हनुमानजी को इन लोगों ने देखा था साक्षात
बजरंग बलि हनुमान जी को वानर कहा जाता है। सबसे पहले हम ये जान ले कि वानर का मतलब बन्दर नहीं होता। वानर का मतलब होता है जंगल में विचरण करने वाला यानि की जंगल में रहने वाला। बजरंग बली को इन्द्र से इच्छा मृत्यु का वरदान मिला। श्री राम के वरदान अनुसार कलयुग का अंत होने पर उन्हें उनके सायुज्य की प्राप्ति होगी। सीता माता के वरदान के अनुसार वे चिरंजीवी रहेंगे। वे आज भी अपने भक्तों की हर परिस्थिति में मदद करते हैं। ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने राम भक्त हनुमानजी को साक्षात देखा है। उन्हीं में से कुछ लोगों के बारे में हम आपको बताते हैं।भीम ने देखा :-
भीम अपने बड़े भ्राता की आज्ञा का पालन करते हुए ऋषि पुरुष मृगा को खोजने निकल पड़े। खोजते-खोजते वे घने जंगलों में पहुंच गए। जंगल में चलते वक्त भीम को मार्ग में लेटे हनुमान जी दिखाई दिए। भीम ने लेटे हुए हनुमान जी को बंदर समझ कर उनसे अपनी पूंछ हटाने के लिए कहा। तब बंदर ने चुनौती देते हुए कहा कि अगर वह उसकी पूंछ हटा सकता है तो हटा दे, लेकिन भीम उनकी पूंछ हिला भी नहीं पाए। तब जाकर उन्हें एहसास हुआ कि यह कोई साधारण बंदर नहीं है। यह बंदर और कोई नहीं, बल्कि हनुमानजी थे। भीम ने यह जानकर हनुमान जी से क्षमा मांगी।अर्जुन ने देखा :-
एक दिन अर्जुन रामेश्वरम चले गए। वहां उनकी मुलाकात हनुमान जी से हुई थी। रामसेतु देखकर अर्जुन ने कहा कि मैं होता तो यह सेतु बाणों से बना देता। यह सुनकर हनुमान ने कहा कि आपके बाणों से बना सेतु एक भी व्यक्ति का भार झेल नहीं सकता। तब अर्जुन ने कहा कि यदि मेरा बनाया सेतु आपके चलने से टूट जाएगा तो मैं अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगा। हनुमानजी ने कहा कि मुझे स्वीकार है। मेरे दो चरण ही इसने झेल लिए तो मैं हार स्वीकार कर लूंगा। बस फिर क्या था, अर्जुन ने बाणों का सेतु बनाया। हनुमान जी का पहला पग पड़ते ही सेतु डगमगाने लगा और टूट गया। यह देख अर्जुन अग्नि जलाकर खुद को जलाने लगे। तभी श्री कृष्ण प्रकट हुए और अर्जुन से बोले कि श्रीराम का नाम लेकर सेतु बनाओ। अर्जुन ने ऐसा ही किया। हनुमान जी से फिर पग रखा लेकिन इस बार सेतु नहीं टूटा। तब हनुमान ने अर्जुन से कहा कि वे युद्ध के अंत तक उनकी रक्षा करेंगे। इसीलिए कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन के रथ के ध्वज में हनुमान विराजमान हुए और अंत तक उनकी रक्षा की।
माधवाचार्य जी ने देखा :-
माधवाचार्य जी का जन्म 1238 ई में हुआ था। माधवाचार्य जी ने हनुमानजी को साक्षात देखा था। माधवाचार्य जी एक महान संत थे जिन्होंने ब्रह्मसूत्र और 10 उपनिषदों की व्याख्या की है। माधवाचार्य जी प्रभु श्री राम के परम भक्त थे। यही कारण था कि एक दिन उनको हनुमानजी के साक्षात दर्शन हुए थे। संत माधवाचार्य ने हनुमानजी को अपने आश्रम में देखने की बात बताई थी। माधवाचार्य जी 79 वर्ष की अवस्था में सन् 1317 ई. में ब्रह्म तत्व में विलीन हो गए।
तुलसी दास जी ने देखा :-
तुलसी दास जी के विषय में जो साक्ष्य मिलते हैं उसके अनुसार इनका जन्म 1554 ईस्वी में श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। तुलसी दास जी जब चित्रकूट में रहते थे तब जंगल में शौच करने जाते थे और शौच का जल जो शेष रह जाता था, उसे वे एक शमी वृक्ष के ऊपर डाल देते थे। जिस शमी वृक्ष के ऊपर वे जल डालते, उसके ऊपर एक प्रेत रहता था। प्रेत इस कार्य से प्रसन्न हो गया और एक दिन उसने तुलसी दास के समक्ष प्रकट होकर कहा कि आप मुझसे कुछ भी मांग लें।
तुलसी दास जी ने कहा कि प्रभु दर्शन के अलावा मेरी कोई इच्छा नहीं है। प्रेत ने कहा कि ऐसा तो मैं कर नहीं सकता लेकिन मैं एक रास्ता बता सकता हूं। वह यह कि जहां भी हरि कथा होती है, वहां हनुमान जी किसी न किसी रूप में आकर बैठ जाते हैं। मैं तुम्हें इशारे से बता दूंगा। वे ही तुम्हें प्रभु दर्शन करा सकते हैं। बस यही हुआ और तुलसी दास जी ने हनुमान जी के पैर पकड़ लिए। अंत में हार कर कुष्ठी रूप में राम कथा सुन रहे हनुमान जी से भगवान के दर्शन करवाने का वचन दे दिया। फिर एक दिन मंदाकिनी के तट पर तुलसी दास जी चंदन घिस रहे थे। भगवान बालक रूप में आकर उनसे चंदन मांग-मांगकर लगा रहे थे, तब हनुमान जी ने तोता बनकर यह दोहा पढ़ा-
'चित्रकूट के घाट पै भई संतनि भीर।
तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक देत रघुवीर।'
|| जय हनुमान जी ||


No comments:
Post a Comment