यमराज का दूसरा नाम धर्मराज क्यों ? जानिए धर्मराज के कुछ खास रहस्य तथा मंदिरो के बारे में।
हिन्दू धर्म में तीन दंड नायक है यमराज, शनिदेव और भैरव। यमराज को 'मार्कण्डेय पुराण' के अनुसार दक्षिण दिशा के दिक्पाल और मृत्यु का देवता कहा गया है। प्राणी की मृत्यु या अंत को लाने वाले देवता यम है। यमलोक के स्वामी होने के कारण ये यमराज कहलाए। यमराज का नाम धर्मराज इसलिए पड़ा क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था। यमराज का पुराणों में विचित्र विवरण मिलता है। पुराणों के अनुसार यमराज का रंग हरा है और वे लाल वस्त्र पहनते हैं। यमराज का ही दूसरा नाम धर्मराज है क्योंकि यह धर्म और कर्म के अनुसार जीवों को अलग-अलग लोकों और योनियों में भेजते हैं। धर्मात्मा व्यक्ति को यह कुछ-कुछ विष्णु भगवान की तरह दर्शन देते हैं और पापियों को उग्र रुप में। चूँकि मृत्यु से सब डरते है, इसलिए यमराज से भी सब डरने लगे। जीवित प्राणी का जब अपना काम पूरा हो जाता है , तब मृत्यु के समय शरीर में से प्राण खींच लिए जाते है, ताकि प्राणी फिर नया शरीर प्राप्त कर नए सिरे से जीवन प्रारंभ कर सके।
यमराज सूर्य के पुत्र है और उनकी माता का नाम संज्ञा है। उनका वाहन भैंसा और संदेशवाहक पछी कबूतर, उल्लू और कौआ भी माना जाता है। यमराज भैंसे की सवारी करते हैं और उनके हाथ में गदा होती है। ऋग्वेद में कबूतर और उल्लू को यमराज का दूत बताया गया है। गरुड़ पुराण में कौआ को यम का दूत कहा गया है।यमराज अपने हाथ के कालसूत्र या कालपाश की बदौलत जीव के शरीर से प्राण निकल लेते है। यमपुरी यमराज की नगरी है, जिसके दो महाभयंकर चार आँखों वाले कुत्ते पहरेदार है। यमलोक के द्वार पर दो विशाल कुत्ते पहरे देते हैं। इसका उल्लेख हिन्दू धर्मग्रंथों के अलावा पारसी और यूनानी ग्रंथों में भी मिलता है। यमराज अपने सिंहासन पर न्यायमूर्ति की तरह बैठकर विचार भवन कालीची में मृतात्माओं को एक-एक कर बुलवाते है। यमराज के मुंशी 'चित्रगुप्त' हैं जिनके माध्यम से वे सभी प्राणियों के कर्मों और पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं। चित्रगुप्त की बही 'अग्रसन्धानी' में प्रत्येक जीव के पाप-पुण्य का हिसाब है। कहते हैं कि विधाता लिखता है, चित्रगुप्त बांचता है, यमदूत पकड़कर लाते हैं और यमराज दंड देते हैं। कर्मो को ध्यान में रखकर ही यमराज अपना फैसला देते है। यमलोक में चार द्वार हैं जिनमें पूर्वी द्वारा से प्रवेश सिर्फ धर्मात्मा और पुण्यात्माओं को मिलता है जबकि दक्षिण द्वार से पापियों का प्रवेश होता है जिसे यमलोक में यातनाएं भुगतनी पड़ती है।
यमराज की यो तो कई पत्नियां थी, लेकिन उनमे सुशीला, विजया और हेमनाल अधिक जानी जाती है। उनके पुत्रो में धर्मराज युधिष्ठिर को तो सभी जानते है। न्याय के पक्ष में फैसला देने के गुणो के कारण ही यमराज और युधिष्ठिर जगत में धर्मराज के नाम से जाने जाते है। यम द्वितीया के अवसर पर जिस दिन भाई-बहिन का त्यौहार भाई-दूज मनाया जाता है। यम और यमुना की पूजा का विधान बनाया गया है। उल्लेखनीय है की यमुना नदी को यमराज की बहन माना जाता है। स्कन्दपुराण' में कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को भी दीये जलाकर यम को प्रसन्न किया जाता है।
भोमवारी चतुर्दशी की यमतीर्थ के दर्शन कर सब पापो से छुटकारा मिल जाये, उसके लिए प्राचीन कल में यमराज ने यमतीर्थ में कठोर तपस्या करके भक्तो को सिद्धि प्रदान करने वाले यमेश्वर और यमादित्य की स्थापना की थी।इसको प्रणाम करने वाले एवं यमतीर्थ में स्नान करने वाले मनुष्यो को नारकीय यातनाओ को न तो भोगना पड़ता है और न ही यमलोक देखना पड़ता है। इसके अलावा मान्यता तो यहाँ तक है की यमतीर्थ में श्राद्ध करके, यमेश्वर का पूजन करने और यमादित्य को प्रणाम करके व्यक्ति अपने पितृ-ऋण से भी उऋण हो सकता है।
जानते हैं यमराज के खास मंदिरों के बारे में
भरमौर का यम मंदिर : यमराज का यह मंदिर हिमाचल के चम्बा जिले में भरमौर नाम स्थान पर स्थित है जो एक भवन के समान है। यह मंदिर देखने में एक घर की तरह दिखाई देता है जहां एक खाली कक्ष है जिमें भगवान यमराज अपने मुंशी चित्रगुप्त के साथ विराजमान हैं। माना जाता है कि इस मंदिर में चार अदृश्य द्वार हैं जो स्वर्ण, रजत, तांबा और लोहे के बने हैं। यमराज का फैसला आने के बाद यमदूत आत्मा को कर्मों के अनुसार इन्हीं द्वारों से स्वर्ग या नर्क में ले जाते हैं।
यमुना-धर्मराज मंदिर विश्राम घाट, मथुरा : यह मंदिर उत्तर प्रदेश के मथुरा में यमुना तट पर विश्राम घाट के पास स्थित है। इस बहन-भाई का मंदिर भी कहा जाता है क्योंकि यमुना और यमराज भगवान सूर्य के पुत्री और पुत्र थे। इस मंदिर में यमुना और धर्मराज जी की मूर्तियां एक साथ लगी हुई है। ऐसी पौराणिक मान्यता है की जो भी भाई, भैया दूज के दिन यमुना में स्नान करके इस मंदिर में दर्शन करता है उसे यमलोक जाने से मुक्ति मिल जाती है।
वाराणसी का धर्मराज मंदिर : काशी में यमराज से जुड़ी अनसुनी जानकारियां छिपी हैं। यहाँ मीर घाट पर मौजूद है अनादिकाल का धर्मेश्वर महादेव मंदिर जहां धर्मराज यमराज ने शिव की आराधना की थी। माना जाता है कि यम को यमराज की उपाधि यहीं पर मिली थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अज्ञात वास के दौरान यहां धर्मेश्वर महादेव की पूंजा की थी। मंदिर का इतिहास पृथ्वी पर गंगा अवतरण के भी पहले का है, जो काशी खंड में वर्णित है।




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