवार को तथा सूर्यग्रहण रविवार को पड़ने पर उस दिन का गंगा स्नान असंख्य गुना पुण्यकारक होता है।



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