अक्षय तृतीया के दिन कैसे पाएं सबसे बड़ा धन

अक्षय तृतीया के दिन कैसे पाएं सबसे बड़ा धन


क्या अक्षय तृतीया सिर्फ खरीदारी का दिन है? क्या अक्षय तृतीया जैसे पावन पर्व को हम सिर्फ बाजार में घूमकर या फिर सोना-चांदी खरीदकर ही मना सकते हैं? जानते हैं कि कैसे मनाएं अक्षय तृतीया, कि सबसे बड़ा धन मिले

क्या है अक्षय तृतीया का महत्व

आम जनता अक्षय तृतीया को बहुत अच्छे ढंग से मनाने की कोशिश करती है।  सब अपनी जेब के आधार पर खरीदारी की योजना पहले से तय कर  कर लेते है।   ऐसे में हम सबको ये अवश्य विचार करना चाहिए कि क्या अक्षय तृतीया सिर्फ खरीदारी का दिन है?  क्या अक्षय तृतीया जैसे पावन पर्व को हम सिर्फ बाजार में घूमकर या फिर सोना-चांदी खरीदकर ही मना सकते हैं?  जानते हैं कि कैसे मनाएं अक्षय तृतीया, कि सबसे बड़ा धन मिले: 

अक्षय तृतीया का पावन पर्व वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. अक्षय का मतलब है जिसका कभी क्षय ना हो यानी जो कभी नष्ट ना हो, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं उनका अनेकों गुना फल मिलता है।   भविष्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया तिथि का विशेष महत्व है।  सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है।  इस दिन बिना पंचांग देखे भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश किया जा सकता है।  ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने परशुराम के रुप में अवतार अक्षय तृतीया के दिन ही लिया था।   इसलिए परशुराम का जन्मउत्सव भी इसी दिन मनाया जाता है।  

अक्षय तृतीया के दिन कैसे पाएं सबसे बड़ा धन

लोग अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदते हैं। ऐसी परंपरा सदियों से चली आ रही है। लेकिन क्या अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदना या कोई और चीज खरीदना जरूरी है?  जी नहीं, अक्षय तृतीया के दिन खरीदारी करने से कहीं ज्यादा महत्व दान करने का है।  अक्षय तृतीया के दिन यदि आप दान करेंगे तो निश्चित रूप से आपके जीवन में पॉजीटिविटी बढ़ेगी, परेशानियों से लड़ने की ताकत मिलेगी और सुख-समृद्धि बढ़ेगी। 

अपने घर में सुख-समृद्धि को बढ़ाने के लिए अक्षय तृतीया  के दिन गरीबों को आटा, चावल, दाल, फल, सब्जियां दान करें।  गर्मी से राहत के लिए गरीबों को जल पात्र, घड़ा, पानी वाले जग दान करें।  यदि हमारा स्वास्थ्य अच्छा रहे तो हम हर प्रकार का धन अर्जित कर सकते हैं।  इसलिए अच्छे स्वास्थ्य के लिए अक्षय तृतीया के दिन गरीब बीमार लोगों को दवाईयों का दान करें।  दवाईयों का दान करने से आपको विशेष पुण्य मिलेगा, गरीबों को मदद मिल जाएगी और उनके आशीर्वाद से आपको निरोगीकाया प्राप्त होगी। 

इसलिए इस बार अक्षय तृतीया के दिन आगे बढ़कर दान करें अपने बच्चों के हाथों से दान कराएं आपको सुकून मिलेगा परिवार में खुशियां बढ़ेंगी और यही सबसे बड़ा धन है।  
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How to get the biggest wealth on the day of Akshaya Tritiya


Is Akshaya Tritiya just a shopping day? Can we celebrate the holy festival like Akshaya Tritiya by just roaming the market or buying gold and silver? Know how to celebrate Akshaya Tritiya, that you can get the greatest wealth

What is the importance of Akshaya Tritiya

The general public tries to celebrate Akshaya Tritiya very well. Everyone decides the shopping plan in advance based on their pocket. In such a situation, we all must consider whether Akshaya Tritiya is just a shopping day? Can we celebrate the holy festival like Akshaya Tritiya by just roaming the market or buying gold and silver? Know how to celebrate Akshaya Tritiya, that you get the greatest wealth:

The holy festival of Akshaya Tritiya is celebrated on Tritiya Tithi of Shukla Paksha of Vaishakh Month. Akshaya means one who is never decayed, that is, never destroyed. According to mythological beliefs, every auspicious work done on this day results in many times.  According to the Bhavishya Purana, Akshaya Tritiya Tithi has special significance. The Satyuga and Treta Yugas have started from this date. On this day, auspicious tasks like marriage, home entry can be done without even seeing the Panchang (almanac). It is believed that Lord Vishnu took Avatar as Parashurama on the day of Akshaya Tritiya. Therefore, the birth anniversary of Parashurama is also celebrated on this day.

How to get the biggest wealth on the day of Akshaya Tritiya


People buy gold on the day of Akshaya Tritiya, such a tradition has been going on for centuries, but whether it is necessary to buy gold or something else on the day of Akshaya Tritiya. No, it is more important to donate than shopping on the day of Akshaya Tritiya. If you donate on the day of Akshaya Tritiya, you will definitely increase positiveness in your life, you will get strength to fight problems and prosperity will increase.

To increase happiness and prosperity in your home, donate flour, rice, pulses, fruits, vegetables to the poor on the day of Akshay Tritya. For relief from heat, donate water vessel, pot, water jug ​​to the poor. If our health is good, we can earn all kinds of money. So for good health, donate medicines to poor sick people on Akshaya Tritiya. By donating medicines, you will get special merit, the poor will get help and by their blessings you will get nirogikaya.

So this time on the day of Akshaya Tritiya go ahead and donate with the hands of your children, you will be relieved and happiness will increase in the family and this is the Biggest Wealth.

क्यों पूजनीय है पीपल का वृक्ष और क्या है इसका वैज्ञानिक महत्व ?

क्यों पूजनीय है पीपल का वृक्ष और क्या है इसका वैज्ञानिक महत्व ?



पीपल के पेड़ को पवित्र माना जाता है क्योंकि इसे सदियों से पूजा जाता है और इसका धार्मिक महत्व भी है। विभिन्न वेदों के अनुसार, पीपल के पेड़ ने विभिन्न प्रकार से  निरूपित किया गया हैं।   जैसे ऋग्वेद में इसे भगवान माना जाता है और अथर्ववेद में, इसे सभी देवताओं का घर बताया गया है। यज्ञ वेद में यह कहा गया है कि हर यज्ञ के लिए, पीपल का पेड़ बहुत महत्वपूर्ण है। पीपल का पेड़ सबसे मूल्यवान पेड़ है और इसके आध्यात्मिक और भौतिक दोनों लाभ हैं। भगवान बुद्ध को भी इसी पेड़ के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। तो आइए जाने  इस पवित्र वृक्ष के आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व के बारे में :-

जन्म और मृत्यु के चक्र का प्रतिनिधित्व करता है  
ऐसा कहा जाता है कि पीपल का पेड़ एक समय में अपने सभी पत्ते नहीं गिराता है। एक बार जब पेड़ से पत्ते गिरना शुरू हो जाते हैं, तो नया जन्म लेते ही नए पत्ते आते रहते हैं। और यह साधारण सी बात मृत्यु और जीवन के चक्र को दर्शाती है। इस प्रकार, यह आध्यात्मिक वास्तविकता से संबंधित है।


भगवान ब्रह्मा से जुड़ा  
पीपल का पेड़ भगवान ब्रह्मा से भी जुड़ा हुआ है, जो देवता अजन्मा है और वह कभी जन्म नहीं लेता। और भगवान ब्रह्मा ऐसे देवता हैं जिनके लिए अंत में आत्माओं को आत्मसात किया जाता है। यह भी एक कारण है कि पीपल के पेड़ के नीचे अंतिम संस्कार किया जाता है।

भगवान विष्णु का घर
महाभारत की पवित्र पुस्तक में, भगवान कृष्ण ने कहा है कि वह पीपल का पेड़ है। वृक्ष की जड़ें विष्णु हैं, शाखाएँ नारायण हैं, तने केशव हैं और पत्तियाँ हरि हैं। और इसी कारण से, प्राचीन काल से, पीपल के पेड़ की पूजा करने की परंपरा का पालन किया जाता है।


स्थायी आध्यात्मिकता का प्रतीक है
यह कहा जाता है कि पीपल का पेड़ अमर है क्योंकि यह कभी नहीं मरता है जो स्थायी प्रकृति का प्रतीक है और स्थायी आत्मा से संबंधित है। जैसे मानव शरीर लुप्त हो जाता है लेकिन आत्मा कभी नहीं मरती  और यह एक और कारण है जिसकी वजह से पीपल के पेड़ की पूजा की जाती है।


सावित्री और सत्यवान की कहानी
पवित्र ग्रंथ महाभारत में सावित्री की कहानी का भी उल्लेख किया गया है जो अपने पति के जीवन को यमराज से वापस लाने  में सफल हुई थी। सावित्री के पति सत्यवान की पीपल के पेड़ के नीचे मृत्यु हो गई, जिसके बाद सावित्री बुरी तरह से आहत हुईं, इसलिए उन्होंने पीपल के पेड़ के चारों ओर पवित्र धागा बांधकर मृत्यु के देवता यमराज की पूजा शुरू कर दी। इसने बाद में भगवान यमराज को अपने पति के जीवन को वापस करने के लिए मजबूर किया। तब से, हिंदू महिलाएं पीपल पूजा के रिवाज का पालन करती हैं।

धर्म शास्त्रों के अनुसार हर व्यक्ति को जीवन में पीपल का पेड़ अवश्य ही लगाना चाहिए । पीपल का पौधा लगाने वाले व्यक्ति को जीवन में किसी भी प्रकार का संकट नहीं रहता है।

पीपल के वृक्ष को काटना 

पद्म पुराण में लिखा है की जो मूर्ख मनुष्य पीपल के वृक्ष को काटता है, उसे इससे होने वाले पाप से छूटने का कोई उपाय नहीं है।  हर रविवार पीपल के नीचे देवताओं का वास न होकर दरिद्रता का वास होता है। अत: इस दिन पीपल की पूजा वर्जित मानी जाती है। यदि पीपल के वृक्ष को काटना बहुत जरूरी हो तो उसे रविवार को ही काटा जा सकता है।

क्या है पीपल का  वैज्ञानिक महत्व ?

पीपल  एक मात्र ऐसा वृक्ष है जो 24 घंटे दिन-रात ऑक्सीजन को छोडता रहता है जो जीव धारियों के लिए प्राण वायु कही जाती है।  प्रत्येक जीवधारी ऑक्सीजन लेता है और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ता है।  वैज्ञानिक खोजों से यह सिद्ध हो चुका है कि ऑक्सीजन देने वाले देने के अलावा पीपल वृक्ष की अनेक विशेषताएं भी हैं जैसे इसकी छाया सर्दी में गर्मी देती  है और गर्मी में शीतलता देती है।  इसके अलावा पीपल के पत्तों से स्पर्श करने से वायु में मिले संक्रामक वायरस नष्ट हो जाते हैं।  आयुर्वेद के अनुसार इसकी छाल, पत्ते और फल आदि से अनेक प्रकार की रोग नाशक दवाएं भी बनती हैं।  इस तरह वैज्ञानिक दृष्टि से भी पीपल का वृक्ष बहुत ही पूजनीय है।

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Why Peepal tree is Worshiped and what is its Scientific Importance 

The Peepal tree is considered holy as it is worshipped for centuries and also has religious significance. According to the various Vedas, Peepal tree denoted for different things. Like in Rig Veda, it is considered as a God and in Atharva Veda, it is described as the home of all Gods. While in Yajur Veda, it is stated that for every yagya, the peepal tree is very important. Peepal tree is the most valuable tree and it has both spiritual and material benefits. So, to know more about this sacred tree, we have shared the spiritual significance of peepal tree.

Represents cycle of Birth and Death
it is said that Peepal tree never sheds all of its leaves at one time. Once the leaves start to fall from the tree, the new leaves keep coming by taking a new birth. And this simple thing signifies the cycle of death and life. Thus, it relates to the spiritual reality.

Linked to Lord Brahma
The Peepal tree is also linked to Lord Brahma, the god who is unborn and never takes birth. And Lord Brahma is the god to whom the spirits are assimilated to, in the end. This is also one of the reasons why last rites are performed under the Peepal tree.

House of Lord Vishnu
in the holy book of Mahabharata, Lord Krishna has said that he is the Peepal tree. The roots of the tree are Vishnu, branches are Narayana, stems are Keshav and the leaves are Hari himself. And for this reason, since ancient times, the tradition of worshipping Peepal tree is followed.

Signifies Permanent Spirituality
It is said that Peepal tree is immortal as it never dies which also signifies the permanent nature and relates to the permanent soul. Just like human body vanishes but the soul never does. And this is another reason because of which Peepal tree is worshipped.

The story of Savitri and Satyavan

The holy book Mahabharata also mentions the story of Savitri who bought back his husband’s life. Savitri’s husband Satyavan died under the Peepal tree, after which Savitri was badly hurt so she began to worship the Lord of death, Yamraj by tying the sacred thread around the Peepal tree. This later compelled Lord Yamraja to return her husband’s life. Since then, the Hindu Women follow the custom of Peepal Puja.

Cutting peepal tree
It is written in the Padma Purana that a foolish man who cuts a peepal tree has no way to get rid of the sin caused by it. Every Sunday, instead of the abode of the gods, there is the abode of poverty. Therefore, worship of Peepal on sunday is not advisable and is not to be considered good. If it is very important to cut peepal tree, then it can be pruned only on Sunday.

What is the scientific importance of Peepal?
Peepal is the only tree that leaves oxygen for 24 hours day and night, which is said to be the life of the living beings. Each organism takes oxygen and releases carbon dioxide. It has been proved by scientific discoveries that apart from giving oxygen, Peepal tree also has many characteristics such as its shade gives warmth in winter and cools in summer. Apart from this, infectious viruses found in air are destroyed by touching with peepal leaves. According to Ayurveda, its bark, leaves and fruits etc. are also helpful in making different types of medicines. In this way, the peepal tree is useful even from a scientific point of view also. 

हनुमानजी को इन लोगों ने देखा था साक्षात


हनुमानजी को इन लोगों ने देखा था साक्षात

बजरंग बलि हनुमान जी को वानर कहा जाता है।  सबसे पहले हम ये जान ले कि वानर का मतलब बन्दर नहीं होता।  वानर का मतलब होता है जंगल में विचरण करने वाला यानि की जंगल में रहने वाला।  बजरंग बली को इन्द्र से इच्छा मृत्यु का वरदान मिला। श्री राम के वरदान अनुसार कलयुग  का अंत होने पर उन्हें उनके सायुज्य की प्राप्ति होगी। सीता माता के वरदान के अनुसार वे चिरंजीवी रहेंगे। वे आज भी अपने भक्तों की हर परिस्थिति में मदद करते हैं। ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने राम भक्त हनुमानजी को साक्षात देखा है। उन्हीं में से कुछ लोगों के बारे में हम आपको बताते हैं।
   
भीम ने देखा :- 
भीम अपने बड़े भ्राता की आज्ञा का पालन करते हुए ऋषि पुरुष मृगा को खोजने निकल पड़े। खोजते-खोजते वे घने जंगलों में पहुंच गए। जंगल में चलते वक्त भीम को मार्ग में लेटे हनुमान जी दिखाई दिए। भीम ने लेटे हुए हनुमान जी को बंदर समझ कर उनसे अपनी पूंछ हटाने के लिए कहा। तब बंदर ने चुनौती देते हुए कहा कि अगर वह उसकी पूंछ हटा सकता है तो हटा दे, लेकिन भीम उनकी पूंछ हिला भी नहीं पाए। तब जाकर उन्हें एहसास हुआ कि यह कोई साधारण बंदर नहीं है। यह बंदर और कोई नहीं, बल्कि हनुमानजी थे। भीम ने यह जानकर हनुमान जी से क्षमा मांगी।
   
अर्जुन ने देखा :- 


एक दिन अर्जुन रामेश्वरम चले गए। वहां उनकी मुलाकात हनुमान जी से हुई थी। रामसेतु देखकर अर्जुन ने कहा कि मैं होता तो यह सेतु बाणों से बना देता। यह सुनकर हनुमान ने कहा कि आपके बाणों से बना सेतु एक भी व्यक्ति का भार झेल नहीं सकता। तब अर्जुन ने कहा कि यदि मेरा बनाया सेतु आपके चलने से टूट जाएगा तो मैं अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगा। हनुमानजी ने कहा कि मुझे स्वीकार है। मेरे दो चरण ही इसने झेल लिए तो मैं हार स्वीकार कर लूंगा। बस फिर क्या था, अर्जुन ने बाणों का सेतु बनाया। हनुमान जी का पहला पग पड़ते ही सेतु डगमगाने लगा और टूट गया। यह देख अर्जुन अग्नि जलाकर खुद को जलाने लगे। तभी श्री कृष्ण प्रकट हुए और अर्जुन से बोले कि श्रीराम का नाम लेकर सेतु बनाओ। अर्जुन ने ऐसा ही किया। हनुमान जी से फिर पग रखा लेकिन इस बार सेतु नहीं टूटा। तब हनुमान ने अर्जुन से कहा कि वे युद्ध के अंत तक उनकी रक्षा करेंगे। इसीलिए कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन के रथ के ध्वज में हनुमान विराजमान हुए और अंत तक उनकी रक्षा की।

माधवाचार्य जी ने देखा :-
माधवाचार्य जी का जन्म 1238 ई में हुआ था। माधवाचार्य जी ने हनुमानजी को साक्षात देखा था। माधवाचार्य जी एक महान संत थे जिन्होंने ब्रह्मसूत्र और 10 उपनिषदों की व्याख्या की है। माधवाचार्य जी प्रभु श्री राम के परम भक्त थे। यही कारण था कि एक दिन उनको हनुमानजी के साक्षात दर्शन हुए थे। संत माधवाचार्य ने हनुमानजी को अपने आश्रम में देखने की बात बताई थी। माधवाचार्य जी 79 वर्ष की अवस्था में सन् 1317 ई. में ब्रह्म तत्व में विलीन हो गए।

 तुलसी दास जी ने देखा :-   
तुलसी दास जी के विषय में जो साक्ष्य मिलते हैं उसके अनुसार इनका जन्म 1554 ईस्वी में श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। तुलसी दास जी जब चित्रकूट में रहते थे तब जंगल में शौच करने जाते थे और शौच का जल जो शेष रह जाता था, उसे वे एक शमी वृक्ष के ऊपर डाल देते थे। जिस शमी वृक्ष के ऊपर वे जल डालते, उसके ऊपर एक प्रेत रहता था। प्रेत इस कार्य से प्रसन्न हो गया और एक दिन उसने तुलसी दास के समक्ष प्रकट होकर कहा कि आप मुझसे कुछ भी मांग लें।

तुलसी दास जी ने कहा कि प्रभु दर्शन के अलावा मेरी कोई इच्छा नहीं है। प्रेत ने कहा कि ऐसा तो मैं कर नहीं सकता लेकिन मैं एक रास्ता बता सकता हूं। वह यह कि जहां भी हरि कथा होती है, वहां हनुमान जी किसी न किसी रूप में आकर बैठ जाते हैं। मैं तुम्हें इशारे से बता दूंगा। वे ही तुम्हें प्रभु दर्शन करा सकते हैं। बस यही हुआ और तुलसी दास जी ने हनुमान जी के पैर पकड़ लिए। अंत में हार कर कुष्ठी रूप में राम कथा सुन रहे हनुमान जी से भगवान के दर्शन करवाने का वचन दे दिया। फिर एक दिन मंदाकिनी के तट पर तुलसी दास जी चंदन घिस रहे थे। भगवान बालक रूप में आकर उनसे चंदन मांग-मांगकर लगा रहे थे, तब हनुमान जी ने तोता बनकर यह दोहा पढ़ा-

'चित्रकूट के घाट पै भई संतनि भीर।
 तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक देत रघुवीर।'

          || जय हनुमान जी ||

अति दुर्लभ एक ग्रन्थ-सीधा पड़ो तो राम कथा उल्टा पड़ो तो कृष्ण कथा

अति दुर्लभ एक ग्रन्थ-सीधा पड़ो तो राम कथा 

उल्टा पड़ो तो कृष्ण कथा 


आज हम लेकर आये है एक ऐसे अति दुर्लभ ग्रंथ के बारे में जानकारी जो शायद ही आपने सुना या पढ़ा होगा।  जी हा आज हम बता रहे है एक ऐसे ग्रंथ  के बारे में जिसके शलोको को आप चाहे सीधा पढ़े या उल्टा दोनों ही तरह से उसका अर्थ बनता है।  ऐसा भी हमारे सनातन धर्म मे है।  इसे तो सात आश्चर्यो  में से पहला आश्चर्य माना जाना चाहिए।  यह दक्षिण भारत का एक ग्रन्थ है।  क्या ऐसा संभव है कि जब आप किताब को सीधा पढ़े तो राम कथा के रूप में पढ़ी जाती है और जब उसी किताब में लिखित शब्दों को उल्टा करके पढ़े तो कृष्ण कथा के रूप में होता है। जी हां, कांचीपुरम के 17 वें शदी के कवि वेंकटाध्वरी रचित ग्रन्थ "राघवयादियम्" ऐसा ही एक अद्भुत ग्रन्थ है।  श्री वेंकटाध्वरि का जन्म कांचीपुरम के एक गांव अरसनीपलै में हुआ था। इन्होंने कुल 14 रचनाएं लिखी हैं जिनमें से "राघवयादवीयम्" और "लक्ष्मीसहस्त्रम्" सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। इस तरह से ऐसे  ग्रंथ को लिखना  सचमुच बहुत ही रोचक, अद्भुत, आश्चर्य, दुष्कर और दुर्लभ है।

इस रचना के सन्दर्भ में एक आश्चर्यजनक बात ये है कि अगर हम श्रीराम और श्रीकृष्ण के जीवन को देखें तो उन दोनों के जीवन भी एक दूसरे से बिलकुल उलटे हैं। श्रीराम भगवान विष्णु की १२ कलाओं के साथ जन्मे तो श्रीकृष्ण १६, श्रीराम क्षत्रिय कुल में जन्में तो श्रीकृष्ण यादव कुल में, श्रीराम को जीवन भर कष्ट भोगना पड़ा तो श्रीकृष्ण जीवन भर ऐश्वर्य में रहे, श्रीराम को पत्नी का वियोग सहना पड़ा तो श्रीकृष्ण को १६१०८ पत्नियों का सुख प्राप्त हुआ, श्रीराम ने धर्म के लिए कभी छल नहीं किया तो श्रीकृष्ण ने धर्म के लिए छल भी किया।

वैसे तो इस ग्रन्थ में केवल ३० श्लोक हैं किन्तु अगर हम श्रीराम और श्रीकृष्ण की कथाओं का अलग अलग वर्णन करें तो श्लोकों की कुल संख्या ६० हो जाती है। तो ३० श्लोकों को इस प्रकार से लिखना कि उनमे श्रीराम और श्रीकृष्ण का भाव पूर्ण रूप से रहे, अपने आप में ही एक आश्चर्य है। ये ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखा गया है। शब्दों का ऐसा अद्भुत ताना बाना केवल संस्कृत में ही बुना जा सकता है। इस ग्रन्थ को ‘अनुलोम-विलोम काव्य 'भी कहा जाता है।  इन श्लोकों को सीधा-सीधा पढ़िए  तो रामकथा बनती है और विपरीत (उल्टा) क्रम में पढ़ने पर कृष्ण शास्त्र। इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्ण शास्त्र (उल्टे यानी विलोम) के भी 30 श्लोक जोड़ के लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक।  पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) + यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है - "राघवयादवीयम।"

उदाहरण के तौर पर पुस्तक का पहला श्लोक है:

वन्दे वहं देवं तं श्रीतं रतनतारं कालं भवसा यः।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोधे वासे रा 1।

अर्थातः
मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं, जिनके ह्रदय में सीताजी रहती है और जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्री की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया और वनवास पूरा कर अयोध्या वापिस लौटे।

अब यह श्लोक का विलोमम्: इस प्रकार है

सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः।
यस्सादलंकारं तरं तं श्रीतं वन्देंहं देवम् 1।

अर्थातः
मैं रूक्मिणी और गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रणाम करता हूं, जो सदा ही माता लक्ष्मी के साथ विराजमान है और जिनकी शोभा समस्त जवाहरातों की शोभा हर लेती है।

है ना अद्भुत। 

कौवे से जुड़े शकुन और अपशकुन का रहस्य ?

कौवे से जुड़े शकुन और अपशकुन का रहस्य ?


हमारे देश में  पुराने समय से ही शकुन और अपशकुन  पर  बहुत ध्यान दिया  जाता था।  इसी  वजह से शकुन शास्त्र की रचना की  गयी थी।  शकुन शास्त्र के अनुसार बहुत सारे  ऐसे जानवर और पक्षी होते है जिनको अलग अलग अवस्था में देखने से अलग अलग फल की प्राप्ति होती है और प्रत्येक जानवर के विचित्र व्यवहार एवं हरकतों का कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य होता है। जानवरों के संबंध में अनेको बाते  हमारे पुराणों एवं ग्रंथो में भी विस्तार से बतलाई गई है। हमारे सनातन धर्म में माता के रूप में पूजनीय गाय के संबंध में तो बहुत सी बाते आप लोग जानते ही होंगे परन्तु आज हम जानवरों के संबंध में पुराणों से ली गई कुछ ऐसी बातो के बारे में बतायेंगे जो आपने पहले कभी भी किसी से नहीं सुनी होगी। जानवरों से जुड़े रहस्यों के संबंध में पुराणों में बहुत ही विचित्र बाते बतलाई गई जो किसी को आश्चर्य में डाल सकती है।  
कौए का रहस्य 
कौए के संबंध में पुराणों में बहुत ही विचित्र बाते बतलाई गई है। मान्यता है की कौआ अतिथि आगमन का सूचक एवं पितरो का आश्रम स्थल माना जाता है।

हमारे धर्म ग्रन्थ की एक कथा के अनुसार इस पक्षी ने  देवताओ और राक्षसों के द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत का रस चख लिया था। यही कारण है की कौए  की कभी भी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होती।  यह पक्षी कभी किसी बिमारी अथवा अपने वृद्धा अवस्था के कारण मृत्यु को प्राप्त नहीं होता।  इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से होती है।

यह बहुत ही रोचक है की जिस दिन कौए की मृत्यु होती है उस दिन उसका साथी भोजन ग्रहण नहीं करता।   ये आपने कभी ख्याल किया हो तो यह बात गौर देने वाली है की कौआ कभी भी अकेले में भोजन ग्रहण नहीं करता। यह पक्षी किसी साथी के साथ मिलकर ही भोजन करता है।

कौए  की लम्बाई करीब 20  इंच होती है तथा यह गहरे काले रंग का पक्षी है।  जिनमे नर और मादा दोनों एक समान ही दिखाई देते है. यह बगैर थके मिलो उड़ सकता है. कौए के बारे में पुराण में बतलाया गया है की किसी भविष्य में होने वाली घटनाओं का आभास पूर्व ही हो जाता है. 

पितरो का आश्रय स्थल - श्राध्द पक्ष में कौए का महत्व बहुत ही अधिक माना गया है . इस पक्ष में यदि कोई भी व्यक्ति कौए को भोजन कराता है तो यह भोजन कौए के माध्यम से उसके पित्तर ग्रहण करते है ।शास्त्रों में यह बात स्पष्ट बतलाई गई है की कोई भी क्षमतावान आत्मा कौए के शरीर में विचरण कर सकती है।

भादौ महीने के 16 दिन कौआ हर घर की छत का मेहमान बनता है। ये 16 दिन श्राद्ध पक्ष के दिन माने जाते हैं।  कौए एवं पीपल को पितृ प्रतीक माना जाता है।  इन दिनों कौए को खाना खिलाकर एवं पीपल को पानी पिलाकर पितरों को तृप्त किया जाता है।

कौवे से जुड़े शकुन और अपशकुन

1 . यदि आप शनिदेव को प्रसन्न करना चाहते हो कौए को भोजन करना चाहिए।

2 . यदि आपके मुंडेर पर कोई कौआ बोले तो मेहमान अवश्य आते है।

3 . यदि कौआ घर की उत्तर दिशा से बोले तो समझे जल्द ही आप पर लक्ष्मी की कृपा होने वाली है। कौआ यदि आपको पानी के  बर्तन में स्नान करता हुआ दिखाई दे तो भी ये समझना चाहिए कि माता लक्ष्मी की कृपा जल्दी ही आप पर होने वाली है।  

4 . पश्चिम दिशा से बोले तो घर में मेहमान आते है।

5 . पूर्व में बोले तो शुभ समाचार आता है।

6 . दक्षिण दिशा से बोले तो बुरा समाचार आता है।

7 . कौवे को भोजन कराने से अनिष्ट व शत्रु का नाश होता है।

केवल एक चमत्कारी मंत्र से ले पूरी रामायण पढ़ने का पुण्य

केवल एक चमत्कारी मंत्र से ले पूरी रामायण पढ़ने का पुण्य और सभी परेशानियों का हल।


हमारे देश में भारतवासी जहाँ भी जाते हैं, रामायण अपने साथ ले के चलते है। रामायण हमारे जीवन में विश्वास का एक वृक्ष है और यह जब किसी भी आदमी के पास रहता है तो उसको ये संतोष रहता है की मेरे पास एक रक्षा कवच के सामान है। धर्म ग्रंथो के अनुसार भी ये माना जाता है की रामायण का पाठ करने वाला व्यक्ति पुण्य फल का फल होता है और पापो से कोसो दूर हो जाता है। लेकिन बदलते समय में सम्पूर्ण रामायण का पाठ हर दिन करना हर किसी के लिए संभव नहीं है। रामायण में प्रभु श्री राम के सभी कार्यो और जीवन का सजीव वर्णन किया गया है। इसलिए लोग रामायण पढने की सलाह देते हैं कि हम भी अपने जीवन में प्रभु राम की तरह अच्छे कार्य करे और अपने जीवन को बनाए रखें। यदि प्रतिदिन केवल एक मंत्र का जप कर लेते है तो सम्पूर्ण रामायण का फल प्राप्त करते है। इस चमत्कारी मंत्र को एक श्लोकी रामायण के नाम से भी जानते है। इस एक श्लोक रामायण में प्रभु श्री राम जी के जीवन का सार है। यह शक्तिशाली मंत्र हर तरह की परेशानियों को खत्म करने की ताकत रखता है और घर में खुशहाली लाता है। 

ये चमत्कारी एक श्लोकी रामायण मंत्र है।

"आदौ राम तपोवनादि गमनं, हती मृगं कांचनम्।
वैदीही वस्त्रं जटायुमरणं, सुग्रीवसुम्भ गणानम् ।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतारणं, लंकापुरीदाहंम्।
पश्चाद् रावण कुम्भकर्ण हन्नम्, एतादि रामायणम्। "

यह इस मंत्र का सरल अर्थ है।
एक बार श्रीराम वनवास में गए, वहां उन्होंने स्वर्ण मृग का पीछा किया और उसका वध किया। इसी दौरान उनकी पत्नी वैदेही यानी सीताजी का रावण ने हरण कर लिया और उनकी रक्षा करते हुए पक्षीराज जटायु ने अपने प्राण गवाएं। श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता हुई। बालि का वध किया। समुद्र पर पुल बनाकर पार किया। लंकापुरी का दहन हुआ, इसके पश्चात रावण और कुंभकर्ण का वध हुआ। यह पूरी तरह से रामायण की संक्षिप्त कहानी है।

इस मंत्र जाप के फायदे
जिस घर में इस मंत्र का जाप होता है वह सुख, समरता और शांति का वास होता है और बुरे विचारों से छुटकारा मिल जाता है।] धन सम्पति का आगमन होता है। घर में नकारात्मक ऊर्जा और घर के हर प्रकार के वास्तु दोष भी खत्म हो जाते हैं। कर्ज आदि से भी मुक्ति मिलती है और मानसिक मजबूती भी मिलती है। पूजा करते समय इस मंत्र जाप करने से भगवान की कृपा जल्दी मिल जाती है।

मंत्र जपने का तरीका
इस मंत्र का जाप आप अपने घर के मंदिर में कर सकते हैं। रोज सुबह स्नान के बाद मंदिर में पूजा करें, आसन पर बैठकर भगवान श्रीराम का ध्यान करते हुए हनुमान जी के आगे एक दिया जगा ले और मंत्र का जाप करें। मंत्र जाप कम से कम 108 बार करें, ज्यादा समय ना हो तो 51 या 11 बार करें। इतना भी समय ना हो तो कम से कम 7 बार अवश्य करे और श्रीराम के आशीर्वाद से अपनी दिनचर्या शुरू करें। देखिए आपके कदम चूमेंगी।
जय श्री राम 
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Reading Single Mantra Gives the Benefit of Reading Whole Ramayana and all the Problems of Life Can be Solved

Wherever Indians go in our country, Ramayana is carried with them. Ramayana is a tree of faith in our life and when it stays with any man, he has the satisfaction that I have a protective shield. According to the religious texts, it is also believed that a person reciting the Ramayana is the fruit of the virtuous fruit, and one gets away from sins. But in changing times, it is not possible for everyone to recite the entire Ramayana every day. All works and life of Lord Sri Rama are described lively in Ramayana. Therefore people recommend to read Ramayana, that we too should do good works in our life like Lord Rama and maintain our life. If you chant only one mantra daily then you get the fruits of the entire Ramayana. This miraculous mantra is also known as ONE SHLOKI RAMAYANA. The Ramayana has the essence of the life of Lord Rama. This powerful mantra has the power to eliminate all kinds of troubles and bring happiness in your life.

This miracle one Shloki Ramayana Mantra is 

"Ado Ram Tapovanadi Gamanam, Hati Mrigam Kanchanam.
Vaidhi Vastram, Jatayumaranam, Sugrivasumbha Gananam.
BaliNirdalanam Samudratarnam, LankaPuridahanam.
Paschad Ravana Kumbhakarna Hannam, Etadi Ramayanam. "

This is the simple meaning of this mantra
Once Shriram went into exile, there he chased and killed the golden deer. During this time, his wife Vaidehi i.e. Sitaji was took away by Ravana and while protecting her, Pakshiraj Jatayu lost his life. Shriram and Sugriva became friends. Killed Bali.  Made a bridge over the sea and crossed sea. Lankapuri was burnt.  After this Ravana and Kumbhakarna were killed. This is a brief story of the Ramayana as a whole..

Benefits of Chanting this Mantra
The house in which this mantra is chanted is the abode of happiness, prosperity and peace and gets rid of bad thoughts. Wealth comes. Negative energy in the house and all types of Vastu doshas of the house also disappear. Get rid of debt and mental strength become strength.. Chanting this mantra while worshiping gives the grace of God quickly.

Method of chanting
You can chant this mantra in your home temple. Every morning after bathing, worship in the temple, sit on a pedestal and meditate on Lord Shri Ram, take a lamp in front of Hanuman ji and chant the mantra. Chant the mantra at least 108 times, if there is not much time, do it 51 or 11 times. If you do not have that much time, then do at least 7 times and start your daily routine with the blessings of Shri Ram. See success will comes to your footsteps very early. 
Jai Shree Ram

रामायण में जानिये कछुए की एक रोचक कहानी

रामायण में जानिये कछुए की एक रोचक कहानी

आप सबने कछुए और खरगोश की कहानी तो सुनी ही होगी।  लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य  होगा की रामायण में भी  कछुए की एक कहानी है।  जानिये इसके पीछे की रामायण में अनसुनी रोचक कथा :- 

पुराणों के अनुसार भगवान राम को गंगा पार कराने वाले केवट पूर्वजन्म में कछुआ थे और श्रीहरि के अनन्य भक्त थे। मोक्ष पाने की इच्छा से उन्होंने क्षीरसागर में भगवान विष्णु के चरण स्पर्श करने की कई बार कोशिशें की लेकिन असफल रहे। यहाँ तक कि सृष्टि की रचना हो गई और सतयुग बीत जाने के बाद त्रेता युग आ गया। इस मध्य उस कछुए ने अनेक बार अनेक योनियों में जन्म लिया और प्रत्येक जन्म में भगवान की प्राप्ति का प्रयत्न करता रहा । अपने तपोबल से उसने दिव्य दृष्टि को प्राप्त कर लिया। कछुए को पता था कि त्रेता युग में वही क्षीरसागर में शयन करने वाले विष्णु राम का और वही शेषनाग लक्ष्मण का व वही लक्ष्मीदेवी सीता के रूप में अवतरित होंगे तथा वनवास के समय उन्हें गंगा पार उतरने की आवश्यकता पड़ेगी । इसीलिये वह भी केवट बन कर वहाँ आ गया था ।

इस बार केवट इस अवसर को किसी भी प्रकार हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। उसे याद था कि शेषनाग क्रोध कर के फुँफकारते थे और मैं डर जाता था । अबकी बार वे लक्ष्मण के रूप में मुझ पर अपना बाण भी चला सकते हैं, पर इस बार उसने अपने भय को त्याग दिया था।  लक्ष्मण के तीर से मर जाना उसे स्वीकार था पर इस अवसर को खो देना नहीं । केवट ने कहा - हे राम,  मुझे आपकी दुहाई और दशरथजी की सौगंध है, मैं आपसे बिल्कुल सच कह रहा हूँ । भले ही लक्ष्मणजी मुझे तीर मार दें, पर जब तक मैं आपके पैरों को पखार नहीं लूँगा,  मैं पार नहीं उतारूँगा ।   केवट के प्रेम से लपेटे हुये अटपटे वचन को सुन कर करुणा के धाम श्री रामचन्द्रजी जानकी और लक्ष्मण की ओर देख कर हँसे । जैसे वे उनसे पूछ रहे हैं- कहो, अब क्या करूँ, उस समय तो केवल अँगूठे को स्पर्श करना चाहता था और तुम लोग इसे भगा देते थे पर अब तो यह दोनों पैर माँग रहा है !
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केवट बहुत चतुर था । उसने अपने साथ ही साथ अपने परिवार और पितरों को भी मोक्ष प्रदान करवा दिया ।चरणों को धोकर पूरे परिवार सहित उस चरणामृत का पान करके उसी जल से पितरों का तर्पण करके अपने पितरों को भी भवसागर से पार कर फिर आनन्दपूर्वक प्रभु श्री रामचन्द्र को गंगा के पार ले गया । 

यह उसी समय का प्रसंग है  जब केवट भगवान् के चरण धो रहे है ।  बड़ा प्यारा दृश्य है।  भगवान् का एक पैर धोकर उसे निकलकर कठौती से बाहर रख देते है, और जब दूसरा धोने लगते है,  तो पहला वाला पैर गीला होने से जमीन पर रखने से धूल भरा हो जाता है।  केवट दूसरा पैर बाहर रखते है, फिर पहले वाले को धोते है, एक-एक पैर को सात-सात बार धोते है । केवट ये सब देख देख कर कहता है की प्रभु एक पैर कठौती में रखिये, दूसरा मेरे हाथ में रखिये।  भगवान केवट से बोले, ऐसे तो मै गिर जाऊँगा।  केवट बोला चिंता क्यों करते हो भगवन ,दोनों हाथो को मेरे सर पर रख खड़े हो जाईये फिर नहीं गिरोगे।  भगवान् केवट से बोले - भईया केवट,  मेरे अंदर का अभिमान आज टूट गया। केवट बोला - प्रभु ! क्या कह रहे है ?. भगवान् बोले - सच कह रहा हूँ केवट, अभी तक मेरे अंदर अभिमान था, कि मैं भक्तों को गिरने से बचाता हूँ, पर आज पता चला कि, भक्त भी भगवान् को गिरने से बचाता है । 
जय राम जी की।।

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