अति दुर्लभ एक ग्रन्थ-सीधा पड़ो तो राम कथा
उल्टा पड़ो तो कृष्ण कथा
आज हम लेकर आये है एक ऐसे अति दुर्लभ ग्रंथ के बारे में जानकारी जो शायद ही आपने सुना या पढ़ा होगा। जी हा आज हम बता रहे है एक ऐसे ग्रंथ के बारे में जिसके शलोको को आप चाहे सीधा पढ़े या उल्टा दोनों ही तरह से उसका अर्थ बनता है। ऐसा भी हमारे सनातन धर्म मे है। इसे तो सात आश्चर्यो में से पहला आश्चर्य माना जाना चाहिए। यह दक्षिण भारत का एक ग्रन्थ है। क्या ऐसा संभव है कि जब आप किताब को सीधा पढ़े तो राम कथा के रूप में पढ़ी जाती है और जब उसी किताब में लिखित शब्दों को उल्टा करके पढ़े तो कृष्ण कथा के रूप में होता है। जी हां, कांचीपुरम के 17 वें शदी के कवि वेंकटाध्वरी रचित ग्रन्थ "राघवयादियम्" ऐसा ही एक अद्भुत ग्रन्थ है। श्री वेंकटाध्वरि का जन्म कांचीपुरम के एक गांव अरसनीपलै में हुआ था। इन्होंने कुल 14 रचनाएं लिखी हैं जिनमें से "राघवयादवीयम्" और "लक्ष्मीसहस्त्रम्" सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। इस तरह से ऐसे ग्रंथ को लिखना सचमुच बहुत ही रोचक, अद्भुत, आश्चर्य, दुष्कर और दुर्लभ है।
इस रचना के सन्दर्भ में एक आश्चर्यजनक बात ये है कि अगर हम श्रीराम और श्रीकृष्ण के जीवन को देखें तो उन दोनों के जीवन भी एक दूसरे से बिलकुल उलटे हैं। श्रीराम भगवान विष्णु की १२ कलाओं के साथ जन्मे तो श्रीकृष्ण १६, श्रीराम क्षत्रिय कुल में जन्में तो श्रीकृष्ण यादव कुल में, श्रीराम को जीवन भर कष्ट भोगना पड़ा तो श्रीकृष्ण जीवन भर ऐश्वर्य में रहे, श्रीराम को पत्नी का वियोग सहना पड़ा तो श्रीकृष्ण को १६१०८ पत्नियों का सुख प्राप्त हुआ, श्रीराम ने धर्म के लिए कभी छल नहीं किया तो श्रीकृष्ण ने धर्म के लिए छल भी किया।
वैसे तो इस ग्रन्थ में केवल ३० श्लोक हैं किन्तु अगर हम श्रीराम और श्रीकृष्ण की कथाओं का अलग अलग वर्णन करें तो श्लोकों की कुल संख्या ६० हो जाती है। तो ३० श्लोकों को इस प्रकार से लिखना कि उनमे श्रीराम और श्रीकृष्ण का भाव पूर्ण रूप से रहे, अपने आप में ही एक आश्चर्य है। ये ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखा गया है। शब्दों का ऐसा अद्भुत ताना बाना केवल संस्कृत में ही बुना जा सकता है। इस ग्रन्थ को ‘अनुलोम-विलोम काव्य 'भी कहा जाता है। इन श्लोकों को सीधा-सीधा पढ़िए तो रामकथा बनती है और विपरीत (उल्टा) क्रम में पढ़ने पर कृष्ण शास्त्र। इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्ण शास्त्र (उल्टे यानी विलोम) के भी 30 श्लोक जोड़ के लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक। पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) + यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है - "राघवयादवीयम।"
उदाहरण के तौर पर पुस्तक का पहला श्लोक है:
वन्दे वहं देवं तं श्रीतं रतनतारं कालं भवसा यः।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोधे वासे रा 1।
अर्थातः
मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं, जिनके ह्रदय में सीताजी रहती है और जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्री की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया और वनवास पूरा कर अयोध्या वापिस लौटे।
अब यह श्लोक का विलोमम्: इस प्रकार है
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः।
यस्सादलंकारं तरं तं श्रीतं वन्देंहं देवम् 1।
अर्थातः
मैं रूक्मिणी और गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रणाम करता हूं, जो सदा ही माता लक्ष्मी के साथ विराजमान है और जिनकी शोभा समस्त जवाहरातों की शोभा हर लेती है।
है ना अद्भुत।
इस रचना के सन्दर्भ में एक आश्चर्यजनक बात ये है कि अगर हम श्रीराम और श्रीकृष्ण के जीवन को देखें तो उन दोनों के जीवन भी एक दूसरे से बिलकुल उलटे हैं। श्रीराम भगवान विष्णु की १२ कलाओं के साथ जन्मे तो श्रीकृष्ण १६, श्रीराम क्षत्रिय कुल में जन्में तो श्रीकृष्ण यादव कुल में, श्रीराम को जीवन भर कष्ट भोगना पड़ा तो श्रीकृष्ण जीवन भर ऐश्वर्य में रहे, श्रीराम को पत्नी का वियोग सहना पड़ा तो श्रीकृष्ण को १६१०८ पत्नियों का सुख प्राप्त हुआ, श्रीराम ने धर्म के लिए कभी छल नहीं किया तो श्रीकृष्ण ने धर्म के लिए छल भी किया।
वैसे तो इस ग्रन्थ में केवल ३० श्लोक हैं किन्तु अगर हम श्रीराम और श्रीकृष्ण की कथाओं का अलग अलग वर्णन करें तो श्लोकों की कुल संख्या ६० हो जाती है। तो ३० श्लोकों को इस प्रकार से लिखना कि उनमे श्रीराम और श्रीकृष्ण का भाव पूर्ण रूप से रहे, अपने आप में ही एक आश्चर्य है। ये ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखा गया है। शब्दों का ऐसा अद्भुत ताना बाना केवल संस्कृत में ही बुना जा सकता है। इस ग्रन्थ को ‘अनुलोम-विलोम काव्य 'भी कहा जाता है। इन श्लोकों को सीधा-सीधा पढ़िए तो रामकथा बनती है और विपरीत (उल्टा) क्रम में पढ़ने पर कृष्ण शास्त्र। इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्ण शास्त्र (उल्टे यानी विलोम) के भी 30 श्लोक जोड़ के लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक। पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) + यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है - "राघवयादवीयम।"
उदाहरण के तौर पर पुस्तक का पहला श्लोक है:
वन्दे वहं देवं तं श्रीतं रतनतारं कालं भवसा यः।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोधे वासे रा 1।
अर्थातः
मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं, जिनके ह्रदय में सीताजी रहती है और जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्री की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया और वनवास पूरा कर अयोध्या वापिस लौटे।
अब यह श्लोक का विलोमम्: इस प्रकार है
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः।
यस्सादलंकारं तरं तं श्रीतं वन्देंहं देवम् 1।
अर्थातः
मैं रूक्मिणी और गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रणाम करता हूं, जो सदा ही माता लक्ष्मी के साथ विराजमान है और जिनकी शोभा समस्त जवाहरातों की शोभा हर लेती है।
है ना अद्भुत।


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