15 हज़ार किलो सोने से बना दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर जिसे दुनिया के अजूबों में शामिल किया गया है।

15 हज़ार किलो सोने से बना दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर जिसे दुनिया के अजूबों में शामिल किया गया है।  


स्वर्ण मंदिर का नाम आते ही दिमाग में पंजाब के स्वर्ण मंदिर की याद आ जाती है।  परन्तु यदि आपसे कहा जाए की आप दक्षिण भारत के स्वर्ण मंदिर को जानते है तो आपका जवाब शायद ना में होगा।  तमिलनाडु के वेल्लोर नगर के मलाईकोड़ी पहाड़ो पर स्थित है यह महालक्ष्मी मंदिर। वैल्लूर से 7 किलोमीटर दूर थिरूमलाई कोडी में सोने से बना श्री लक्ष्मी नारायणी मंदिर है। अगर आपको  ऐसे स्वर्ग की सैर जीते जी करनी है, तो आपको एक ऐसी जगह के बारें में बता रहे है, जो कि पूरी तरह से सोने से बनी हुई है।  इस मंदिर की खासियत है इसकी अलौकिक भव्यता, जिसके लिए यह पूरी दुनिया में जाना जाता है।  जिस तरह उत्तर भारत का अमृतसर का स्वर्ण मंदिर बहुत खूबसूरत होने से साथ-साथ विश्व प्रसिद्ध भी है, उसी तरह दक्षिण भारत का यह स्वर्ण मंदिर है, जिसके निर्माण में सबसे ज्यादा सोने का उपयोग किया गया है।  जहां तक अमृतसर के स्‍वर्ण मंदिर की बात है, वहां केवल 750 किलो स्‍वर्ण की छतरी बनी है, जबकि उसकी तुलना में यहां 15 हज़ार किलो सोना लगाया गया है। यह अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के स्वर्ण से दोगुना  है। यह मंदिर दक्षिण भारत में स्थित है जो करीब 15 हज़ार किलो सोने से निर्मित है।  दुनिया के किसी भी मंदिर में नहीं लगा है इतना सोना। इसलिए दुनिया के चुनिंदा अजूबों में इस मंदिर का  नाम आता है। यह  मंदिर सिर्फ मां लक्ष्मी के दर्शन के लिए ही नहीं प्रसिद्ध है बल्कि मंदिर में लगा सोना हर किसी को अपनी ओर खींचता चला आता है।  इतनी मात्रा में सोने का प्रयोग किसी दूसरे मंदिर में नहीं हुआ है। माता लक्ष्मी को समर्पित इस मंदिर के निर्माण में 300 करोड़ रुपए से ज्यादा धनराशि की लागत लगी है।  

इस महालक्ष्मी मंदिर में हर एक कलाकृति हाथों से बनाई गई है। दिवाली आते ही दक्षिण भारत का यह मंदिर स्वर्ग की अनुभूति कराता है।   ऐसा माना जाता है कि अमावस की रात महालक्ष्मी स्वंय भ्रमण कर रही हों।   इस मंदिर को भक्तों के लिए 2007 में खोला गया था।  बड़े पैमाने पर 7 साल तक चले कार्य के बाद करीब 400 सुनारो और मजदूरों ने इसे बनाया था। यहाँ रोजाना लाखो भक्त दर्शन करने आते है।  रात के वक्त रौशनी में यह बहुत ख़ूबसूरत लगता है।  100 एकड़ से ज़्यादा क्षेत्र में फैला यह मंदिर चारों तरफ से हरियाली से घिरा हुआ है। इस स्वर्ण मंदिर को श्रीपुरम अथवा महालक्ष्मी स्वर्ण मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है।

मंदिर परिसर में लगभग 27 फीट ऊंची एक दीपमाला भी है। इसे जलाने पर सोने से बना मंदिर, जिस तरह चमकने लगता है, वह दृश्य  देखने लायक होता है। उस समय का नजारा देखने ही लायक होता है। यह दीपमाला सुंदर होने के साथ-साथ धार्मिक महत्व भी रखती है। सभी भक्त मंदिर में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के दर्शन करने के बाद इस दीपमाला के भी दर्शन करना अनिवार्य मानते हैं। मंदिर को सुबह 4 से 8 बजे तक अभिषेक के लिए और सुबह 8 से रात के 8 बजे तक दर्शन के लिए खोला जाता है. इस मंदिर को और खूबसूरत बनाने के लिए इसके बाहरी क्षेत्र को सितारे का आकार दिया गया है।  दर्शनार्थी मंदिर परिसर की दक्षिण से प्रवेश कर क्लाक वाईज घुमते हुए पूर्व दिशा तक आते हैं, जहां से मंदिर के अंदर भगवान श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन करने के बाद फिर पूर्व में आकर दक्षिण से ही बाहर आ जाते हैं। साथ ही मंदिर परिसर में उत्तर में एक छोटा सा तालाब भी है।  मंदिर परिसर में देश  की सभी प्रमुख नदियों से पानी लाकर सर्व तीर्थम सरोवर का निर्माण भी कराया गया है।  मंदिर में जाने के लिए बहूत सारे नियम बनाये गये है जैसे आप लुंगी, शॉर्ट्स, नाइटी, मिडी, बरमूडा पहनकर नहीं जा सकते।  इस मंदिर की सुरक्षा में 24 घंटे पुलिस और सिक्योरिटी कंपनियों का पहरा रहता है।

यहाँ पहुंचने के लिए के लिए  इस मंदिर के सबसे पास काटपाडी रेलवे स्टेशन है। इस स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर ही ये मंदिर स्थित है। इसके अलावा यहां पहुंचने के लिए तमिलनाडु से कई और मार्ग भी हैं। यहां सड़क और वायु मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है।   

पौराणिक महत्व के आधार पर केवल इन्ही चार स्थानों पर क्यों होता है कुंभ मेले का आयोजन।

पौराणिक महत्व के आधार पर केवल इन्ही चार स्थानों पर क्यों होता है कुंभ मेले का आयोजन।


कुंभ मेला हिंदू समुदाय से ताल्लुक रखने वाले लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व एवं दुनिया भर में किसी भी धार्मिक प्रयोजन हेतु भक्तों का सबसे बड़ा आयोजन  है। इसमें करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु कुंभ पर्व की जगह पर स्नान करने के लिए आते हैं।  कुंभ का आयोजन भारतवर्ष में मुख्य रूप से चार स्थानों पर होता है। इनमें हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज और नासिक शहर शामिल हैं। इनमे उज्जैन के कुंभ को सिंहस्थ भी कहा जाता है। कुंभ का पर्व हर 12 वर्ष के अंतराल पर चारों में से किसी एक पवित्र नदी के तट पर मनाया जाता है।   हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में त्रिवेणी संगम जहां गंगा, यमुना और सरस्वती मिलती हैं।  इन स्थानों पर एक-एक करके अर्धकुंभ का आयोजन किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, प्रयागराज में कुंभ के आयोजन के तीन साल बाद हरिद्वार में कुंभ का आयोजन होगा तो उसके तीन साल बाद अगले स्थान का नंबर आएगा। इस तरह हर तीन साल बाद कुंभ का आयोजन होता है। कुंभ मेला उज्जैन, नासिक, प्रयाग और हरिद्वार में मनाया जाता है। इन चार मुख्य तीर्थ स्थानों पर हर 12 साल के अंतराल में लगने वाले इस कुंभ पर्व में स्नान और दान करना अच्छा माना जाता है। इस मौके पर न सिर्फ हिंदू बल्कि दूसरे देशों से भी हिंदू समुदाय में विश्वास रखने वाले लोग स्नान करने के लिए आते हैं। शास्त्रों में लिखा है कि इस कुंभ पर्व के समय को वैकुंठ के समान पवित्र कहते हैं और इस दौरान त्रिवेणी में स्नान करने वालों को एक लाख पृथ्वी की परिक्रमा करने से भी ज्यादा और हज़ारो अश्वमेघ यज्ञों का पुण्य मिल जाता है। इस मेले में स्नान करने वाले को स्वर्ग दर्शन के समान माना  जाता है।  

कुंभ मेला तीन तरह का होता है। अर्ध कुंभ, कुंभ और महाकुंभ। आमतौर पर हर छह  साल के अंतर में कुंभ का योग जरूर बन ही जाता है। इसलिए बारह साल में होने वाले पर्व को कुंभ और छह साल में होने वाले को अर्ध कुंभ कहते हैं।अर्ध कुंभ का आयोजन हर छह साल में किया जाता है और कुंभ का आयोजन हर बारह साल में होता है। जबकि महाकुंभ करीब 144 साल में एक बार लगता है। कुंभ का आयोजन बारह साल में इसलिए होता है क्योंकि ज्योतिषीय दृष्टिकोण से गुरु ग्रह एक राशि में करीब 1 साल रहते हैं। ऐसे में बारह साल बाद वह अपनी राशि में पहुंचते हैं। इसी साल कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। कुंभ मेलों के प्रकार:- 

महाकुंभ मेला: यह केवल प्रयागराज में आयोजित किया जाता है. यह प्रत्येक 144 वर्षों में या बारह पूर्ण कुंभ मेले के बाद आता है।  
पूर्ण कुंभ मेला: यह हर बारह साल में आता है. मुख्य रूप से भारत में चार कुंभ मेला स्थान यानि प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में आयोजित किए जाते हैं. यह हर बारह  साल में इन चार स्थानों पर बारी-बारी आता है।  
अर्ध कुंभ मेला: इसका अर्थ है आधा कुंभ मेला जो भारत में हर 6 साल में केवल दो स्थानों पर होता है यानी हरिद्वार और प्रयागराज।  
कुंभ मेला: चार अलग-अलग स्थानों पर राज्य सरकारों द्वारा हर तीन साल में आयोजित किया जाता है. लाखों लोग आध्यात्मिक उत्साह के साथ भाग लेते हैं।  


इस पर्व में जुटने वाली भीड़ को देखते हुए कुंभ आयोजन स्थान पर महिनों पहले से ही तैयारी शुरु कर दी जाती है।  वैसे तो कुंभ मेले में स्नान का यह पर्व मकर संक्रांति से शुरु होकर अगले पचास दिनों तक चलता है, लेकिन इस कुंभ स्नान में कुछ ऐसी महत्वपूर्ण ज्योतिष तिथियां होती हैं, जिनका विशेष महत्व होता है।  यहीं कारण है कि इन तिथियों को स्नान करने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु तथा साधु इकठ्ठे होते हैं।  इन तिथियों को शाही स्नान भी कहा जाता है जैसे  मकर सक्रांति, पौष पुर्णिमा, मौनी अमवस्या – इस दिन दूसरे शाही स्नान का आयोजन होता है, बसंत पंचमी – इस दिन तीसरे शाही स्नान का आयोजन होता है, माघ पूर्णिमा तथा महाशिवरात्रि – यह कुंभ पर्व का आखिरी दिन होता है। शाही स्नान के दौरान साधु-संत हाथी-घोड़ो सोने-चांदी की पालकियों पर बैठकर स्नान करने के लिए आते हैं। यह स्नान ए खास मुहूर्त पर होता है, जिसपर सभी साधु तट पर इकट्ठा होते हैं और जोर-जोर से नारे लगाते हैं। माना जाता है कि इस मुहूर्त में नदी के अंदर डुबकी लगाने से अमरता प्राप्त हो जाती है। यह मुहूर्त करीब 4 बजे शुरु हो जाता है। साधुओं के बाद आम जनता को स्नान करने का अवसर दिया जाता है। कुंभ मेले के दौरान आयोजन स्थल पर इन 50 दिनों में लगभग मेले जैसा माहौल रहता है और करोड़ों के तादाद में श्रद्धालु इस पवित्र स्नान में भाग लेने के लिए पहुँचते है।


कलश को कुंभ कहा जाता है। कुंभ का अर्थ होता है घड़ा। इस पर्व का संबंध समुद्र मंथन के दौरान अंत में निकले अमृत कलश से जुड़ा है।  माना जाता है कि समुद्र मंथन में निकले अमृत कलश को लेकर जब धन्वंतरि प्रकट हुए थे तो अमृत के लिए देवताओं और दानवों के बीच में युद्ध हुआ था और जब अमृत भरा कलश लेकर देवता जाने लगे तो उसे 4 जगहों पर रखा था। इस वजह से अमृत की कुछ बूंदे गिर गई थी और ये चार स्थान हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन बने। वहीं एक मान्यता साथ में ये भी है कि अमृत के घड़े को लेकर गरुड़ उड़े गए थे और दानवों ने उनका पीछा किया था जिसमें छीना-झपटी हुई और घड़े से अमृत की बूंदें चार स्थानों पर गिर गई। जिनपर बूंदें छलकी उन्हें प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन नाम से पहचाना जाता है। अमृत की ये बूंदें चार जगह गिरी थी:- गंगा नदी (प्रयाग, हरिद्वार), गोदावरी नदी (नासिक), क्षिप्रा नदी (उज्जैन)। सभी नदियों का संबंध गंगा से है। गोदावरी को गोमती गंगा के नाम से पुकारते हैं। क्षिप्रा नदी को भी उत्तरी गंगा के नाम से जानते हैं, यहां पर गंगा गंगेश्वर की आराधना की जाती है। इसलिए इन्हीं चार स्थानों पर कुंभ का मेला लगता रहा है जहां श्रद्धालु स्नान कर पुण्य प्राप्त करते है।  कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक सम्मेलन है जिसे "धार्मिक तीर्थयात्रियों की दुनिया की सबसे बड़ी मंडली" के रूप में भी जाना जाता है।

अवश्य आजमाएं भगवान शिव के यह सरल उपाय, देंगे अपार धन

अवश्य आजमाएं भगवान शिव के यह सरल उपाय, देंगे अपार धन 


हिन्दू धर्म में भगवान शंकर को सांसारिक सुखों से जुड़े सारे मनोरथ पूरे करने वाले देवता माना जाता हैं। उन्हें प्रसन्न करने के लिए धर्मग्रंथों में कई उपवास बताए गए हैं। इस सृष्टि का निर्माण भगवान शिव की इच्छा मात्र से ही हुआ है। अत: इनकी भक्ति करने वाले व्यक्ति को संसार की सभी वस्तुएं प्राप्त हो सकती हैं। शिवजी अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं। शिवपुराण के अनुसार, नियमित रूप से शिवलिंग का पूजन करने वाले व्यक्ति के जीवन में दुखों का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है। शिवजी के पूजन से श्रद्धालुओं की धन संबंधी समस्याएं भी दूर हो जाती हैं।  नियमित रूप से अपनाने वाले व्यक्ति को अपार धन-संपत्ति प्राप्त हो सकती है।कई भक्त अलग-अलग वजहों से व्रत के धार्मिक विधि विधानों का ठीक से पालन नहीं कर पाते है। इसलिए ऐसे भक्तों के लिए जो व्रत नहीं रख पाते हैं वे शिवपुराण में बताए अलग-अलग अनाज का चढ़ावा सुख-सौभाग्य व धन सहित कई मनचाहे फल देने वाला आसान से उपाय कर पूजा कर सकते है। 


चावल यानी अक्षत हमारे ग्रंथों में सबसे पवित्र अनाज माना गया है।  अगर पूजा पाठ में किसी सामग्री की कमी रह जाए तो उस सामग्री का स्मरण करते हुए चावल चढ़ाए जा सकते हैं।  देव पूजा में अक्षत यानी चावल का चढ़ावा बहुत ही शुभ माना जाता है। शिव पूजा में भी महादेव या शिवलिंग के ऊपर चावल (जो टूटे हुए न हो) चढ़ाने से माँ लक्ष्मी की कृपा यानी धन लाभ होता है। शिवपुराण के अनुसार शिवलिंग पर चावल चढ़ाने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर हो जाती हैं।  मात्र 4 दाने चावल रोज चढ़ाने से  भी अपार ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।  ध्यान रहे चावल टूटे हुए ना हो तथा चावल के दाने साफ़ और स्वच्छ होने चाहिये।  भगवान शंकर की पूजा में सवा किलो चावल शिवलिंग पर चढ़ाएं और पूजा के बाद चावल का दान किसी गरीब व्यक्ति को कर दें।   इसका सफेद रंग शांति का प्रतीक है।  अत: हमारे प्रत्येक कार्य की पूर्णता ऐसी हो कि उसका फल हमें शांति प्रदान करे।  इसीलिए पूजन में अक्षत एक अनिवार्य सामग्री है।  कहा जाता है ऐसा हर सोमवार को करने से सभी मनोकामना पूरी हो जाती है।  यह भी कहा जाता है नौकरी संबंधी परेशानी को दूर करने के लिए घर की छत पर पक्षियों के लिए चावल डालें क्योंकि इससे नौकरी से जुड़ी समस्याएं दूर हो जाती है।  

इसके अलावा भगवान शिव की पूजा के लिए कुछ और आसान उपाय भी हैं :



शिवलिंग के पास रोज रात्रि लगाएं दीपक 
शिवपुराण एक ऐसा शास्त्र है, जिसमें  भगवान शंकर और सृष्टि के निर्माण से जुड़ी कई रहस्यमयी बातें बताई गई हैं। इस पुराण में कई चमत्कारी उपाय बताए गए हैं, जो हमारे जीवन की धन संबंधी समस्या को खत्म करते हैं और अक्षय पुण्य भी प्रदान करते हैं। इन उपायों से पिछले पापों का नाश होता है और भविष्य सुखद बनता है।
यदि आप भी शिवजी की कृपा से धन संबंधी समस्याओं से छुटकारा पाना चाहते हैं तो यहां बताया गया एक और आसान उपाय हर रोज रात को करना चाहिए।  यह उपाय शिव पुराण में बताया गया है।  शाम के समय शिव मंदिर में दीपक लगाने वाले व्यक्ति को अपार धन-संपत्ति एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं। अत: नियमित रूप से रात्रि के समय किसी भी शिवलिंग के समक्ष दीपक लगाना चाहिए। दीपक लगाते समय 'ओम  नम: शिवाय' मंत्र का जाप भी करना चाहिए।  


  • शिव की तिल से पूजा करने पर मन, शरीर और विचारों से हुए दोष का अंत हो जाता है। सारे तनाव व दबाव की वजहे अचानक दूर हो जाती हैं।
  • अरहर के पत्तों या दाल से शिव की पूजा करने से तन, मन व धन से जुड़े हर तरह के दु:ख दूर हो जाते हैं।
  • जौ चढ़ाकर शिव की पूजा अंतहीन व पीढ़ीयों को सुख देने वाली सिद्ध होती है।

यमराज का दूसरा नाम धर्मराज क्यों ? जानिए धर्मराज के कुछ खास रहस्य तथा मंदिरो के बारे में।

यमराज का दूसरा नाम धर्मराज क्यों ? जानिए धर्मराज के कुछ खास रहस्य तथा मंदिरो के बारे में।  


हिन्दू धर्म में तीन दंड नायक है यमराज, शनिदेव और भैरव। यमराज को 'मार्कण्डेय पुराण' के अनुसार दक्षिण दिशा के दिक्पाल और मृत्यु का देवता कहा गया है। प्राणी की मृत्यु या अंत को लाने वाले देवता यम है।  यमलोक के स्वामी होने के कारण  ये यमराज कहलाए। यमराज का नाम धर्मराज इसलिए पड़ा क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था। यमराज का पुराणों में विचित्र विवरण मिलता है। पुराणों के अनुसार यमराज का रंग हरा है और वे लाल वस्त्र पहनते हैं। यमराज का ही दूसरा नाम धर्मराज है क्योंक‌ि यह धर्म और कर्म के अनुसार जीवों को अलग-अलग लोकों और योन‌ियों में भेजते हैं। धर्मात्मा व्यक्त‌ि को यह कुछ-कुछ व‌िष्‍णु भगवान की तरह दर्शन देते हैं और पाप‌ियों को उग्र रुप में। चूँकि मृत्यु से सब डरते है, इसलिए यमराज से भी सब डरने लगे।  जीवित प्राणी का जब अपना काम पूरा हो जाता है , तब मृत्यु के समय शरीर में से प्राण खींच लिए जाते है, ताकि प्राणी फिर नया शरीर प्राप्त कर नए सिरे से जीवन प्रारंभ कर सके।  

यमराज सूर्य के पुत्र है और उनकी माता का नाम संज्ञा है।  उनका वाहन भैंसा और संदेशवाहक पछी कबूतर, उल्लू और कौआ भी माना  जाता है।  यमराज भैंसे की सवारी करते हैं और उनके हाथ में गदा होती है। ऋग्वेद में कबूतर और उल्लू को यमराज का दूत बताया गया है। गरुड़ पुराण में कौआ को यम का दूत कहा गया है।यमराज अपने हाथ के कालसूत्र या कालपाश की बदौलत जीव के शरीर से प्राण निकल लेते है। यमपुरी यमराज की नगरी है, जिसके दो महाभयंकर चार आँखों वाले कुत्ते पहरेदार है।  यमलोक के द्वार पर दो व‌िशाल कुत्ते पहरे देते हैं। इसका उल्लेख ह‌िन्दू धर्मग्रंथों के अलावा पारसी और यूनानी ग्रंथों में भी म‌िलता है। यमराज अपने सिंहासन पर न्यायमूर्ति की तरह बैठकर विचार भवन कालीची में मृतात्माओं को एक-एक कर बुलवाते है।  यमराज के मुंशी 'चित्रगुप्त' हैं जिनके माध्यम से वे सभी प्राणियों के कर्मों और पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं। चित्रगुप्त की बही 'अग्रसन्धानी' में प्रत्येक जीव के पाप-पुण्य का हिसाब है। कहते हैं कि विधाता लिखता है, चित्रगुप्त बांचता है, यमदूत पकड़कर लाते हैं और यमराज दंड देते हैं। कर्मो को ध्यान में रखकर ही यमराज अपना फैसला देते है।  यमलोक में चार द्वार हैं ज‌िनमें पूर्वी द्वारा से प्रवेश स‌िर्फ धर्मात्मा और पुण्यात्माओं को म‌िलता है जबक‌ि दक्ष‌िण द्वार से पाप‌ियों का प्रवेश होता है ज‌िसे यमलोक में यातनाएं भुगतनी पड़ती है।



यमराज की यो तो कई पत्नियां थी, लेकिन उनमे सुशीला, विजया और हेमनाल अधिक जानी जाती है।  उनके पुत्रो में धर्मराज युधिष्ठिर को तो सभी जानते है।  न्याय के पक्ष में   फैसला देने के गुणो के कारण ही यमराज और युधिष्ठिर जगत में धर्मराज के नाम से जाने जाते है।  यम द्वितीया के अवसर पर जिस दिन भाई-बहिन का त्यौहार भाई-दूज मनाया जाता है।  यम और यमुना की पूजा का विधान बनाया गया है।  उल्लेखनीय है की यमुना  नदी को यमराज की बहन माना  जाता है।  स्कन्दपुराण' में कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को भी दीये जलाकर यम को प्रसन्न किया जाता है। 

भोमवारी चतुर्दशी की यमतीर्थ के दर्शन कर सब पापो से छुटकारा मिल जाये, उसके लिए प्राचीन कल में यमराज ने यमतीर्थ में कठोर तपस्या करके भक्तो को  सिद्धि प्रदान करने वाले यमेश्वर और यमादित्य की स्थापना  की थी।इसको प्रणाम करने वाले एवं यमतीर्थ में स्नान करने वाले मनुष्यो को नारकीय यातनाओ को न तो भोगना पड़ता है और न ही यमलोक देखना पड़ता है।  इसके अलावा मान्यता तो यहाँ तक है की यमतीर्थ में श्राद्ध करके, यमेश्वर का पूजन करने और यमादित्य को प्रणाम करके व्यक्ति अपने पितृ-ऋण से भी उऋण हो सकता है। 

जानते हैं यमराज के खास मंदिरों के बारे में 
भरमौर का यम मंदिर : यमराज का यह मंदिर हिमाचल के चम्बा जिले में भरमौर नाम स्थान पर स्थित है जो एक भवन के समान है।  यह मंदिर देखने में एक घर की तरह दिखाई देता है जहां एक खाली कक्ष है जिमें भगवान यमराज अपने मुंशी चित्रगुप्त के साथ विराजमान हैं।  माना जाता है कि इस मंदिर में चार अदृश्य द्वार हैं जो स्वर्ण, रजत, तांबा और लोहे के बने हैं। यमराज का फैसला आने के बाद यमदूत आत्मा को कर्मों के अनुसार इन्हीं द्वारों से स्वर्ग या नर्क में ले जाते हैं। 


यमुना-धर्मराज मंदिर विश्राम घाट, मथुरा : यह मंदिर उत्तर प्रदेश के मथुरा में यमुना तट पर विश्राम घाट के पास स्थित है। इस बहन-भाई का मंदिर भी कहा जाता है क्योंकि यमुना और यमराज भगवान सूर्य के पुत्री और पुत्र थे। इस मंदिर में यमुना और धर्मराज जी की मूर्तियां एक साथ लगी हुई है। ऐसी पौराणिक मान्यता है की जो भी भाई, भैया दूज  के दिन यमुना में स्नान करके  इस मंदिर में दर्शन करता है उसे यमलोक जाने से मुक्ति मिल जाती है।


वाराणसी का धर्मराज मंदिर : काशी में यमराज से जुड़ी अनसुनी जानकारियां छिपी हैं। यहाँ मीर घाट पर मौजूद है अनादिकाल का धर्मेश्वर महादेव मंदिर जहां धर्मराज यमराज ने शिव की आराधना की थी। माना जाता है कि यम को यमराज की उपाधि यहीं पर मिली थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अज्ञात वास के दौरान यहां धर्मेश्वर महादेव की पूंजा की थी। मंदिर का इतिहास पृथ्वी पर गंगा अवतरण के भी पहले का है, जो काशी खंड में वर्णित है।

सुबह उठते ही इस मंत्र को बोला करे नहीं रहेगी धन की कमी

सुबह उठते ही इस मंत्र को बोला करे नहीं रहेगी धन की कमी


आजकल इस भागदौड़ भरी हुई इस जिंदगी में हर व्यक्ति ये चाहता है की हमारे पास धन हो, हमारे पास विद्या हो, हमारे पास बुद्धि हो , हमारे पास बल हो।  आज हम आपको बतायेंगे की सुबह उठते ही एक मंत्र पढ़ना  है और पुरे दिन के आप के जो काम है वो अपने आप बनते चले जाएंगे।  सब लोग कहते है नहाओ, धोओ उसके बाद काम शुरू करो, यह बिना नहाए धोए आप इस मन्त्र को पढ़ सकते है।  आँख खुलते ही बिना किसी की शक्ल देखे आपको करना है।  मतलब सुबह आँख खुलते ही अपनी हथेलियों को अपने  सामने करना है और उनका दर्शन करना है।  हथेली देखने से पहले किसी भी वस्तु या चीज़ को ना देखे। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र को एक बार जाप करे।  

अक्सर देखा गया है कि जब हमारी सुबह की शुरुआत अच्छी होती है तो हमारा पूरा दिन अच्छा बीतता है। दिन अच्छा व्यतीत हो इसके लिए हम सब प्रातः अपने मन और घर में शांति व प्रसन्नता की कामना करते हैं।   हमारा दिन हमारे लिए शुभ हो इसके लिए भारतीय ऋषि-मुनियों ने कर(हस्त) दर्शन का संस्कार हमें दिया है। शास्त्रों में भी जागते ही बिस्तर पर सबसे पहले बैठकर दोनों हाथों की हथेलियों के दर्शन का विधान बताया गया है। इससे व्यक्ति की दशा सुधरती है और सौभाग्य में वृद्धि होती है। सुबह उठते ही हाथों को देखने का क्या मतलब है?  क्या इसका संबंध हमारे हाथों की लकीरों से हैं या फिर हमारी किस्मत से ? दरअसल हमारे शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि हाथों में सृष्टि के रचानाकार ब्रह्मा, धन की देवी लक्ष्मी और सुख एवं समृद्धि की देवी सरस्वती, तीनों का वास होता है। इसलिए सुबह-सुबह इन्हें देखना शुभ माना जाता है। जब आप सुबह नींद से जागें तो अपनी हथेलियों को आपस में मिलाकर किताब  की तरह खोल लें और यह श्लोक पढ़ते हुए हथेलियों का दर्शन करें:-

कराग्रे बसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती ।
करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम ॥

मतलब  मेरे हाथ के आगे वाले भाग  में भगवती लक्ष्मी का निवास है। मध्य भाग में विद्यादात्री सरस्वती और मूल भाग में भगवान विष्णु का निवास है। अतः प्रभातकाल में मैं इनका दर्शन करता हूँ। इस श्लोक में धन की देवी लक्ष्मी, विद्या की देवी सरस्वती और शक्ति के दाता तथा सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु की स्तुति की गई है, जिससे जीवन में धन,विद्या और भगवत कृपा की प्राप्ति हो सके।


ध्यान रहे की इस मंत्र का जाप करते समय आपको सिर्फ अपनी हथेलियों की और अपनी निगाहें रखनी है और फिर मंत्र उच्चारण खत्म होते ही हथेलियों को परस्पर घर्षण करके उन्हें अपने चेहरे पर फेरना है।  मान्यता है की ऐसा करने से हम सभी देवी देवताओ का आशीर्वाद प्राप्त कर लेते है और पूरा जो दिन है वो हमारा अच्छा निकलता है।  सकारात्मक ऊर्जा भी हम प्राप्त करते है।  आप भी करिए तथा अपने बच्चो को भी कराइये ताकि उनकी बुद्धि और विवेक बढ़े।  

हथेलियों के दर्शन का मूल भाव यही है कि हम अपने कर्म पर विश्वास करें। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि ऐसे कर्म करें जिससे जीवन में धन, सुख और ज्ञान प्राप्त कर सकें। हमारे हाथों से कोई बुरा काम न हो एवं दूसरों की मदद के लिए हमेशा हाथ आगे बढ़ें। 

आँखों के द्रष्टि भी रहेगी ठीक 

जब हम सुबह सोकर उठते है तो हमारी आँखों में नींद रहती हैं। ऐसे मैं यदि एकदम दूर की वस्तु या कहीं रोशनी पर हमारी नज़र पड़ेगी तो आखों पर उसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है।  हाथो का दर्शन करने का यह फायदा है कि इससे आँखों की दृष्टि धीरे धीरे स्थिर हो जाती है और आँखों पर भी कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता।  
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As soon as you wake up in the morning, chanting this Mantra can generate lot of funds


Nowadays in this runaway life, every person wants that we have money, we have knowledge, we have intelligence, we have power. Today we will tell you that you have to recite a mantra as soon as you wake up in the morning and all the work that you have done for the whole day will continue to be done automatically. Everyone says take a bath, then start work. You can read this mantra without washing your hands.  You have to open your eyes without seeing the appearance of anyone. That means opening your palms in front of your eyes in the morning and seeing them. Do not see any thing or thing before looking at the palm. After this, chant the below mantra once.

It has often been seen that when our morning starts well, our whole day goes well. We all wish for peace and happiness in our mind and home in the morning to have a good day. To make our day auspicious for us, Indian sages have given us the rite of hand darshan. In the scriptures also, upon waking up, by only sitting on the bed is said to be very good  the darshan of our palms of both hands. This improves a person's condition and increases luck. What does it mean to see hands as soon as you wake up in the morning? Is it related to the lines in our hands or our luck? Actually, it has been said in our scriptures that Brahma, the creator of creation, Lakshmi, the goddess of wealth, and Saraswati, the goddess of happiness and prosperity, reside in all three. Therefore, it is considered auspicious to see them in the morning. When you wake up from sleep in the morning, mix your palms together and open them like a book and while reading this verse, see the palms: -

Karagre Basate Lakshmi: Karamadhye Saraswati.
Karmule tu Govindah Prabhate Kardarshanam


Meaning in front of my hand is the abode of Bhagwati Lakshmi. The central part is home to Vidyadatri Saraswati and the original part to Lord Vishnu. So, I see him in the morning. This verse praises Lakshmi, the goddess of wealth, Saraswati, the goddess of learning, and Lord Vishnu, the giver of power, and the follower of creation, so that one can attain wealth, learning and Bhagwat grace in life.

Keep in mind that while chanting this mantra, all you have to do is to keep an eye on your palms and then at the end of the chanting of the mantra, palms are frictional on your face with mutual friction. It is believed that by doing this, we get the blessings of all the Gods and Goddesses, and the whole day is good for us. We also receive positive energy. You should also do it to your children so that their intelligence and conscience will increase.

The basic idea of ​​palms philosophy is that we believe in our karma. We pray to God to do such deeds that can bring wealth, happiness and knowledge in life. There should be no bad work with our hands and always move forward to help others.

Eyesight will also Improve

When we wake up in the morning we usually feel sleep in our eyes. In this way, if we look at a very distant object or light, then it can have a bad effect on the eyes. The advantage of seeing the hands is that it makes the eyesight gradually stable and there is no side effect on the eyes.

अष्ट चिरंजीवी लोग जिनका स्मरण करने से शरीर होता है निरोग और प्राप्त होती है सौ वर्ष की आयु ।


अष्ट चिरंजीवी लोग जिनका स्मरण करने से  शरीर होता है निरोग और प्राप्त होती है सौ वर्ष की आयु ।   

शरीर नश्वर है, लेकिन शास्त्रों में आठ ऐसे लोग भी बताए गए हैं, जिन्होंने जन्म लिया है और वे हजारों सालों से देह धारण किए हुए हैं यानी वे अभी भी सशरीर जीवित हैं। वैसे तो हिन्दू पौराणिक कथाओ में बहुत से रोचक और रहस्यमई कहानियाँ  है मगर सबसे दिलचस्प वो मान्यता है जिसके मुताबिक महाभारत और रामायण काल के कई पात्र आज भी जीवित है।  योग में जिन अष्ट सिद्धियों  की बात कही गई है, वे सारी सिद्धिया इनमे विद्धमान है।  ये सब किसी न किसी वचन, नियम या श्राप से बंधे हुए है और ये सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न है। हिंदू धर्म अनुसार इन्हें आठ जीवित महामानव कहा जाता है। रामचरितमानस में लिखे गये एक श्लोक के अनुसार भगवान परशुराम, अश्वत्थामा, भगवान हनुमान, ऋषि व्यास, राजा बलि, विभिषण, कृपाचार्य और ऋषि मार्कंडेय ये आठ महामानव चिरंजीवी है। प्राचीन मान्यताओं के आधार पर यदि कोई व्यक्ति हर रोज इन आठ अमर लोगों  के नाम भी लेता है तो  शरीर के सारे रोग समाप्त हो जाते है और उसकी उम्र लंबी होती है।  



भगवान परशुराम
पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान विष्णु के छटे अवतार है परशुराम।  परशुराम के पिता ऋषि  जमदग्नि और माता रेणुका थी।  इनका जन्म हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। इसलिए वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है। परशुराम का जन्म समय सतयुग और त्रेता के संधिकाल में माना जाता है। परशुराम का प्रारंभिक नाम राम था। राम ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। इन्हें भी अमर होने का वरदान मिला है। राम ने शिवजी को प्रशन्न करने के लिए कठोर तप किया था।  शिवजी तपस्या से प्रसन्न हुए और राम को अपना फरसा दिया।  इसी वजह से राम परशुराम कहलाने लगे।  परशुराम भगवान राम के पूर्व हुए थे लेकिन चिरंजीवी होने के कारण राम के काल में भी थे।  आपको बता दे की भगवन परशुराम ने  पृथ्वी से 11 बार निरंकुश और अधर्मी क्षत्रियों का अंत किया था। कहा जाता है कि परशुराम को भी अमर होने का वरदान प्राप्त है।


अश्वत्थामा
ग्रंथों में भगवान शंकर के अनेक अवतारों का वर्णन भी मिलता है। उनमें से एक अवतार ऐसा भी है, जो आज भी पृथ्वी पर अपनी मुक्ति के लिए भटक रहा है। ये अवतार हैं गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का।अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र है।  ग्रंथो में भगवन शंकर के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है।  द्वापर युग में जब कौरव और पांडवो में युद्ध हुआ था तब अश्वथामा ने कौरवो का साथ दिया था।  महाभारत के अनुसार अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के सम्मिलित अंशावतार थे। अश्वत्थामा अत्यंत शूरवीर, प्रचंड क्रोधी स्वभाव के योद्धा थे। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने ही अश्वत्थामा को चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था। अश्वत्थामा परम तेजस्वी थे जो अपनी दिव्य शक्तियों का उपयोग करने में माहिर थे।  शास्त्रों के अनुसार अश्वस्थामा आज भी जीवित हैं।  


भगवान हनुमान
कलियुग में हनुमानजी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता माने गए हैं।  भगवान रुद्र के 11वें अवतार और मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के परम भक्त हनुमान जी की महिमा से हर कोई वाकिफ है।  अंजनी पुत्र हनुमान जी  को भी अमर रहने का वरदान मिला हुआ है।  महावीर हनुमान रामायण काल में भगवान श्रीराम के परम भक्त रहे थे। हज़ारो वर्षो बाद वे महाभारत काल में भी नज़र आते है।  महाभारत में उनके कई प्रसंग भी मिलते है। माता सीता ने हनुमान को लंका की अशोक वाटिका में राम का सन्देश सुनने के बाद आशीर्वाद दिया था की वे अज़र अमर रहेंगे और जब भगवान श्री राम इस धरती से अपने धाम वैंकुंठ को लोट रहे थे तब भगवान श्रीराम ने भी महावीर हनुमान को पृथ्वी के अंत तक पृथ्वी पर ही रहने की आज्ञा दी थी। उन्हें वरदान मिला है कि उन्हें ना कभी मौत आएगी और ना ही कभी बुढ़ापा।  इसलिए माना  जाता है की महावीर हनुमान आज भी जिन्दा है।   हनुमान जी को अमर होने का वरदान मिला है जिसके कारण वो आज भी चिरंजीवी हैं।  

ऋषि व्यास
ऋषि  व्यास को वेद व्यास के नाम से भी जाना जाता है।  मान्यताओं के अनुसार, भगवान वेद व्यास जी  चार वेदों ऋगवेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद और  18 पुराणों, महाभारत और श्रीमदभागवद गीता की रचना के रचनाकार भी माने जाते हैं।   वेद व्यास ऋषि पराशर और सत्यवती के पुत्र थे।  इनका जन्म यमुना नदी के एक द्वीप पर हुआ था और इनका रंग सांवला था।  कहा जाता है वेद व्यास जी भी उन दिव्य महापुरुषों में शामिल हैं, जिन्हें अमर होने का वरदान प्राप्त है। 

राजा बलि
राजा बलि दान के चर्चे दूर दूर तक थे।  देवताओ को परास्त कर राजा बलि ने इंद्र लोक पर अपना अधिकार कर लिया था तब राजा बलि के अभिमान को चूर करने के लिए भगवान विष्णु ब्राह्मण का वेश धारण कर राजा  बलि से तीन पग धरती दान में मांगी थी।  शास्त्रों के अनुसार राजा बलि भक्त प्रह्लाद के वंशज है।  बलि ने भगवान विष्णु के वामन अवतार को अपना सब कुछ दान कर दिया था।राजा बलि की भक्ति से भगवान विष्णु  अति प्रसन्न थे।  इसी वजह से भगवान श्री हरी विष्णु जी ने उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान दिया था।  राजा बलि की दानशीलता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उनका द्वारपाल बनना भी स्वीकार किया था। शास्त्रों की मान्यताओं के अनुसार, राजा बलि आज भी जीवित हैं। नियम से बंधे होने की वजह से राजा बलि को अमरता प्राप्त है।


विभिषण
राक्षस राज रावण के छोटे भाई हैं विभीषण। विभिषण श्री प्रभु राम के अनन्य भक्त थे।  जब रावण ने माता सीता का हरण किया था तब विभिषण ने रावण को प्रभु राम से शत्रुता नहीं करने के लिए बहुत समझाया था।  इस बात पर रावण ने विभिषण को लंका से निकाल दिया था।  विभिषण प्रभु राम की सेवा में चले गए।  उन्होंने  रावण की अधर्मी नितियों का न सिर्फ विरोध किया, बल्कि रामायण काल में युद्ध के दौरान मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का साथ भी दिया कहा जाता है कि विभिषण भी चिरंजीवी महापुरुषों में से एक हैं।  इन्होने अधर्म को मिटाने में धर्म का साथ दिया। तब श्रीराम ने उन्हे अमरत्व का वरदान दिया था।


कृपाचार्य
कृपाचार्य अश्वथामा के मामा और कौरवों  के कुलगुरु थे। कृपाचार्य गौतम ऋषि पुत्र हैं और इनकी बहन का नाम है कृपी। कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ था।   महाभारत युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की और से सक्रिय थे।   महाभारत काल के तपस्वी ऋषि कृपाचार्य कौरवों और पांडवों के गुरु थे। परम तपस्वी होने के साथ-साथ कृपाचार्य युद्ध नीति में भी पारंगत थे।  हिंदू धर्म के शास्त्रों में कृपाचार्य को अमर बताया गया है, जो आज भी जीवित हैं  

ऋषि मार्कंडेय
भगवान शिव के परम भक्त हैं ऋषि मार्कण्डेय। इन्होंने शिवजी को तप कर प्रसन्न किया और महामृत्युंजय मंत्र सिद्धि के कारण चिरंजीवी बन गए। महामृत्युंजय मंत्र का जाप मौत को दूर भगाने के लिए किया जाता है। चूँकि ऋषि मार्कंडेय ने इसी मंत्र को सिद्ध किया था इसलिए इन सातो के साथ साथ ऋषि मार्कंडेय को भी  नित्य समरण के लिए  कहा जाता है।  

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रामायण और महाभारत काल के ये सभी दिव्य पुरुष हजारों सालों से जीवित हैं. इनकी संख्या आठ है इसलिए इन्हें अष्ट चिरंजीवी भी कहा जाता है.

रंग बदलने वाले शिवलिंग। रोज 3 बार बदलता है शिवलिंग का रंग

रंग बदलने वाले शिवलिंग। रोज 3 बार बदलता है शिवलिंग का रंग



धौलपुर का यह शिवलिंग दिन में 3 बार अपना रंग बदलता है। शिवलिंग का रंग दिन में लाल, दोपहर को केसरिया और रात को सांवला हो जाता है। ऐसा क्यों होता है इसका जवाब अब तक किसी वैज्ञानिक को नहीं मिल सका है।

कई बार मंदिर में रिसर्च टीमें आकर जांच-पड़ताल कर चुकी हैं। फिर भी इस चमत्कारी शिवलिंग के रहस्य से पर्दा नहीं उठ सका है भगवान शिव को वेदों और शास्त्रों में परम कल्याणकारी और जगदगुरू बताया गया है। यह सर्वोपरि तथा सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी हैं। भारत में एक भगवान शिव ही ऐसे हैं जिन्हें कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और गुजरात से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक सभी समान रूप से पूजते हैं. भगवान शिव की मान्यता भी पूरे भारत में समान ही है।


आइये आज पढ़ते हैं शिव भगवान के एक ऐसे चमत्कारिक शिवलिंग की बारे में जो दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है. इस मंदिर की महिमा और महत्त्व का आज तक लोगों को पता नहीं होने की वजह से लोग यहाँ कम संख्या में ही पहुँच पाते हैं। अगर आप भगवान शिव के ‘अचलेश्वर महादेव’ मंदिरो को खोजते हैं तो आप इस नाम से पूरे भारत में कई मंदिरों को देख सकते हैं. किन्तु यदि आप चमत्कारिक, रंग बदलने वाले शिवलिंग को खोजते हैं तो आप राजस्थान के धौलपुर जिले में स्थित ‘अचलेश्वर महादेव’ मन्दिर के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. धौलपुर जिला राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है। यह इलाका चम्बल के बीहड़ों के लिये भी प्रसिद्ध है। कभी यहाँ बागी और डाकूओं का राज हुआ करता था. इन्ही बीहड़ो में मौजूद है, भगवान अचलेश्वर महादेव का मन्दिर। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है यहां स्थित शिवलिंग दिन मे तीन बार रंग बदलता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।

सुबह के समय इसका रंग लाल रहता है तो दोपहर को केसरिया और रात को यह चमत्कारिक शिवलिंग श्याम रंग का हो जाता है। इस शिवलिंग के बारें में एक बात और भी प्रसिद्ध है कि इस शिवलिंग का अंत आज तक कोई खोज नहीं पाया है। आसपास के लोग बताते हैं कि बहुत साल पहले इस शिवलिंग के रंग बदलने की घटना का पता लगाने के लिए खुदाई हुई थी. तब पता चला कि इस शिवलिंग का कोई अंत भी नहीं है. काफी खोदने के बाद भी इस शिवलिंग का अंत भी नहीं हुआ. तबसे इस शिवलिंग की महिमा और भी बढ़ चुकी है।


अचलेश्वर महादेव के रंग बदलने के पीछे कौन-सा विज्ञान है इस बात के लिए पुरातत्व विभाग भी यहाँ कार्य कर चुका है लेकिन सभी इस ईश्वरीय शक्ति के सामने हार मान चुके हैं। मंदिर की महिमा का व्याख्यान करते हुए पुजारी बताते हैं कि यहाँ से भक्त खाली नहीं जाते हैं. खासकर युवा लड़के और लड़कियां यहाँ अपने करियर, नौकरी और विवाह संबंधित समस्याओं के साथ आते हैं और यह भगवान शिव की महिमा ही है कि वह सबकी मुरादे पूरी भी करते हैं। साथ ही साथ पुजारी यह भी बताते हैं कि इस मंदिर का महत्त्व तो हज़ारों सालों से जस का तस है किन्तु फिर भी बहुत अच्छी संख्या में भक्त इसलिए नहीं आ पाते हैं क्योकि यहाँ आने वाला रास्ता आज भी कच्चा और उबड़-खाबड़ है।

आज भी यह एक रहस्य ही है कि इस शिवलिंग का उद्भव कैसे हुआ और कैसे ये अपना रंग बदलता है. भगवान अचलेश्वर महादेव का यह मन्दिर हजारों साल पुराना बताया जाता है। यह शिवलिंग एक प्राचीन चट्टान से बना हुआ है और देखने से ऐसा भी प्रतीत होता है कि जैसे किसी पहाड़ को काटकर यहाँ रख दिया गया है।

अब आप इसे चाहें तो भगवान का चमत्कार भी बोल सकते हो और यदि विज्ञान को मानते हो तो इस बात का पता लगाने के लिए इस पहेली पर काम भी कर सकते हो।

बात चाहे जो भी हो किन्तु यदि आप कभी धौलपुर (राजस्थान) जायें तो एक बार भगवान ‘अचलेश्वरमहादेव’ के दर्शनों का लाभअवश्य उठायें.

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Color changing Shivling. Shivling's color changes 3 times daily


This Shivling of Dhaulpur changes its color 3 times a day. The color of Shivling becomes red in the day, saffron in the afternoon and dark in the night. No scientist has yet found the answer to why this happens. Many times research teams have come to the temple to investigate. Still, the secret of this miraculous Shivalinga has not been revealed.

Lord Shiva is described as the ultimate benefactor and jagadguru in the Vedas and scriptures. He is the supreme and the master of the whole universe. There is only one Lord Shiva in India who is worshiped equally from Kashmir to Kanyakumari and from Gujarat to Arunachal Pradesh. The belief of Lord Shiva is the same throughout India.

Let us read today about such a miraculous Shivling of Lord Shiva that changes its color thrice a day. Due to the fact that people do not know the glory and importance of this temple, people are able to reach here only in small numbers. If you search the 'Achaleshwar Mahadev' temples of Lord Shiva, you can see many temples across India with this name. But if you discover the miraculous, color-changing Shivalinga, you can get information about the 'Achaleshwar Mahadev' temple located in Dhaulpur district of Rajasthan. Dhaulpur district is located on the border of Rajasthan and Madhya Pradesh. This area is also famous for the ravines of Chambal. Sometimes rebels and bandits used to rule here. The temple of Lord Achaleshwar Mahadev is present in these ravines. The biggest feature of this temple is that the Shivling located here changes colors three times a day. this temple is dedicated to Lord Shiva.

Its color remains red in the morning, then saffron in the afternoon and this marvelous Shivalinga becomes black in the night. There is one more famous thing about this Shivling that no end of this Shivling has been discovered till date. People around say that many years ago, the Shivling was excavated to find out the color change event. Then it was found that there is no end to this Shivling. Even after a lot of digging, this Shivling was not finished. Since then, the glory of this Shivling has increased even more.

Archaeological department has also worked here for this science which is behind changing the color of Achaleshwar Mahadev, but all have given up in front of this divine power. While lecturing the glory of the temple, the priest says that the devotees do not go empty from here. Especially young boys and girls come here with their career, job and marriage related problems and it is the glory of Lord Shiva that he fulfills all wishes. At the same time, the priests also tell that the importance of this temple has been intact for thousands of years, but still a good number of devotees are not able to come because the path coming here is still raw and bumpy.

Even today it remains a mystery how this Shivlinga originated and how it changes its color. This temple of Lord Achaleshwar Mahadev is said to be thousands of years old. This Shivalinga is made of an ancient rock and from the looks it also looks like a mountain has been cut and placed here. Now if you want it, you can also speak the miracle of God and if you believe in science then you can also work on this puzzle to find out.

Whatever the case may be, but if you ever go to Dholpur (Rajasthan), then take advantage of the philosophy of Lord 'Achleshwaramdev' once in your lifetime.