रामायण में जानिये कछुए की एक रोचक कहानी
आप सबने कछुए और खरगोश की कहानी तो सुनी ही होगी। लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य होगा की रामायण में भी कछुए की एक कहानी है। जानिये इसके पीछे की रामायण में अनसुनी रोचक कथा :-
पुराणों के अनुसार भगवान राम को गंगा पार कराने वाले केवट पूर्वजन्म में कछुआ थे और श्रीहरि के अनन्य भक्त थे। मोक्ष पाने की इच्छा से उन्होंने क्षीरसागर में भगवान विष्णु के चरण स्पर्श करने की कई बार कोशिशें की लेकिन असफल रहे। यहाँ तक कि सृष्टि की रचना हो गई और सतयुग बीत जाने के बाद त्रेता युग आ गया। इस मध्य उस कछुए ने अनेक बार अनेक योनियों में जन्म लिया और प्रत्येक जन्म में भगवान की प्राप्ति का प्रयत्न करता रहा । अपने तपोबल से उसने दिव्य दृष्टि को प्राप्त कर लिया। कछुए को पता था कि त्रेता युग में वही क्षीरसागर में शयन करने वाले विष्णु राम का और वही शेषनाग लक्ष्मण का व वही लक्ष्मीदेवी सीता के रूप में अवतरित होंगे तथा वनवास के समय उन्हें गंगा पार उतरने की आवश्यकता पड़ेगी । इसीलिये वह भी केवट बन कर वहाँ आ गया था ।
इस बार केवट इस अवसर को किसी भी प्रकार हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। उसे याद था कि शेषनाग क्रोध कर के फुँफकारते थे और मैं डर जाता था । अबकी बार वे लक्ष्मण के रूप में मुझ पर अपना बाण भी चला सकते हैं, पर इस बार उसने अपने भय को त्याग दिया था। लक्ष्मण के तीर से मर जाना उसे स्वीकार था पर इस अवसर को खो देना नहीं । केवट ने कहा - हे राम, मुझे आपकी दुहाई और दशरथजी की सौगंध है, मैं आपसे बिल्कुल सच कह रहा हूँ । भले ही लक्ष्मणजी मुझे तीर मार दें, पर जब तक मैं आपके पैरों को पखार नहीं लूँगा, मैं पार नहीं उतारूँगा । केवट के प्रेम से लपेटे हुये अटपटे वचन को सुन कर करुणा के धाम श्री रामचन्द्रजी जानकी और लक्ष्मण की ओर देख कर हँसे । जैसे वे उनसे पूछ रहे हैं- कहो, अब क्या करूँ, उस समय तो केवल अँगूठे को स्पर्श करना चाहता था और तुम लोग इसे भगा देते थे पर अब तो यह दोनों पैर माँग रहा है !
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केवट बहुत चतुर था । उसने अपने साथ ही साथ अपने परिवार और पितरों को भी मोक्ष प्रदान करवा दिया ।चरणों को धोकर पूरे परिवार सहित उस चरणामृत का पान करके उसी जल से पितरों का तर्पण करके अपने पितरों को भी भवसागर से पार कर फिर आनन्दपूर्वक प्रभु श्री रामचन्द्र को गंगा के पार ले गया ।
यह उसी समय का प्रसंग है जब केवट भगवान् के चरण धो रहे है । बड़ा प्यारा दृश्य है। भगवान् का एक पैर धोकर उसे निकलकर कठौती से बाहर रख देते है, और जब दूसरा धोने लगते है, तो पहला वाला पैर गीला होने से जमीन पर रखने से धूल भरा हो जाता है। केवट दूसरा पैर बाहर रखते है, फिर पहले वाले को धोते है, एक-एक पैर को सात-सात बार धोते है । केवट ये सब देख देख कर कहता है की प्रभु एक पैर कठौती में रखिये, दूसरा मेरे हाथ में रखिये। भगवान केवट से बोले, ऐसे तो मै गिर जाऊँगा। केवट बोला चिंता क्यों करते हो भगवन ,दोनों हाथो को मेरे सर पर रख खड़े हो जाईये फिर नहीं गिरोगे। भगवान् केवट से बोले - भईया केवट, मेरे अंदर का अभिमान आज टूट गया। केवट बोला - प्रभु ! क्या कह रहे है ?. भगवान् बोले - सच कह रहा हूँ केवट, अभी तक मेरे अंदर अभिमान था, कि मैं भक्तों को गिरने से बचाता हूँ, पर आज पता चला कि, भक्त भी भगवान् को गिरने से बचाता है ।
जय राम जी की।।
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