यमराज का दूसरा नाम धर्मराज क्यों ? जानिए धर्मराज के कुछ खास रहस्य तथा मंदिरो के बारे में।

यमराज का दूसरा नाम धर्मराज क्यों ? जानिए धर्मराज के कुछ खास रहस्य तथा मंदिरो के बारे में।  


हिन्दू धर्म में तीन दंड नायक है यमराज, शनिदेव और भैरव। यमराज को 'मार्कण्डेय पुराण' के अनुसार दक्षिण दिशा के दिक्पाल और मृत्यु का देवता कहा गया है। प्राणी की मृत्यु या अंत को लाने वाले देवता यम है।  यमलोक के स्वामी होने के कारण  ये यमराज कहलाए। यमराज का नाम धर्मराज इसलिए पड़ा क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था। यमराज का पुराणों में विचित्र विवरण मिलता है। पुराणों के अनुसार यमराज का रंग हरा है और वे लाल वस्त्र पहनते हैं। यमराज का ही दूसरा नाम धर्मराज है क्योंक‌ि यह धर्म और कर्म के अनुसार जीवों को अलग-अलग लोकों और योन‌ियों में भेजते हैं। धर्मात्मा व्यक्त‌ि को यह कुछ-कुछ व‌िष्‍णु भगवान की तरह दर्शन देते हैं और पाप‌ियों को उग्र रुप में। चूँकि मृत्यु से सब डरते है, इसलिए यमराज से भी सब डरने लगे।  जीवित प्राणी का जब अपना काम पूरा हो जाता है , तब मृत्यु के समय शरीर में से प्राण खींच लिए जाते है, ताकि प्राणी फिर नया शरीर प्राप्त कर नए सिरे से जीवन प्रारंभ कर सके।  

यमराज सूर्य के पुत्र है और उनकी माता का नाम संज्ञा है।  उनका वाहन भैंसा और संदेशवाहक पछी कबूतर, उल्लू और कौआ भी माना  जाता है।  यमराज भैंसे की सवारी करते हैं और उनके हाथ में गदा होती है। ऋग्वेद में कबूतर और उल्लू को यमराज का दूत बताया गया है। गरुड़ पुराण में कौआ को यम का दूत कहा गया है।यमराज अपने हाथ के कालसूत्र या कालपाश की बदौलत जीव के शरीर से प्राण निकल लेते है। यमपुरी यमराज की नगरी है, जिसके दो महाभयंकर चार आँखों वाले कुत्ते पहरेदार है।  यमलोक के द्वार पर दो व‌िशाल कुत्ते पहरे देते हैं। इसका उल्लेख ह‌िन्दू धर्मग्रंथों के अलावा पारसी और यूनानी ग्रंथों में भी म‌िलता है। यमराज अपने सिंहासन पर न्यायमूर्ति की तरह बैठकर विचार भवन कालीची में मृतात्माओं को एक-एक कर बुलवाते है।  यमराज के मुंशी 'चित्रगुप्त' हैं जिनके माध्यम से वे सभी प्राणियों के कर्मों और पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं। चित्रगुप्त की बही 'अग्रसन्धानी' में प्रत्येक जीव के पाप-पुण्य का हिसाब है। कहते हैं कि विधाता लिखता है, चित्रगुप्त बांचता है, यमदूत पकड़कर लाते हैं और यमराज दंड देते हैं। कर्मो को ध्यान में रखकर ही यमराज अपना फैसला देते है।  यमलोक में चार द्वार हैं ज‌िनमें पूर्वी द्वारा से प्रवेश स‌िर्फ धर्मात्मा और पुण्यात्माओं को म‌िलता है जबक‌ि दक्ष‌िण द्वार से पाप‌ियों का प्रवेश होता है ज‌िसे यमलोक में यातनाएं भुगतनी पड़ती है।



यमराज की यो तो कई पत्नियां थी, लेकिन उनमे सुशीला, विजया और हेमनाल अधिक जानी जाती है।  उनके पुत्रो में धर्मराज युधिष्ठिर को तो सभी जानते है।  न्याय के पक्ष में   फैसला देने के गुणो के कारण ही यमराज और युधिष्ठिर जगत में धर्मराज के नाम से जाने जाते है।  यम द्वितीया के अवसर पर जिस दिन भाई-बहिन का त्यौहार भाई-दूज मनाया जाता है।  यम और यमुना की पूजा का विधान बनाया गया है।  उल्लेखनीय है की यमुना  नदी को यमराज की बहन माना  जाता है।  स्कन्दपुराण' में कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को भी दीये जलाकर यम को प्रसन्न किया जाता है। 

भोमवारी चतुर्दशी की यमतीर्थ के दर्शन कर सब पापो से छुटकारा मिल जाये, उसके लिए प्राचीन कल में यमराज ने यमतीर्थ में कठोर तपस्या करके भक्तो को  सिद्धि प्रदान करने वाले यमेश्वर और यमादित्य की स्थापना  की थी।इसको प्रणाम करने वाले एवं यमतीर्थ में स्नान करने वाले मनुष्यो को नारकीय यातनाओ को न तो भोगना पड़ता है और न ही यमलोक देखना पड़ता है।  इसके अलावा मान्यता तो यहाँ तक है की यमतीर्थ में श्राद्ध करके, यमेश्वर का पूजन करने और यमादित्य को प्रणाम करके व्यक्ति अपने पितृ-ऋण से भी उऋण हो सकता है। 

जानते हैं यमराज के खास मंदिरों के बारे में 
भरमौर का यम मंदिर : यमराज का यह मंदिर हिमाचल के चम्बा जिले में भरमौर नाम स्थान पर स्थित है जो एक भवन के समान है।  यह मंदिर देखने में एक घर की तरह दिखाई देता है जहां एक खाली कक्ष है जिमें भगवान यमराज अपने मुंशी चित्रगुप्त के साथ विराजमान हैं।  माना जाता है कि इस मंदिर में चार अदृश्य द्वार हैं जो स्वर्ण, रजत, तांबा और लोहे के बने हैं। यमराज का फैसला आने के बाद यमदूत आत्मा को कर्मों के अनुसार इन्हीं द्वारों से स्वर्ग या नर्क में ले जाते हैं। 


यमुना-धर्मराज मंदिर विश्राम घाट, मथुरा : यह मंदिर उत्तर प्रदेश के मथुरा में यमुना तट पर विश्राम घाट के पास स्थित है। इस बहन-भाई का मंदिर भी कहा जाता है क्योंकि यमुना और यमराज भगवान सूर्य के पुत्री और पुत्र थे। इस मंदिर में यमुना और धर्मराज जी की मूर्तियां एक साथ लगी हुई है। ऐसी पौराणिक मान्यता है की जो भी भाई, भैया दूज  के दिन यमुना में स्नान करके  इस मंदिर में दर्शन करता है उसे यमलोक जाने से मुक्ति मिल जाती है।


वाराणसी का धर्मराज मंदिर : काशी में यमराज से जुड़ी अनसुनी जानकारियां छिपी हैं। यहाँ मीर घाट पर मौजूद है अनादिकाल का धर्मेश्वर महादेव मंदिर जहां धर्मराज यमराज ने शिव की आराधना की थी। माना जाता है कि यम को यमराज की उपाधि यहीं पर मिली थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अज्ञात वास के दौरान यहां धर्मेश्वर महादेव की पूंजा की थी। मंदिर का इतिहास पृथ्वी पर गंगा अवतरण के भी पहले का है, जो काशी खंड में वर्णित है।

सुबह उठते ही इस मंत्र को बोला करे नहीं रहेगी धन की कमी

सुबह उठते ही इस मंत्र को बोला करे नहीं रहेगी धन की कमी


आजकल इस भागदौड़ भरी हुई इस जिंदगी में हर व्यक्ति ये चाहता है की हमारे पास धन हो, हमारे पास विद्या हो, हमारे पास बुद्धि हो , हमारे पास बल हो।  आज हम आपको बतायेंगे की सुबह उठते ही एक मंत्र पढ़ना  है और पुरे दिन के आप के जो काम है वो अपने आप बनते चले जाएंगे।  सब लोग कहते है नहाओ, धोओ उसके बाद काम शुरू करो, यह बिना नहाए धोए आप इस मन्त्र को पढ़ सकते है।  आँख खुलते ही बिना किसी की शक्ल देखे आपको करना है।  मतलब सुबह आँख खुलते ही अपनी हथेलियों को अपने  सामने करना है और उनका दर्शन करना है।  हथेली देखने से पहले किसी भी वस्तु या चीज़ को ना देखे। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र को एक बार जाप करे।  

अक्सर देखा गया है कि जब हमारी सुबह की शुरुआत अच्छी होती है तो हमारा पूरा दिन अच्छा बीतता है। दिन अच्छा व्यतीत हो इसके लिए हम सब प्रातः अपने मन और घर में शांति व प्रसन्नता की कामना करते हैं।   हमारा दिन हमारे लिए शुभ हो इसके लिए भारतीय ऋषि-मुनियों ने कर(हस्त) दर्शन का संस्कार हमें दिया है। शास्त्रों में भी जागते ही बिस्तर पर सबसे पहले बैठकर दोनों हाथों की हथेलियों के दर्शन का विधान बताया गया है। इससे व्यक्ति की दशा सुधरती है और सौभाग्य में वृद्धि होती है। सुबह उठते ही हाथों को देखने का क्या मतलब है?  क्या इसका संबंध हमारे हाथों की लकीरों से हैं या फिर हमारी किस्मत से ? दरअसल हमारे शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि हाथों में सृष्टि के रचानाकार ब्रह्मा, धन की देवी लक्ष्मी और सुख एवं समृद्धि की देवी सरस्वती, तीनों का वास होता है। इसलिए सुबह-सुबह इन्हें देखना शुभ माना जाता है। जब आप सुबह नींद से जागें तो अपनी हथेलियों को आपस में मिलाकर किताब  की तरह खोल लें और यह श्लोक पढ़ते हुए हथेलियों का दर्शन करें:-

कराग्रे बसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती ।
करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम ॥

मतलब  मेरे हाथ के आगे वाले भाग  में भगवती लक्ष्मी का निवास है। मध्य भाग में विद्यादात्री सरस्वती और मूल भाग में भगवान विष्णु का निवास है। अतः प्रभातकाल में मैं इनका दर्शन करता हूँ। इस श्लोक में धन की देवी लक्ष्मी, विद्या की देवी सरस्वती और शक्ति के दाता तथा सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु की स्तुति की गई है, जिससे जीवन में धन,विद्या और भगवत कृपा की प्राप्ति हो सके।


ध्यान रहे की इस मंत्र का जाप करते समय आपको सिर्फ अपनी हथेलियों की और अपनी निगाहें रखनी है और फिर मंत्र उच्चारण खत्म होते ही हथेलियों को परस्पर घर्षण करके उन्हें अपने चेहरे पर फेरना है।  मान्यता है की ऐसा करने से हम सभी देवी देवताओ का आशीर्वाद प्राप्त कर लेते है और पूरा जो दिन है वो हमारा अच्छा निकलता है।  सकारात्मक ऊर्जा भी हम प्राप्त करते है।  आप भी करिए तथा अपने बच्चो को भी कराइये ताकि उनकी बुद्धि और विवेक बढ़े।  

हथेलियों के दर्शन का मूल भाव यही है कि हम अपने कर्म पर विश्वास करें। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि ऐसे कर्म करें जिससे जीवन में धन, सुख और ज्ञान प्राप्त कर सकें। हमारे हाथों से कोई बुरा काम न हो एवं दूसरों की मदद के लिए हमेशा हाथ आगे बढ़ें। 

आँखों के द्रष्टि भी रहेगी ठीक 

जब हम सुबह सोकर उठते है तो हमारी आँखों में नींद रहती हैं। ऐसे मैं यदि एकदम दूर की वस्तु या कहीं रोशनी पर हमारी नज़र पड़ेगी तो आखों पर उसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है।  हाथो का दर्शन करने का यह फायदा है कि इससे आँखों की दृष्टि धीरे धीरे स्थिर हो जाती है और आँखों पर भी कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता।  
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As soon as you wake up in the morning, chanting this Mantra can generate lot of funds


Nowadays in this runaway life, every person wants that we have money, we have knowledge, we have intelligence, we have power. Today we will tell you that you have to recite a mantra as soon as you wake up in the morning and all the work that you have done for the whole day will continue to be done automatically. Everyone says take a bath, then start work. You can read this mantra without washing your hands.  You have to open your eyes without seeing the appearance of anyone. That means opening your palms in front of your eyes in the morning and seeing them. Do not see any thing or thing before looking at the palm. After this, chant the below mantra once.

It has often been seen that when our morning starts well, our whole day goes well. We all wish for peace and happiness in our mind and home in the morning to have a good day. To make our day auspicious for us, Indian sages have given us the rite of hand darshan. In the scriptures also, upon waking up, by only sitting on the bed is said to be very good  the darshan of our palms of both hands. This improves a person's condition and increases luck. What does it mean to see hands as soon as you wake up in the morning? Is it related to the lines in our hands or our luck? Actually, it has been said in our scriptures that Brahma, the creator of creation, Lakshmi, the goddess of wealth, and Saraswati, the goddess of happiness and prosperity, reside in all three. Therefore, it is considered auspicious to see them in the morning. When you wake up from sleep in the morning, mix your palms together and open them like a book and while reading this verse, see the palms: -

Karagre Basate Lakshmi: Karamadhye Saraswati.
Karmule tu Govindah Prabhate Kardarshanam


Meaning in front of my hand is the abode of Bhagwati Lakshmi. The central part is home to Vidyadatri Saraswati and the original part to Lord Vishnu. So, I see him in the morning. This verse praises Lakshmi, the goddess of wealth, Saraswati, the goddess of learning, and Lord Vishnu, the giver of power, and the follower of creation, so that one can attain wealth, learning and Bhagwat grace in life.

Keep in mind that while chanting this mantra, all you have to do is to keep an eye on your palms and then at the end of the chanting of the mantra, palms are frictional on your face with mutual friction. It is believed that by doing this, we get the blessings of all the Gods and Goddesses, and the whole day is good for us. We also receive positive energy. You should also do it to your children so that their intelligence and conscience will increase.

The basic idea of ​​palms philosophy is that we believe in our karma. We pray to God to do such deeds that can bring wealth, happiness and knowledge in life. There should be no bad work with our hands and always move forward to help others.

Eyesight will also Improve

When we wake up in the morning we usually feel sleep in our eyes. In this way, if we look at a very distant object or light, then it can have a bad effect on the eyes. The advantage of seeing the hands is that it makes the eyesight gradually stable and there is no side effect on the eyes.

अष्ट चिरंजीवी लोग जिनका स्मरण करने से शरीर होता है निरोग और प्राप्त होती है सौ वर्ष की आयु ।


अष्ट चिरंजीवी लोग जिनका स्मरण करने से  शरीर होता है निरोग और प्राप्त होती है सौ वर्ष की आयु ।   

शरीर नश्वर है, लेकिन शास्त्रों में आठ ऐसे लोग भी बताए गए हैं, जिन्होंने जन्म लिया है और वे हजारों सालों से देह धारण किए हुए हैं यानी वे अभी भी सशरीर जीवित हैं। वैसे तो हिन्दू पौराणिक कथाओ में बहुत से रोचक और रहस्यमई कहानियाँ  है मगर सबसे दिलचस्प वो मान्यता है जिसके मुताबिक महाभारत और रामायण काल के कई पात्र आज भी जीवित है।  योग में जिन अष्ट सिद्धियों  की बात कही गई है, वे सारी सिद्धिया इनमे विद्धमान है।  ये सब किसी न किसी वचन, नियम या श्राप से बंधे हुए है और ये सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न है। हिंदू धर्म अनुसार इन्हें आठ जीवित महामानव कहा जाता है। रामचरितमानस में लिखे गये एक श्लोक के अनुसार भगवान परशुराम, अश्वत्थामा, भगवान हनुमान, ऋषि व्यास, राजा बलि, विभिषण, कृपाचार्य और ऋषि मार्कंडेय ये आठ महामानव चिरंजीवी है। प्राचीन मान्यताओं के आधार पर यदि कोई व्यक्ति हर रोज इन आठ अमर लोगों  के नाम भी लेता है तो  शरीर के सारे रोग समाप्त हो जाते है और उसकी उम्र लंबी होती है।  



भगवान परशुराम
पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान विष्णु के छटे अवतार है परशुराम।  परशुराम के पिता ऋषि  जमदग्नि और माता रेणुका थी।  इनका जन्म हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। इसलिए वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है। परशुराम का जन्म समय सतयुग और त्रेता के संधिकाल में माना जाता है। परशुराम का प्रारंभिक नाम राम था। राम ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। इन्हें भी अमर होने का वरदान मिला है। राम ने शिवजी को प्रशन्न करने के लिए कठोर तप किया था।  शिवजी तपस्या से प्रसन्न हुए और राम को अपना फरसा दिया।  इसी वजह से राम परशुराम कहलाने लगे।  परशुराम भगवान राम के पूर्व हुए थे लेकिन चिरंजीवी होने के कारण राम के काल में भी थे।  आपको बता दे की भगवन परशुराम ने  पृथ्वी से 11 बार निरंकुश और अधर्मी क्षत्रियों का अंत किया था। कहा जाता है कि परशुराम को भी अमर होने का वरदान प्राप्त है।


अश्वत्थामा
ग्रंथों में भगवान शंकर के अनेक अवतारों का वर्णन भी मिलता है। उनमें से एक अवतार ऐसा भी है, जो आज भी पृथ्वी पर अपनी मुक्ति के लिए भटक रहा है। ये अवतार हैं गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का।अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र है।  ग्रंथो में भगवन शंकर के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है।  द्वापर युग में जब कौरव और पांडवो में युद्ध हुआ था तब अश्वथामा ने कौरवो का साथ दिया था।  महाभारत के अनुसार अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के सम्मिलित अंशावतार थे। अश्वत्थामा अत्यंत शूरवीर, प्रचंड क्रोधी स्वभाव के योद्धा थे। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने ही अश्वत्थामा को चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था। अश्वत्थामा परम तेजस्वी थे जो अपनी दिव्य शक्तियों का उपयोग करने में माहिर थे।  शास्त्रों के अनुसार अश्वस्थामा आज भी जीवित हैं।  


भगवान हनुमान
कलियुग में हनुमानजी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता माने गए हैं।  भगवान रुद्र के 11वें अवतार और मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के परम भक्त हनुमान जी की महिमा से हर कोई वाकिफ है।  अंजनी पुत्र हनुमान जी  को भी अमर रहने का वरदान मिला हुआ है।  महावीर हनुमान रामायण काल में भगवान श्रीराम के परम भक्त रहे थे। हज़ारो वर्षो बाद वे महाभारत काल में भी नज़र आते है।  महाभारत में उनके कई प्रसंग भी मिलते है। माता सीता ने हनुमान को लंका की अशोक वाटिका में राम का सन्देश सुनने के बाद आशीर्वाद दिया था की वे अज़र अमर रहेंगे और जब भगवान श्री राम इस धरती से अपने धाम वैंकुंठ को लोट रहे थे तब भगवान श्रीराम ने भी महावीर हनुमान को पृथ्वी के अंत तक पृथ्वी पर ही रहने की आज्ञा दी थी। उन्हें वरदान मिला है कि उन्हें ना कभी मौत आएगी और ना ही कभी बुढ़ापा।  इसलिए माना  जाता है की महावीर हनुमान आज भी जिन्दा है।   हनुमान जी को अमर होने का वरदान मिला है जिसके कारण वो आज भी चिरंजीवी हैं।  

ऋषि व्यास
ऋषि  व्यास को वेद व्यास के नाम से भी जाना जाता है।  मान्यताओं के अनुसार, भगवान वेद व्यास जी  चार वेदों ऋगवेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद और  18 पुराणों, महाभारत और श्रीमदभागवद गीता की रचना के रचनाकार भी माने जाते हैं।   वेद व्यास ऋषि पराशर और सत्यवती के पुत्र थे।  इनका जन्म यमुना नदी के एक द्वीप पर हुआ था और इनका रंग सांवला था।  कहा जाता है वेद व्यास जी भी उन दिव्य महापुरुषों में शामिल हैं, जिन्हें अमर होने का वरदान प्राप्त है। 

राजा बलि
राजा बलि दान के चर्चे दूर दूर तक थे।  देवताओ को परास्त कर राजा बलि ने इंद्र लोक पर अपना अधिकार कर लिया था तब राजा बलि के अभिमान को चूर करने के लिए भगवान विष्णु ब्राह्मण का वेश धारण कर राजा  बलि से तीन पग धरती दान में मांगी थी।  शास्त्रों के अनुसार राजा बलि भक्त प्रह्लाद के वंशज है।  बलि ने भगवान विष्णु के वामन अवतार को अपना सब कुछ दान कर दिया था।राजा बलि की भक्ति से भगवान विष्णु  अति प्रसन्न थे।  इसी वजह से भगवान श्री हरी विष्णु जी ने उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान दिया था।  राजा बलि की दानशीलता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उनका द्वारपाल बनना भी स्वीकार किया था। शास्त्रों की मान्यताओं के अनुसार, राजा बलि आज भी जीवित हैं। नियम से बंधे होने की वजह से राजा बलि को अमरता प्राप्त है।


विभिषण
राक्षस राज रावण के छोटे भाई हैं विभीषण। विभिषण श्री प्रभु राम के अनन्य भक्त थे।  जब रावण ने माता सीता का हरण किया था तब विभिषण ने रावण को प्रभु राम से शत्रुता नहीं करने के लिए बहुत समझाया था।  इस बात पर रावण ने विभिषण को लंका से निकाल दिया था।  विभिषण प्रभु राम की सेवा में चले गए।  उन्होंने  रावण की अधर्मी नितियों का न सिर्फ विरोध किया, बल्कि रामायण काल में युद्ध के दौरान मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का साथ भी दिया कहा जाता है कि विभिषण भी चिरंजीवी महापुरुषों में से एक हैं।  इन्होने अधर्म को मिटाने में धर्म का साथ दिया। तब श्रीराम ने उन्हे अमरत्व का वरदान दिया था।


कृपाचार्य
कृपाचार्य अश्वथामा के मामा और कौरवों  के कुलगुरु थे। कृपाचार्य गौतम ऋषि पुत्र हैं और इनकी बहन का नाम है कृपी। कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ था।   महाभारत युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की और से सक्रिय थे।   महाभारत काल के तपस्वी ऋषि कृपाचार्य कौरवों और पांडवों के गुरु थे। परम तपस्वी होने के साथ-साथ कृपाचार्य युद्ध नीति में भी पारंगत थे।  हिंदू धर्म के शास्त्रों में कृपाचार्य को अमर बताया गया है, जो आज भी जीवित हैं  

ऋषि मार्कंडेय
भगवान शिव के परम भक्त हैं ऋषि मार्कण्डेय। इन्होंने शिवजी को तप कर प्रसन्न किया और महामृत्युंजय मंत्र सिद्धि के कारण चिरंजीवी बन गए। महामृत्युंजय मंत्र का जाप मौत को दूर भगाने के लिए किया जाता है। चूँकि ऋषि मार्कंडेय ने इसी मंत्र को सिद्ध किया था इसलिए इन सातो के साथ साथ ऋषि मार्कंडेय को भी  नित्य समरण के लिए  कहा जाता है।  

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रामायण और महाभारत काल के ये सभी दिव्य पुरुष हजारों सालों से जीवित हैं. इनकी संख्या आठ है इसलिए इन्हें अष्ट चिरंजीवी भी कहा जाता है.

रंग बदलने वाले शिवलिंग। रोज 3 बार बदलता है शिवलिंग का रंग

रंग बदलने वाले शिवलिंग। रोज 3 बार बदलता है शिवलिंग का रंग



धौलपुर का यह शिवलिंग दिन में 3 बार अपना रंग बदलता है। शिवलिंग का रंग दिन में लाल, दोपहर को केसरिया और रात को सांवला हो जाता है। ऐसा क्यों होता है इसका जवाब अब तक किसी वैज्ञानिक को नहीं मिल सका है।

कई बार मंदिर में रिसर्च टीमें आकर जांच-पड़ताल कर चुकी हैं। फिर भी इस चमत्कारी शिवलिंग के रहस्य से पर्दा नहीं उठ सका है भगवान शिव को वेदों और शास्त्रों में परम कल्याणकारी और जगदगुरू बताया गया है। यह सर्वोपरि तथा सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी हैं। भारत में एक भगवान शिव ही ऐसे हैं जिन्हें कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और गुजरात से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक सभी समान रूप से पूजते हैं. भगवान शिव की मान्यता भी पूरे भारत में समान ही है।


आइये आज पढ़ते हैं शिव भगवान के एक ऐसे चमत्कारिक शिवलिंग की बारे में जो दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है. इस मंदिर की महिमा और महत्त्व का आज तक लोगों को पता नहीं होने की वजह से लोग यहाँ कम संख्या में ही पहुँच पाते हैं। अगर आप भगवान शिव के ‘अचलेश्वर महादेव’ मंदिरो को खोजते हैं तो आप इस नाम से पूरे भारत में कई मंदिरों को देख सकते हैं. किन्तु यदि आप चमत्कारिक, रंग बदलने वाले शिवलिंग को खोजते हैं तो आप राजस्थान के धौलपुर जिले में स्थित ‘अचलेश्वर महादेव’ मन्दिर के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. धौलपुर जिला राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है। यह इलाका चम्बल के बीहड़ों के लिये भी प्रसिद्ध है। कभी यहाँ बागी और डाकूओं का राज हुआ करता था. इन्ही बीहड़ो में मौजूद है, भगवान अचलेश्वर महादेव का मन्दिर। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है यहां स्थित शिवलिंग दिन मे तीन बार रंग बदलता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।

सुबह के समय इसका रंग लाल रहता है तो दोपहर को केसरिया और रात को यह चमत्कारिक शिवलिंग श्याम रंग का हो जाता है। इस शिवलिंग के बारें में एक बात और भी प्रसिद्ध है कि इस शिवलिंग का अंत आज तक कोई खोज नहीं पाया है। आसपास के लोग बताते हैं कि बहुत साल पहले इस शिवलिंग के रंग बदलने की घटना का पता लगाने के लिए खुदाई हुई थी. तब पता चला कि इस शिवलिंग का कोई अंत भी नहीं है. काफी खोदने के बाद भी इस शिवलिंग का अंत भी नहीं हुआ. तबसे इस शिवलिंग की महिमा और भी बढ़ चुकी है।


अचलेश्वर महादेव के रंग बदलने के पीछे कौन-सा विज्ञान है इस बात के लिए पुरातत्व विभाग भी यहाँ कार्य कर चुका है लेकिन सभी इस ईश्वरीय शक्ति के सामने हार मान चुके हैं। मंदिर की महिमा का व्याख्यान करते हुए पुजारी बताते हैं कि यहाँ से भक्त खाली नहीं जाते हैं. खासकर युवा लड़के और लड़कियां यहाँ अपने करियर, नौकरी और विवाह संबंधित समस्याओं के साथ आते हैं और यह भगवान शिव की महिमा ही है कि वह सबकी मुरादे पूरी भी करते हैं। साथ ही साथ पुजारी यह भी बताते हैं कि इस मंदिर का महत्त्व तो हज़ारों सालों से जस का तस है किन्तु फिर भी बहुत अच्छी संख्या में भक्त इसलिए नहीं आ पाते हैं क्योकि यहाँ आने वाला रास्ता आज भी कच्चा और उबड़-खाबड़ है।

आज भी यह एक रहस्य ही है कि इस शिवलिंग का उद्भव कैसे हुआ और कैसे ये अपना रंग बदलता है. भगवान अचलेश्वर महादेव का यह मन्दिर हजारों साल पुराना बताया जाता है। यह शिवलिंग एक प्राचीन चट्टान से बना हुआ है और देखने से ऐसा भी प्रतीत होता है कि जैसे किसी पहाड़ को काटकर यहाँ रख दिया गया है।

अब आप इसे चाहें तो भगवान का चमत्कार भी बोल सकते हो और यदि विज्ञान को मानते हो तो इस बात का पता लगाने के लिए इस पहेली पर काम भी कर सकते हो।

बात चाहे जो भी हो किन्तु यदि आप कभी धौलपुर (राजस्थान) जायें तो एक बार भगवान ‘अचलेश्वरमहादेव’ के दर्शनों का लाभअवश्य उठायें.

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Color changing Shivling. Shivling's color changes 3 times daily


This Shivling of Dhaulpur changes its color 3 times a day. The color of Shivling becomes red in the day, saffron in the afternoon and dark in the night. No scientist has yet found the answer to why this happens. Many times research teams have come to the temple to investigate. Still, the secret of this miraculous Shivalinga has not been revealed.

Lord Shiva is described as the ultimate benefactor and jagadguru in the Vedas and scriptures. He is the supreme and the master of the whole universe. There is only one Lord Shiva in India who is worshiped equally from Kashmir to Kanyakumari and from Gujarat to Arunachal Pradesh. The belief of Lord Shiva is the same throughout India.

Let us read today about such a miraculous Shivling of Lord Shiva that changes its color thrice a day. Due to the fact that people do not know the glory and importance of this temple, people are able to reach here only in small numbers. If you search the 'Achaleshwar Mahadev' temples of Lord Shiva, you can see many temples across India with this name. But if you discover the miraculous, color-changing Shivalinga, you can get information about the 'Achaleshwar Mahadev' temple located in Dhaulpur district of Rajasthan. Dhaulpur district is located on the border of Rajasthan and Madhya Pradesh. This area is also famous for the ravines of Chambal. Sometimes rebels and bandits used to rule here. The temple of Lord Achaleshwar Mahadev is present in these ravines. The biggest feature of this temple is that the Shivling located here changes colors three times a day. this temple is dedicated to Lord Shiva.

Its color remains red in the morning, then saffron in the afternoon and this marvelous Shivalinga becomes black in the night. There is one more famous thing about this Shivling that no end of this Shivling has been discovered till date. People around say that many years ago, the Shivling was excavated to find out the color change event. Then it was found that there is no end to this Shivling. Even after a lot of digging, this Shivling was not finished. Since then, the glory of this Shivling has increased even more.

Archaeological department has also worked here for this science which is behind changing the color of Achaleshwar Mahadev, but all have given up in front of this divine power. While lecturing the glory of the temple, the priest says that the devotees do not go empty from here. Especially young boys and girls come here with their career, job and marriage related problems and it is the glory of Lord Shiva that he fulfills all wishes. At the same time, the priests also tell that the importance of this temple has been intact for thousands of years, but still a good number of devotees are not able to come because the path coming here is still raw and bumpy.

Even today it remains a mystery how this Shivlinga originated and how it changes its color. This temple of Lord Achaleshwar Mahadev is said to be thousands of years old. This Shivalinga is made of an ancient rock and from the looks it also looks like a mountain has been cut and placed here. Now if you want it, you can also speak the miracle of God and if you believe in science then you can also work on this puzzle to find out.

Whatever the case may be, but if you ever go to Dholpur (Rajasthan), then take advantage of the philosophy of Lord 'Achleshwaramdev' once in your lifetime.

संस्कृत वैज्ञानिकों की पसंद, जानिए इसके बारे में हैरान कर देने वाले रोचक तथ्य जो बहुत कम ही लोग जानते हैं


संस्कृत वैज्ञानिकों की पसंद, जानिए इसके बारे में हैरान कर देने वाले रोचक तथ्य जो बहुत कम ही लोग जानते हैं– अवश्य पढ़ें

संस्कृत हज़ारों वर्ष से इस देश की राष्ट्रभाषा रही हैं। यहाँ का समस्त साहित्य संस्कृतमय है, यहां के निवासी की क्रिया कलाप की यही भाषा है। इस देश की सभ्यता एवं संस्कृति की पवित्रधारा इसी भाषा में निरंतर बहती रही हो। वह भाषा इस देश में कदापि मृत नहीं हो सकती। अंग्रेजी शिक्षण व्यवस्था से सदा के लिए इस सम्पूर्ण वैज्ञानिक भाषा की उपेक्षा की गयी। जेसे अपने बेटे द्वारा माँ का परित्याग हुआ हो। फिर भी इस देश में समय समय पर भारत माँ के सपूत ने जन्म लिया और इसके महत्व को समझाया और आज तो यह हो गया है कि पूरे विश्व ने इसको मान लिया।  संस्कृत देवभाषा है।  यह सभी भाषाओँ की जननी है।  संस्कृत वैज्ञानिकों की पसंद है। यह बात शायद सब लोग नहीं जानते।  आइए, जानिए इसके बारे में कुछ रोचक तथ्य कि क्यों यह वैज्ञानिकों को भी पसंद है। संस्कृत के बारे में इन तथ्यों को जान कर आपको भारतीय होने पर गर्व होगा। हाल ही में हिन्दी की अनिवार्यता को लेकर जब दक्षिण के राज्यों में विरोध हो रहा था तो नासा ने संस्कृत को प्रमोट करने के लिए आर्थिक सहयोग का ऐलान किया। इसके पीछे तर्क यही था कि इसे वैज्ञानिकों की कूटभाषा बनाया जा सकता है। यह भाषा अपनी दिव्य एवं दैवीय विशेषताओं के कारण आज भी उतनी ही प्रासंगिक एवं जीवंत है।  आइये जानते है संस्कृत के बारे में कुछ हैरान कर देने वाले रोचक तथ्य जो किसी भी भारतीय का सर गर्व से ऊंचा कर देंगे।


  • संस्कृत के कई ग्रंथ और रचनाएं ऐसी हैं, जो हजारों साल पहले लिखे गए, लेकिन आज के साइंस से कहीं ज्यादा एडवांस्ड थी उनकी कलम और उससे भी कहीं एडवांस्ड थी उनकी सोच। जिस साउंड सिस्टम पर आज हम गर्व करते हैं, ज्यॉमेट्री को पढ़ते हैं, या एटम और न्यूक्लियर थ्योरी पर आज की दुनिया गर्व कर रही है, उसे हजारों साल पहले हमारे देश के संस्कृत विद्वानों और ऋषि-मुनियों ने दुनिया के सामने रख दिया था। हज़ारों साल पहले ऐसा काव्य भी लिख दिया गया, जो सीधा पढ़ने पर राम कथा कहता है और उल्टा पढ़ें तो कृष्ण गाथा। एकाक्षरी श्लोक भी लिखे गए, जिनमें एक ही अक्षर के कई अलग अर्थ निकलते हैं। राजा-महाराजा वेश्याओं और उनकी चालों से खुद को कैसे बचाएं, इसे भी लिख कर ग्रंथ की शक्ल दी गई। इस तरह श्लोकों और मंत्रों के पीछे इन्हें लिखने वाले कवि, ऋषि की योग्यता ही थी। उनके ये श्लोक और मंत्र आज भी भारत और खासकर संस्कृत भाषा के लिए धरोहर हैं। किसी और भाषा में ऐसे उदाहरण कम ही देखने मिलते हैं, जिनमें एक ही अक्षर का प्रयोग हो और सभी के अर्थ अलग हों।
  • भारत में दो जगह ऐसी हैं जहां आज भी सिर्फ संस्कृत बोली जाती है। पहली मुंबई में एक गुजराती फैमिली है, तो दूसरा कर्नाटक का मट्टूर गांव जहां लोग संस्कृत बोलते हैं। आपको बताते चलें कि संस्कृत कंप्यूटर फ्रेंडली लैंग्वेज मानी जाती है। यही नहीं जर्मनी की 14 यूनिवर्सिटीज में संस्कृत को सब्जेक्ट के तौर पर शामिल किया गया है।
  • संसार की समस्त प्राचीनतम भाषाओं में संस्कृत का सर्वोच्चस्थान है। विश्व-साहित्य की प्रथम पुस्तक ऋग्वेद संस्कृत में ही रची गई है। संपूर्ण भारतीय संस्कृति, परंपरा और महत्वपूर्ण राज इसमें निहित है। अमरभाषा या देववाणी संस्कृत को जाने बिना भारतीय संस्कृति की महत्ता को जाना नहीं जा सकता।
  • संस्कृत वह भाषा है जो अपनी पुस्तकों वेद, उपनिषदों, श्रुति, स्मृति, पुराणों, महाभारत, रामायण आदि में सबसे उन्नत प्रौद्योगिकी(Technology) रखती है।
  • दुनिया की सभी भाषाओं की माँ संस्कृत है। सभी भाषाएँ (97%) प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस भाषा से प्रभावित है।
  • संस्कृत उत्तराखंड की द्वितीय राजभाषा है।
  • अरब लोगो की दखलंदाजी से पहले संस्कृत भारत की राष्ट्रीय भाषा थी।
  • संस्कृत किसी भी विषय के लिए एक अद्भुत खजाना है। जैसे हाथी के लिए ही संस्कृत में 100 से ज्यादा शब्द है।

  • नासा के मुताबिक, संस्कृत धरती पर बोली जाने वाली सबसे स्पष्ट भाषा है। नासा के पास संस्कृत में ताड़पत्रो पर लिखी 60,000 पांडुलिपियां है जिन पर नासा रिसर्च कर रहा है।भले हम कहें कि संस्कृत कठिन भाषा है, यह आम बोलचाल की भाषा नहीं बन सकती, लेकिन नासा के मुताबिक, संस्कृत धरती पर बोली जाने वाली सबसे स्पष्ट भाषा है। संस्कृत में दुनिया की किसी भी भाषा से ज्यादा शब्द है। वर्तमान में संस्कृत के शब्दकोष में 102 अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्द हैं।
  • नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार जब वे अंतरिक्ष यात्रियों को मैसेज भेजते थे तो उनके वाक्य उलट हो जाते थे। इस वजह से मैसेज का अर्थ ही बदल जाता था। उन्होंने कई भाषाओं का प्रयोग किया, लेकिन हर बार यही समस्या आई। आखिर में उन्होंने संस्कृत में मैसेज भेजा, क्योंकि संस्कृत के वाक्य उल्टे हो जाने पर भी अपना अर्थ नही बदलते हैं। जैसे- अहम् विद्यालयं गच्छामि। विद्यालयं गच्छामि अहम्। गच्छामि अहम् विद्यालयं। उक्त तीनों के अर्थ में कोई अंतर नहीं है।
  • नासा के वैज्ञानिको द्वारा बनाए जा रहे 6th और 7th जेनरेशन सुपर कम्प्यूटर्स  संस्कृत भाषा पर आधारित होंगे जो 2034 तक बनकर तैयार हो जाएंगे।
  • फ़ोबर्स मैगज़ीन ने जुलाई,1987 में संस्कृत को कंप्यूटर सॉफ्टवेयर  के लिए सबसे बेहतर भाषा माना था।
  • किसी और भाषा के मुकाबले संस्कृत में सबसे कम शब्दों में वाक्य पूरा हो जाता है। संस्कृत दुनिया की अकेली ऐसी भाषा है, जिसे बोलने में जीभ की सभी मांसपेशियों का इस्तेमाल होता है। अमेरिकन हिंदू यूनिवर्सिटी के अनुसार संस्कृत में बात करने वाला मनुष्य बीपी, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल आदि रोग से मुक्त हो जाएगा। संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है, जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश (Positive Charges) के साथ सक्रिय हो जाता है।
  • संस्कृत स्पीच थेरेपी में भी मददगार है यह एकाग्रता को बढ़ाती है।
  • सुधर्मा संस्कृत का पहला अखबार था, जो 1970 में शुरू हुआ था। आज भी इसका ऑनलाइन संस्करण उपलब्ध है।
  • जर्मनी में बड़ी संख्या में संस्कृतभाषियो की मांग है। जर्मनी की 14 यूनिवर्सिटीज़ में संस्कृत पढ़ाई जाती है।
  • आपको जानकर हैरानी होगी कि कंप्यूटर द्वारा गणित के सवालो को हल करने वाली विधि यानि Algorithms संस्कृत में बने है ना कि अंग्रेजी में।
  • संस्कृत सीखने से दिमाग तेज हो जाता है और याद करने की शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए लंदन और आयरलैंड  के कई स्कूलो में संस्कृत को जरुरी विषय  बना दिया है।
  • इस समय दुनिया के 17 से ज्यादा देशो की कम से कम एक यूनिवर्सिटी  में तकनीकी शिक्षा के कोर्सेस में संस्कृत पढ़ाई जाती है।  
लेकिन यहाँ यह बात अवश्य सोचने की है,की आज जहाँ पूरेविश्व में संस्कृत पर शोध चल रहे हैं,रिसर्च हो रहीं हैं वहीँ हमारे देश संस्कृत को मृत भाषा बताने में बाज नहीं आ रहे हैं .
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Know the surprising facts about Sanskrit Language that very few people know - Must Read



Sanskrit has been the national language of this country for thousands of years. All the literature here are in Sanskrit, this is the language of activity of the residents here. The sacred stream of civilization and culture of this country has been continuously flowing in this language. That language can never die in this country. This entire scientific language was neglected forever by the English teaching system. Like a mother abandoned by her son. Nevertheless, the son of Mother India was born from time to time in this country and explained its importance and today it has become that the whole world has accepted it. Sanskrit is the mother of all languages. Sanskrit is the choice of scientists. Probably not everyone knows this thing. Come, know some interesting facts about why even scientists like it. Knowing these facts about Sanskrit, you will be proud to be an Indian. Recently, when there was a protest in the southern states about the inevitability of Hindi, NASA announced economic cooperation to promote Sanskrit. The reasoning behind this was that it could be made the code of scientists. This language is equally relevant and alive today due to its divine characteristics.  Let us know some interesting interesting facts about Sanskrit which will make any Indian head proud.

  • There are many texts and works of Sanskrit which were written thousands of years ago, but their pen was more advanced than today's science and their thinking was more advanced than that. The sound system that we are proud of today, read geometry, or the world that today's world is proud of, Atom and Nuclear Theory, was laid out thousands of years ago by the Sanskrit scholars and sages of our country. Thousands of years ago, such poetry was also written, which on direct reading says Ram Katha and vice versa, Krishna saga. Ekakshari shlokas were also written, in which many different meanings of the same letter are derived. The King-Maharaja also wrote a book about how to protect himself from prostitutes and their tricks. Thus behind the shlokas and mantras was the ability of the poet, sage who wrote them. His verses and mantras are still a legacy for India and especially for Sanskrit language. In some other languages, such examples are rarely seen, in which the use of the same letter and all have different meanings.
  • There are two places in India where even today only Sanskrit is spoken. The first is a Gujarati family in Mumbai, the second is Mattur village in Karnataka where people speak Sanskrit. Let me tell you that Sanskrit is considered a computer friendly language. Not only this, Sanskrit has been included as a subject in 14 universities of Germany.
  • Sanskrit is the supreme place in all the oldest languages ​​of the world. The first book of world literature Rigveda has been composed in Sanskrit itself. The entire Indian culture, tradition and important secret lies in it. The importance of Indian culture cannot be known without knowing Amarabhasha or Devvani Sanskrit.
  • Sanskrit is the language which holds the most advanced technology in its books Vedas, Upanishads, Shruti, Smriti, Puranas, Mahabharata, Ramayana etc.
  • Sanskrit is the mother of all languages ​​of the world. All languages ​​(97%) are directly or indirectly influenced by this language.
  • Sanskrit is the second official language of Uttarakhand.
  • Sanskrit was the national language of India before the intervention of the Arab people.
  • Sanskrit is a wonderful treasure for any subject. For example, there are more than 100 words in Sanskrit for elephants.


  • According to NASA, Sanskrit is the most pronounced language spoken on earth. NASA has 60,000 manuscripts written on palm leaves in Sanskrit on which NASA is researching. While we say that Sanskrit is a difficult language, it cannot become a common language, but according to NASA, Sanskrit is the most obvious spoken on earth. Sanskrit has more words than any other language in the world. At present there are 102 billion 78 crore 50 lakh words in Sanskrit dictionary.
  • According to NASA scientists, when they sent messages to astronauts, their sentences were reversed. Because of this, the meaning of the message used to change. He used many languages, but the same problem occurred every time. Finally, he sent a message in Sanskrit, because even if the Sanskrit sentences are inverted, they do not change their meaning. 
  • The 6th and 7th generation supercomputers being built by NASA scientists will be based on Sanskrit language which will be ready by 2034.
  • In July 1987, Fobers magazine considered Sanskrit to be the best language for computer software.
  • The sentence is completed in the fewest words in Sanskrit as compared to any other language. Sanskrit is the only language in the world that uses all the muscles of the tongue to speak. According to American Hindu University, a person speaking Sanskrit will be free from diseases like BP, diabetes, cholesterol etc. Talking in Sanskrit keeps the nervous system of the human body active, so that the person's body becomes active with positive charges.
  • Sanskrit is also helpful in speech therapy. It increases concentration.
  • Sudharma was the first Sanskrit newspaper, which started in 1970. Even today its online version is available.
  • There is a demand for a large number of Sanskrit speakers in Germany. Sanskrit is taught at 14 universities in Germany.
  • You will be surprised to know that the method of solving math problems by computer i.e. Algorithms is made in Sanskrit and not in English.
  • Learning Sanskrit makes the mind sharp and increases the power to remember. Therefore, Sanskrit has been made a necessary subject in many schools in London and Ireland.
  • At present, Sanskrit is taught in the courses of technical education in at least one university of more than 17 countries of the world.

But it is definitely to be thought here that today, where research is going on in the world, research is being done on the world, while our country is not hurting to tell Sanskrit as dead language.

ओउम (ॐ ) शब्द की उत्पति तथा ॐ का शास्त्रों में अधिक महत्व क्यों ?




 ओउम  (ॐ ) शब्द की उत्पति तथा ॐ का  शास्त्रों में अधिक महत्व क्यों ?

हिंदू संस्कृति में ॐ का उच्चारण अत्यंत महिमापूर्ण और पवित्र माना गया है।  इसके उच्चारण में अ +उ +म अक्षर ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शंकर) का बोध कराते हैं और इन तीनों शक्तियों का एक साथ आवाहन होता  है।  यह तीन अक्षर -  ऋगवेद, यजुर्वेद और सामवेद का प्रतिनिधित्व करते हैं।  ॐ ही समस्त धर्मो व शास्त्रों का स्त्रोत है।  नाद/ध्वनि का मूल स्वरूप ॐकार माना गया है।   ॐ ही नाद ब्रह्मा है।  ॐ परा बीजाक्षर है।  इसी कारण हर शुभ कार्य करने से पहले इसका उच्चारण अनिवार्य है।   इस बीजाक्षर को अत्यंत रहस्य्मय और परम शक्तिशाली माना गया है।  इसलिए अनादि काल से साधकों में ॐकार  के प्रति अगाध श्रद्धा रही है।  ओम की महिमा के संबंध में अनेक ग्रंथों में उल्लेख किया गया है।  

भगवान श्री कृष्ण जी ने भी कहा है कि मन के द्वारा प्राण को मस्तक में स्थापित करके, योगधारण में स्थित होकर जो पुरुष ॐ इस एक अक्षर रुप ब्रह्मा का उच्चारण  और उसके अर्थस्वरूप मुझ  निर्गुण ब्रह्म का चिंतन करता हुआ शरीर को त्याग करता है,  वह पुरुष परम गति को प्राप्त होता है। आगे वे श्रीमद्भभागवदगीता के अध्याय 17 के श्लोक 24 में कहते हैं कि वेद मंत्रों का उच्चारण करने वाले श्रेष्ठ पुरुषों की शास्त्रविधि से नियत यज्ञ, दान और तपरूप क्रियाएं  सदा ॐ  इस परमात्मा के नाम को उच्चारण  करके ही आरम्भ होती है।   


गोपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि बिना ॐ लगाए किसी मंत्र का उच्चारण करने पर मंत्र निष्फल हो जाता है।  मंत्र के आगे ॐ का उच्चारण मंत्र की शक्ति में वृद्धि कर देता है।  ओम शिव है और मंत्र है शक्ति रूप,  इसलिए इन दोनों का एक साथ उच्चारण करना मंत्र में सिद्धि  देनेवाला है।   प्रत्येक स्तोत्र, उपनिषद, गायत्री मंत्र  में आहुतियां देने वाले मंत्र, सभी अर्चनाएं,  सहस्त्रनाम भगवानों को याद करने के मंत्र आदि सब ॐ से ही प्रारंभ होते हैं।   

ॐ  को पूर्ण श्रद्धा भाव के साथ ऊंचे दीर्घ स्वर में उच्चारण करना चाहिए। इसके उच्चारण से ध्वनि में कंपन शक्ति पैदा होती है।  भौतिक शरीर में अणु-अणु पर इसका प्रभाव पड़ता है।   मन में एकाग्रता और शक्ति जागृत होती है।   वाणी में मधुरता आती है।   शरीर में स्फूर्ति का संचार होता है तथा सभी संसारी विचारों का लोप हो जाता है।  सुषुप्त  शक्तियां जागृत होती है। आत्मिक बल मिलता है।  जीवन शक्ति ऊर्धव्गामीगामी होती है।  इसके 7, 11, 21, 51 बार उच्चारण करने से चित्त  की उदासी, निराशा दूर होकर प्रसनन्ता आती है। सामूहिक रूप से किया गया ॐ  का  उच्चचारण और अधिक प्रभावशाली हो जाता है।  अतः शरीर को तंदुरुस्त  व मन को स्वस्थ बनाने के लिए हमें शांत मन से कुछ समय ॐ का उच्चारण अवश्य करना चाहिए।  

ओउम  (ॐ ) शब्द की सार्थकता
'ॐ ' मूलतः तीन अक्षर अ ,उ और म से मिल कर बना हुआ है।  ये तीन अक्षर मूल अक्षर इसलिए है क्योंकि इनको कोई भी बोल सकता है वह भी बिना जिह्वा के।  एक गूंगा व्यक्ति भी इन तीन अक्षर को भलीभांति बोल सकता है और यही ईश्वर है।  इस प्रकार ईश्वर का नाम कोई भी ले सकता है।

ॐ शब्द का प्रभाव
‘ओम’ शब्द काफी प्रभावशाली है और इसका उच्चारण करने से कई तरह के लाभ हमे मिलते हैं। ॐ शब्द का प्रभाव हमारे शरीर पर काफी अच्छा पड़ता है और जब हम ॐ शब्द कहते हैं, तब हमारे शरीर में ऊर्जा उत्पन्न हो जाती है। ॐ शब्द से और क्या-क्या प्रभाव जुड़े हुए हैं एवं इससे हमारे शरीर को क्या लाभ मिलते हैं वो इस प्रकार है :-
  • ध्यान लगाते समय ॐ का उच्चारण करने से तनाव एकदम दूर हो जाता है और आप तनाव रहित हो जाते हैं।
  •  जो लोग नियमित रूप से ॐ बोला करते हैं, उन लोगों के शरीर में ख़ून का प्रवाह सही से होता है।
  •  ॐ शब्द का प्रभाव फेफड़ों पर काफी अच्छा पड़ता है और इसका उच्चारण करने से फेफड़े मजबूत बन जाते हैं।
  •  ॐ शब्द काफी प्रभावशाली है और इसे बोलने से शरीर में जो कंपन पैदा होता है। उससे रीढ़ की हड्डी पर अच्छा असर पड़ता है और रीढ़ की हड्डी मजबूत हो जाती है।
  • ॐ को बोलते समय ‘ओ’ अक्षर पर ज्यादा जोर दिया जाता है और जिससे पेट पर जोर पड़ता है और ऐसा होने से पाचन शक्ति तेज होती है।
  • जिन लोगों को नींद ना आने की परेशानी है अगर वो लोग रात को सोते समय इस शब्द का उच्चारण करें, तो उनको नींद अच्छे से आ जाती है।
  •  ॐ चिन्ह को घर के मुख्य दरवाजे पर बनाना बेहद ही शुभ माना गया है और घर के मुख्य दरवाजे पर ये चिन्ह होने से घर में सदा खुशियां बनी रहती है और हर प्रकार के दुख दूर रहते हैं।

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What is the origin of the word Aum (ॐ) and why Om is more important in Hindu scriptures?

In Hindu culture, the pronunciation of ॐ is considered extremely glorious and sacred. In its pronunciation, the letters A + U + M make sense of Brahma, Vishnu and Mahesh (Shankar) and these three powers are invoked together. These represent the three letters - Rigveda, Yajurveda and Samaveda. Aum is the source of all religions and scriptures. The basic form of sound / sound has been considered as a form. The only sound is Brahma. ॐ is a para-ligature. That is why its utterance is mandatory before doing every auspicious task.

This spore is considered to be extremely mysterious and extremely powerful. Therefore, since time immemorial, there has been immense reverence for the kind among the seekers. Many texts have been mentioned in connection with the glory of Aum.

Lord Shri Krishna ji has also said that by setting the soul in the forehead through the mind, the man who is situated in Yogadharana, chants this single letter form Brahma and by that means he abandons my body, contemplating Nirgun Brahma, he attains ultimate speed. He further states in 24th slok of the Srimadbhagavadgita at chapter 17 states that the yajna, charity, and Tapasya verbs prescribed by the scripture of the superior men reciting Veda mantras always begin with the utterance of this divine name.

It is said in the Gopatha Brahmana that chanting any mantra without chanting Aum makes it unfruitful. The chanting of Om in the beginning of the mantra increases the power of that mantra. Om is Shiva and Mantra is Shakti, hence chanting these two together is perfecting a mantra. The chants giving prayers in each stotra, Upanishads, Gayatri mantra, all Archana, Sahasranama mantras to remember the Gods etc. all start from this word only Om. 

ॐ should be chanted loudly with full reverence. Its pronunciation creates vibrational power in the sound. It has an effect on the molecule in the physical body. Concentration and power awakens in the mind. There is sweetness in speech There is infusion of energy in the body and all worldly thoughts are lost. The latent powers are awakened. Spiritual strength is attained. The life force is upward moving. By uttering its 7, 11, 21, 51 times the sadness, despair of the mind is overcome and happiness comes. उच्च Collectively done उच्च becomes more effective. Therefore, to make the body healthy and the mind healthy, we must chant ॐ for sometime with a calm mind.

Meaning of the word "Aum"

lAum is basically made up of three letters A, U and M. These three letters are the original letter because no one can speak them without the tongue. Even a dumb person can speak these three letters very well and this is God. In this way, anyone can take the name of God.

Effect of "Aum" word 

The word 'Om' is quite effective and we get many benefits from pronouncing it. The effect of the word is very good on our body and when we say the word ॐ, then our body produces energy. Whatever other effects are associated with this word and what other benefits can our body gets from it are as follows: -

  • By chanting this word and while meditating, the tension is completely removed and you become relaxed.
  • People who regularly speak this word,  blood flow in their body properly.
  • The effect of the word is very good on the lungs and by pronouncing it, the lungs become strong.
  • The word is quite effective and by speaking it, creates vibrations in the body. This has also a good effect on the spine and makes the spine strong.
  • While uttering Om, there is more emphasis on the letter 'O' and due to which the stomach is stressed and the digestive power is increased.
  • Those people who have trouble in sleeping, if they pronounce this word while sleeping at night, then they get good sleep.
  • It is considered very auspicious to makeOm sign on the main door of the house. Having this sign on the main door of the house always keeps happiness in the house and also keeps away all kinds of sorrows .

ग्रहणकाल में भोजन करना और सोना क्यों वर्जित है ?

ग्रहणकाल में भोजन करना और सोना क्यों वर्जित है ?


हमारे ऋषि-मुनियों ने सूर्य और चंद्र ग्रहण लगने के समय भोजन करने के लिए मना किया है क्योंकि उनकी मान्यता थी कि ग्रहण के दौरान खाद्य वस्तुओं, जल आदि में सूक्ष्म जीवाणु एकत्रित होकर दूषित कर देते हैं।  इसीलिए इनमें कुश  डाल दिया जाता है ताकि कीटाणु कुश में एकत्रित हो जाएं और उन्हें ग्रहण के बाद फेंका जा सके।  शास्त्रों में कहा गया है कि ग्रहण के बाद स्नान करके पवित्र होने के पश्चात ही भोजन करना चाहिए। ग्रहण के समय भोजन करने से सूक्ष्म कीटाणुओं के पेट में जाने से रोग होने की आशंका रहती है। इसी वजह से यह विधान बनाया गया है।  

अपनी शोधों से वैज्ञानिक वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि ग्रहण के समय सूर्य और चन्द्रमा के विशेष आकर्षण के कारण मनुष्य की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है जिसके कारण इस समय किया गया भोजन अपच अजीर्ण और शिकायतें पैदा कर सकता है। इसलिए ग्रहण के समय भोजन कभी नहीं करना चाहिए।  यह एक ऐसी खगोलीय घटना है जिससे धर्म और विज्ञान दोनों जुड़े हैं और दोनों की मान्‍यताएं इससे संचालित होती हैं। इस दौरान कई तरह की सावधानियां बरतना जरूरी होती हैं। खासतौर पर भोजन न करें तथा सोएं भी नहीं।  ग्रहण के दौरान नींद में रहने वालों के घर एवं व्‍यापार में प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और नुकसान हो सकता है। ऐसी भी मान्यता है की ग्रहण काल में सोने से व्यक्ति को अनेक प्रकार के रोग होते है।  खास तौर पर गर्भवती स्त्रियों को तो ग्रहण के समय बिलकुल भी नहीं सोना चाहिए। कोशिश करें कि एक स्थान पर बैठकर भगवान का नाम जपें।


भारतीय धर्म विज्ञान कर्ताओं ने उनका मानना है कि सूर्य और चंद्र ग्रहण लगने के 10 घंटे पहले ही उसका कुप्रभाव शुरू हो जाता है।  तरिक्ष में प्रदूषण के इस समय को सूतक काल कहा गया है। इसीलिए सूतक काल और ग्रहण  के समय भोजन तथा पेय पदार्थों का सेवन मना किया गया है क्योंकि ग्रहण से हमारी जीवन जीवनी शक्ति का ह्रास होता है और तुलसी दल में विद्युत शक्ति में प्राण शक्ति सबसे अधिक होती है।  इसीलिए सौरमंडल यह ग्रहण काल में ग्रहण प्रदूषण को समाप्त करने के लिए भोजन तथा पर सामग्री में तुलसी के कुछ पत्ते डाल दिए जाते हैं जिसके प्रभाव से न केवल भोज्य पदार्थ बल्कि अन्न, आटा आदि भी प्रदूषण से मुक्त बने रहते है।  तुलसी में अनेक औषधीय गुण है। तुलसी में जीवाणुओ से लड़ने की और उन्हें मारने की अद्भुत क्षमता होती है। 
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Why is eating and sleeping prohibited during the eclipse?


Our sages have restricted eating at the time of solar and lunar eclipses because they believed that during the eclipse, microorganisms collect and contaminate food items, water, etc. That is why kush is put in them so that germs get collected in kush and they can be thrown after eclipse. It has been said in the scriptures that bathing after eclipse, food should be taken only after becoming holy. Eating at the time of eclipse, there is a possibility of disease due to micro germs going into the stomach. That is why this legislation has been made.

Scientists from their researches have found that due to the special attraction of the sun and the moon at the time of eclipse, the digestive power of the human is weakened, due to which the food taken at this time can cause indigestion and complaints. Therefore, one should never eat food at the time of eclipse. It is such an astronomical phenomenon that both religion and science are connected and the beliefs of both are governed by it. During this time it is necessary to take many precautions. Especially do not eat and do not sleep. During sleep, the home and business of sleepers may be adversely affected and damage may occur. It is also believed that a person suffers from various types of diseases during sleep during the eclipse period. Especially pregnant women should not sleep at all at the time of eclipse. Try to sit in one place and chant the name of God.


Indian theologians believe that the sun and the lunar eclipse begin 10 hours before their ill effects. This time of pollution in the tree is called Sutak period. That is why food and beverages are forbidden at the time of sutak period and eclipse because eclipse leads to depletion of our life biographical power and life power is highest in Tulsi group. That is why in the eclipse period, to eliminate the eclipse pollution, some basil leaves are put in food and material, due to which the effect of not only food items but also grains, flour etc. remains free from pollution. Tulsi has many medicinal properties. Tulsi has an amazing ability to fight bacteria and kill them.